VMOU Paper with answer ; VMOU HD-01 Paper BA 1st Year , vmou Hindi Literature important question

VMOU HD-01 Paper BA 1st Year ; vmou exam paper 2024

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA First Year के लिए हिन्दी साहित्य (HD–01 , Prachin evam Madhyakalin Kayva (प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –

Section-A

प्रश्न-1. पृथ्वीराज रासो’ ग्रन्थ के रचयिता का नाम लिखिए ?

उत्तर:-चंदबरदाई , पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा एक महाकाव्य है जिसमें सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है।

प्रश्न-2. कृष्ण भक्ति काव्यधारा के किन्हीं दो कवियों के नाम लिखिए ?

उत्तर:-कृष्ण भक्ति काव्यधारा के प्रमुख- सूरदास, रैदास , मीरा बाई , रसखान

प्रश्न-3. कबीर के राम कौन थे ? उनका स्वरूप कैसा था ?

उत्तर:-कबीर के राम निरंकारी और निर्गुण है। कबीर के राम सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं। यह संसार मस्जिदों और अज्ञानवश मंदिरों में राम को ढूंढता फिरता है जबकि वह तो मानव के हृदय में ही बसे हैं। अब मनुष्य राम के दर्शन इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि उनके अंतःकरण वह महक के आवरण के कारण राम की प्रतिभा को आच्छादित रखता है।

प्रश्न-4. तुलसीदास कृत ‘विनयपत्रिका’ के बारे में आप क्या समझते हैं ?

उत्तर:-हिन्दू देवी-देवताओं के स्तोत्र और पद। ‘विनय पत्रिका’ में जितने भी हिन्दू देवी-देवताओं के सम्बन्ध के स्तोत्र और पद आते हैं, सभी में उनका गुणगान करके उनसे राम की भक्ति की याचना की गयी है। विनय पत्रिका तुलसीदास के 279 स्तोत्र गीतों का संग्रह है। तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘विनयपत्रिका’ एक प्रसिद्ध हिंदी काव्य है जो उनकी भक्ति और साधना को व्यक्त करता है। इस काव्य में तुलसीदास जी अपने मन में रचनात्मक दूरी और उनकी भक्ति के प्रति अपने दृढ़ निष्ठा को व्यक्त करते हैं। वे अपने शिष्य विनय को पत्रिका के माध्यम से उपदेश देते हैं और उन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ‘विनयपत्रिका’ तुलसीदास जी के आदर्शों और उनकी भक्ति की गहराईयों का परिचय कराता है और उनकी आध्यात्मिकता को प्रकट करता है।

प्रश्न-5. दादूपंथ को कोई दो विशेषताएँ लिखिए ?

उत्तर:- दादूपंथ:

  1. वैराग्य: दादूपंथ के अनुयायी वैराग्यपूर्ण जीवन जीने की महत्वपूर्णता को मानते थे। वे सामाजिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्ति की ओर प्रयास करते थे।
  2. सामाजिक समर्पण: दादूपंथ के अनुयायी समाज में समर्पितता की भावना रखते थे। उनका मुख्य उद्देश्य विशेष धार्मिक परंपरा के खिलाफ खड़े होना था और वे उसे सुधारने का प्रयास करते थे।
प्रश्न-6. मलिक मोहम्मद जायसी किस काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं ?

उत्तर:-मलिक मुहम्मद जायसी (1492-1548) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि थे।

प्रश्न-7. मीरा ने अपने आराध्य ‘कृष्ण’ का चित्रण किस प्रकार किया है?

उत्तर:-मीरा ने कृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके सिर पर मोर के पंखों का मुकुट है, वे पीले वस्त्र पहने हैं और गले में वैजंती फूलों की माला पहनी है, वे बाँसुरी बजाते हुए गायें चराते हैं और बहुत सुंदर लगते हैं

प्रश्न-8. कबीर ने माया के स्वरूप का किस प्रकार चित्रण किया है ? बताइए ।

उत्तर:-

प्रश्न-9. खुमाण रासो के रचयिता का नाम लिखिए ?

उत्तर:-‘खुमान रासो’ के रचयिता दलपति विजय हैं।

प्रश्न-10. जायसी कृत ‘पद्मावत’ किस बोली में लिखा गया था ?

उत्तर:-पद्मावत हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत सूफी परम्परा का प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसके रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी हैं। दोहा और चौपाई छन्द में लिखे गए इस महाकाव्य की भाषा अवधी है।

प्रश्न-11. तुलसीदास की नवधा भक्ति में ‘वंदन’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-वंदन: भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तजन, आचार्य, ब्राह्मण, गुरूजन, माता-पिता आदि को परम आदर सत्कार के साथ पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना। दास्य: ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना

प्रश्न-12. कवि सूरदास की किन्हीं दो रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए ?

उत्तर:- सूरसागर, सूरसरावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो

प्रश्न-13. मीरा की भक्ति में किस भाव की प्रधानता है ?

उत्तर:-मधुर्य भाव , मीरा ने श्री कृष्ण के सगुण स्वरूप की भक्ति आराधना की थी। मीरा की इस भक्ति को मधुरा भक्ति भी कहा जाता है।

प्रश्न-14. ‘रीति’ से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:-

प्रश्न-15. ‘ रोला’ छन्द के लक्षण बताइए

उत्तर:-

प्रश्न-16. बिहारी सतसई की कोई दो विशेषताएँ लिखिए ?

उत्तर:-(1) सतसइयों में 700 या 700 से कुछ अधिक छंद होते हैं। (2) सतसइयों में प्रमुख रूप से “दोहा” छंद का प्रयोग होता है; “दोहा” के साथ “सोरठा” और “बरवै” छंद का प्रयोग भी सतसईकार बीच बीच में कर देते हैं। (3) सतसइयों, में प्रमुख रूप से शृंगाररस की प्रधानता है।

बिहारी दोहे बनाकर महाराज को सुनाते रहे और प्रति दोहे पर उन्हें एक अशर्फी मिलने लगा। इस प्रकार बिहारी ने ‘सात सौ’ दोहे लिखे जो संग्रहीत होकर ‘बिहारी सतसई’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बिहारी सतसई को श्रृंगार, भक्ति और ‘नीति की त्रिवेणी’ भी कहा जाता है। “उन हरकी हंसी कै इतै, इन सौंपी मुस्काइ।

प्रश्न-17. रहीमदास का कोई भी एक दोहा लिखिए ?

उत्तर:-1 “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय, टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय

2 “बिनु सत्संग भव न सीही। देखि परायी प्रीति अति दूर जाई।।”

3 “कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति होय। तन सनेह कैसे दुरै, दृग दीपक जरु दोय॥

4 “बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय. रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय. “

प्रश्न-18. दास्य भाव की भक्ति किस कवि की मानी जाती है ?

उत्तर:-संत रैदास

प्रश्न-19. केशवदास की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए ?

उत्तर:-केशवदास जी की प्रमुख निम्न रचनाए हैं –

रसिकप्रिया,कविप्रिया,नखशिख,छंदमाला,रामचंद्रिका,वीरसिंहदेव चरित,रतनबावनी,विज्ञानगीता और जहाँगीर जसचंद्रिका

प्रश्न-20. कबीर के रहस्यवाद पर किस दर्शन का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा ?

उत्तर:-कबीर की रहस्यात्मकता भारतीय हठयोग और औपनिषदिक विचारधारा के सुहाग से सम्भूत होने के कारण पूर्ण भारतीय है वैसे थोड़ा बहुत प्रभाव सूफी – साधना का भी पड़ गया है। कबीर के यहाँ रहस्यवाद ईष्वर के स्वरूप, उसकी अनुभूति और उसकी अभिव्यक्ति तीनों स्तर पर देखा जा सकता है।

प्रश्न-21. दादू पंथ की मूल भावना क्या है ?

उत्तर:-सामाजिक समरसता

प्रश्न-22. सूफी मत के प्रतिनिधि कवि कौन हैं ?

उत्तर:-सूफी मत के प्रतिनिधि कवि ‘जायसी‘ है। इनकी प्रमुख रचना ‘पदमावत’ है। (1540 इ.)

प्रश्न-23. रसखान का प्रेम दर्शन किस पद्धति पर आधारित है ?

उत्तर:-रसखान मूलतः भक्त कवि हैं और सगुण भक्ति परंपरा के अंतर्गत आने वाली कृष्ण भक्ति शाखा के महत्वपूर्ण कवि हैं, पर उनकी भक्ति प्रेमपगी भक्ति है जिसमें उनका हृदय प्रेम से स्पंदित होता है ।

प्रश्न-24. सूरदास के काव्य में किस रस की प्रधानता है ? उनकी भक्ति किस भाव की है ?

उत्तर:-वात्सल्य रस ,सूरदास की भक्ति ‘सख्य भाव‘ की है।

प्रश्न-25. हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग किस काल को कहा जाता है ?

उत्तर:- भक्तिकाल को

प्रश्न-26. आदिकाल को रामचन्द्र शुक्ल ने क्या नाम दिया ? उसका संवत् बताइए ?

उत्तर:-“आचार्य रामचंद्र शुक्ल” ने आदिकाल को “वीरगाथा काल” नाम दिया है। 643 ई

प्रश्न-27. ‘करुण रस का स्थायी भाव क्या है ?

उत्तर:-करुण रस का स्थाई भाव शोक होता है| जहां किसी हानि के कारण शोक भाव उपस्थित होता है , वहां करुण रस उपस्थित होता है।

प्रश्न-28. अनुप्रास अलंकार की उदाहरण सहित परिभाषा लिखिए ?

उत्तर:- अनुप्रास अलंकार में किसी एक व्यंजन वर्ण की आवृत्ति होती है। आवृत्ति का अर्थ है दुहराना जैसे– ‘तरनि-तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये।” उपर्युक्त उदाहरणों में ‘त’ वर्ण की लगातार आवृत्ति है, इस कारण से इसमें अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न-29. मात्रिक छन्द किसे कहते हैं ?

उत्तर:-

प्रश्न-30 रस का अर्थ बताइए ?

उत्तर:-

Section-B

प्रश्न-1. तुलसीदास की भक्ति भावना को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर:-उनकी भक्ति दास्य भाव की है जिसमें दैन्य की प्रधानता है उन्हें प्रभु राम की शक्ति एवं सामर्थ्य पर पूरा विश्वास है। वे राम के प्रति अटल श्रद्धा एवं परम विश्वास से युक्त हैं। वे संसार को त्यागकर प्रभु की शरण में जाने के लिए मन को बार-बार समझाते हैं । तुलसी की भक्ति पद्धति में राम के प्रति अनन्यता दिखाई पड़ती है ।

तुलसीदास भक्ति भावना के महान कवि और संत थे, जिनके रचनाओं में दिव्य प्रेम और आदर्श भक्ति की उच्चता प्रकट होती है। उनकी रचनाओं में राम भक्ति की गहराईयों तक पहुँच जाती है और वे भगवान राम के अनुरूप भक्त बनने के माध्यम से आत्मा को एकत्र करने का संदेश देते हैं।

तुलसीदास की भक्ति भावना उनके कृतियों में व्यक्त रहती है, जैसे कि उनके महाकाव्य “रामचरितमानस” में। उन्होंने भगवान राम के प्रति अपनी आदर्श भक्ति को दर्शाया, जिनमें भक्त का ब्रह्मग्यान और वास्तविक प्रेम का अद्वितीय अभिव्यक्ति होती है।

तुलसीदास के द्वारा रचित “रामचरितमानस” में भक्ति की अद्वितीय उपासना, स्वानुभूति और परमानंद की अनुभूति को अद्वितीयता से व्यक्त किया गया है। वे भगवान राम के दिव्य लीलाओं को उनकी रचनाओं में प्रस्तुत करते हैं जिनमें प्रेम, समर्पण और आदर्श भक्ति का प्रतिष्ठान होता है।

प्रश्न-2. बिहारी सतसई’ में नीति सम्बन्धित तत्वों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-बिहारी सतसई शृंगारप्रधान रचना है, बृंद सतसई नीतिपरक काव्य है तथा तुलसी सतसई में भक्ति, ज्ञान, कर्म और वैराग्य के दोहे हैं। सतसईकारों ने अपनी सतसईयों में प्राय: इन सभी विषयों के दोहे कहे हैं। शृंगारप्रधान सतसईयों में शृंगार के साथ नीति तथा भक्ति और वैराग्य के दोहे भी मिलते हैं,शृंगार रस के ग्रन्थों में ‘बिहारी सतसई’ सर्वोत्कृष्ट रचना है। शृंगारिकता के अतिरिक्त इसमें भक्ति और नीति के दोहों का भी अदभुत समन्वय मिलता है। शृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण इस ग्रन्थ में किया गया है। बिहारी ने यद्यपि कोई रीति ग्रन्थ (लक्षण ग्रन्थ) नहीं लिखा, तथापि ‘रीति’ की उन्हें जानकारी थी।

प्रश्न-3. रहीम के काव्य-सौन्दर्यं का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-वह सरस, सरल और बोधगम्य है। उनमें हृदय को छू लेने की अद्भुत शक्ति है। रचना की दृष्टि से रहीम ने मुक्तक शैली को अपनाया है। रस-छन्द-अलंकार- रहीम के काव्य में श्रृंगार, शान्त और हास्य रस का समावेश है। रहीम जी के काव्य-सौन्दर्यं में भाषा की श्रेष्ठता, रस, अलंकार, और विचारों की ऊँचाइयों का सुंदर प्रस्तावना किया गया है।

रहीम जी ने अपनी रचनाओं में सरल भाषा का प्रयोग करके विचारों को स्पष्टता से प्रकट किया है। उनकी कविताओं में समस्याओं के निराकरण, नैतिकता की महत्वपूर्णता, और जीवन के मूल्यों को सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है।

काव्य-सौन्दर्यं में भावुकता, वाक्यरचना, और भाषा की मधुरता का समन्वय दिखाया गया है। रहीम जी ने जीवन की मानवता और समाज में अच्छाई की महत्वपूर्णता को उजागर किया है और उनके काव्य-सौन्दर्यं का पठन साहित्य प्रेमियों के लिए एक अनुभवयोग्य साहित्यिक अनुभव होता है।

प्रश्न-4. निम्न पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
बैन वही उनको गुन गाइ औ कान वही उन बैनसौ बानी ।
हाथ वही उन गात सरै अरु पाइ वही जु वही अनुजानी ।।
जान वही उन आन कै. मो औ मान वही जू करै मनमानी।
त्यौं रसखान वही रसखानि जु है रसखानि सों है रसखानी ।

उत्तर:-प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश ‘भक्ति के पद’ से लिया गया है। इसके रचयिता रसखान जी हैं।

संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश में रसखान जी ने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अगाध भक्ति और भक्ति की चर्चा की है।

व्याख्या-रसखान कहते हैं कि वाणी का अर्थ तभी है जब वाणी से प्रभु की स्तुति की जाती है और कान का अर्थ तब होता है जब कान से प्रभु की स्तुति सुनी जाती है। रसखान कहते हैं कि मनुष्य के जीवन का अर्थ है कि वह प्रभु के गुण गाता रहे और मन का अर्थ है कि वह सदा प्रभु का स्मरण करता रहे। रसखान कहते हैं कि श्रीकृष्ण अपने भक्तों को कभी क्रोधित नहीं करते और वे उनसे बहुत प्रेम करते हैं। वो खुशियों की खान है। उनसे जुड़ने में ही सुख है

प्रश्न-5. सूरदास के काव्य के भाव पक्ष का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-भावपक्ष – सूरदास कृष्ण भक्त थे । सूर ने अपने पदों में मानव के मन के भावों को प्रकट किया है। उनकी काव्यरचनाओं में भावनाओं की प्रधानता देखने में आती है, जिन्हें वे अपने प्रेम और भक्ति के अद्वितीय रूप में प्रस्तुत करते हैं। सूर के काव्य में शान्त, श्रृंगार और वात्सल्य रस स्पष्ट रूप में दिखाई देता है। सूर वात्सल्य रस के सर्वोत्कृष्ट कवि है। सूरदास के काव्य में भावुकता विनय के पदों में सूर जहाँ आत्मानुभूति अभिव्यक्त करते है, वहाँ वात्सल्य से पूर्ण ह्रदय लेकर कृष्ण की बाल-लीलाओं का चारू चित्रांकन करते हैं। उनकी भावुकता संयोग-वर्णन में जहाँ आनंद सागर में उत्ताल तरंगे उठा देती है। वहाँ वियोग-वर्णन में मार्मिक अनुभूति से ह्रदय को विभोर बना देती हैं।

प्रश्न-6. कबीर समाजसुधारक कवि थे।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-कबीर एक महान भक्त, संत, और समाजसुधारक कवि थे। उन्होंने अपने काव्यों और दोहों के माध्यम से समाज में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया और लोगों को धार्मिकता, नैतिकता और मानवता के महत्व की प्रेरणा दी।

कबीर का समाज में सुधारने का संदेश सामाजिक और धार्मिक असमानता के खिलाफ था। उन्होंने जातिवाद, धर्मान्तरण, परंपरागत अच्छूतता, और अन्य अनैतिक प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई। उनके दोहों में सर्वाधिक प्रकार के लोगों के लिए समान अवसरों की बजाय एकता, सद्भावना, और सभी मानवों के मध्य स्नेह की भावना को महत्वपूर्णता दी गई।

कबीर के काव्य में उनके विचारों की गहराई और उनके समाज सुधारक मिशन की महत्वपूर्ण भूमिका है। उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे समाज के अच्छूत वर्ग, महिलाएं, और असमानता के खिलाफ उनके समाज में सुधार के प्रयासों का प्रतिनिधित्व करते हैं

प्रश्न-7. तुलसी दास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-उनकी भक्ति दास्य भाव की है जिसमें दैन्य की प्रधानता है उन्हें प्रभु राम की शक्ति एवं सामर्थ्य पर पूरा विश्वास है। वे राम के प्रति अटल श्रद्धा एवं परम विश्वास से युक्त हैं। वे संसार को त्यागकर प्रभु की शरण में जाने के लिए मन को बार-बार समझाते हैं । तुलसी की भक्ति पद्धति में राम के प्रति अनन्यता दिखाई पड़ती है ।

तुलसीदास भक्ति भावना के महान कवि और संत थे, जिनके रचनाओं में दिव्य प्रेम और आदर्श भक्ति की उच्चता प्रकट होती है। उनकी रचनाओं में राम भक्ति की गहराईयों तक पहुँच जाती है और वे भगवान राम के अनुरूप भक्त बनने के माध्यम से आत्मा को एकत्र करने का संदेश देते हैं।

तुलसीदास की भक्ति भावना उनके कृतियों में व्यक्त रहती है, जैसे कि उनके महाकाव्य “रामचरितमानस” में। उन्होंने भगवान राम के प्रति अपनी आदर्श भक्ति को दर्शाया, जिनमें भक्त का ब्रह्मग्यान और वास्तविक प्रेम का अद्वितीय अभिव्यक्ति होती है।

तुलसीदास के द्वारा रचित “रामचरितमानस” में भक्ति की अद्वितीय उपासना, स्वानुभूति और परमानंद की अनुभूति को अद्वितीयता से व्यक्त किया गया है। वे भगवान राम के दिव्य लीलाओं को उनकी रचनाओं में प्रस्तुत करते हैं जिनमें प्रेम, समर्पण और आदर्श भक्ति का प्रतिष्ठान होता है।

प्रश्न-8. रसखान के काव्य का महत्त्व रेखांकित कीजिए ?

उत्तर:-रसखान ब्रज भाषा के कवि है। उनका लेखन आडंबर रहित है। उनके लेखन की भाषा सरल, सुबोध तथा आसानी से समझने वाली है। वे लेखन में अलंकारों का प्रयोग करते हैं रसखान की भक्ति के आलंबन अतुलित रूप-सौन्दर्य सम्पन्न श्रीकृष्ण हैं जिनकी रूप-छवि और मधुर लीलाओं ने सम्पूर्ण ब्रज की गोपियों को प्रेमोन्मत्त कर दिया।

रसखान के काव्य का महत्व उनके संवेदनशील और गहरे भावनाओं के कारण है, जिन्हें उन्होंने अपने दोहों और पदों के माध्यम से व्यक्त किया। उनके काव्य में प्रेम, विरह, श्रृंगार, शांति आदि विभिन्न रसों की बहुत प्राधान्यता है, जो उनके साहित्य को रंगीन और संवेदनशील बनाते हैं।

उनके दोहों और पदों में मानवीय संवाद, जीवन के मूल्यों का संकेत, धार्मिक और आध्यात्मिक विचार, सामाजिक सुधार और मानवता के प्रति प्रेम का संदेश दिखता है।

प्रश्न-9. बिहारी के काव्य में भाव – सौन्दर्य का चित्रण कीजिए  ?

उत्तर:-

प्रश्न-10. मलिक मोहम्मद जायसी सूफी काव्य-परम्परा के अद्वितीय कवि हैं।” इस कथन पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:- वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। जायसी मलिक वंश के थे। मिस्र में सेनापति या प्रधानमंत्री को मलिक कहते थे। दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश राज्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा को मरवाने के लिए बहुत से मलिकों को नियुक्त किया था जिसके कारण यह नाम उस काल से काफी प्रचलित हो गया था।

प्रश्न-11. निम्न पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
लाली मेरे लाल की जित देखूँ तित लाल ।
लाली देखन मैं गयी, मैं भी हो गयी लाल ।।
माटी कहे कुमार से, तू क्या रौंदे मोय |
इक दिन ऐसा आएगा, मैं रोदूँगी तोय ||

उत्तर:-

प्रश्न-12. निम्न पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
आप न काबू काम के, डार पात फल फूल ।
औरन को रोकत फिरै, रहिमन पेड़ बबूल ॥
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखौ गोय |
सुन अलैिहें लोग सब, बाँटि न लैहै कोय ॥

उत्तर:-रहीम कहते हैं कि कुछ व्यक्ति दूसरों का कोई उपकार तो करते नहीं हैं, उलटे उनके मार्ग में बाधाएँ ही खड़ी करते हैं। यह बात कवि ने बबूल के माध्यम से स्पष्ट की है। बबूल की डालें, पत्ते, फल-फूल तो किसी काम के होते नहीं हैं, वह अपने काँटों द्वारा दूसरों के मार्ग को और बाधित किया करता है।

प्रश्न-13. घनानन्द के काव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-14. रस का अर्थ एवं स्वरूप का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-15. अलंकार किसे कहते हैं ? काव्य में अलंकार के महत्व पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-अलंकार, कविता के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्त्व होते हैं। जिस प्रकार आभूषण से नारी का लावण्य बढ़ जाता है, उसी प्रकार अलंकार से कविता की शोभा बढ़ जाती है। शब्द तथा अर्थ की जिस विशेषता से काव्य का शृंगार होता है उसे ही अलंकार कहते हैं। कहा गया है – ‘अलंकरोति इति अलंकारः’ (जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।)

अलंकार शब्द साहित्यिक शृंगार (आभूषण) को कहते हैं, जिसमें भाषा के आदर्शों का पालन करके विशेष चमक और सुंदरता को प्रकट किया जाता है। यह काव्य में शब्दों की आकृति, व्यंजन, वाक्य और अर्थ की विविधता को बढ़ाता है जिससे कविता का प्रभाव और आकर्षण बढ़ता है। अलंकार का महत्व काव्य में निम्नलिखित रूपों में होता है:

  1. शब्द अलंकार: शब्दों की विविधता और सुंदरता को बढ़ाने के लिए शब्दों के आकृतिकारण का उपयोग किया जाता है, जैसे कि उपमा, उपमेय, रूपक, अपभ्रंश आदि।
  2. अलंकरण अलंकार: वाक्यों की सुंदरता और मेल-जोल के लिए वाक्यों के पारिभाषित तत्त्वों का प्रयोग किया जाता है, जैसे कि यमक, संधिविच्छेद, द्वन्द्व, अनुप्रास आदि।
  3. अर्थ अलंकार: अर्थों की गहराई और विविधता को प्रकट करने के लिए अर्थों का अलंकरण किया जाता है, जैसे कि उपमान, उपमेय, रूपक, द्वंद्व, अपभ्रंश आदि।
  4. गुण अलंकार: काव्य में गुणों की महत्वपूर्णता को प्रकट करने के लिए गुणों का आकर्षित वर्णन किया जाता है, जैसे कि रूपक, यमक, उपमा आदि।
  5. दोष अलंकार: काव्य में दोषों की व्यक्ति के दर्शन के लिए दोषों का अलंकरण किया जाता है, जैसे कि द्वन्द्व, यमक, संधिविच्छेद आदि।
  6. योजन अलंकार: विशेष प्रकार के वाक्ययोजन के द्वारा वाक्यों की सुंदरता और प्रभाव बढ़ाया जाता है, जैसे कि छंदोबद्ध, अनुष्टुभ आदि।

अलंकार के महत्वपूर्णता से काव्य में उसके रस, भावना और प्रभाव को अधिक प्रकाशित किया जाता है। यह काव्य को और भी उत्कृष्ट और प्रभावशाली बनाता है जो पाठकों के मन, भावनाओं और विचारों पर गहरा प्रभाव डालता है।

प्रश्न-16. ‘बिहारी सतसई’ के श्रृंगार पक्ष का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-बिहारी सतसई श्रृंगार प्रधान रचना है। श्रृंगारिक होते हुए में इसमें भक्ति नीति और दर्शन का रूप देखने को मिल जाता है। परंतु इस ग्रंथ में प्रधानता केवल श्रृंगार रस की ही है। बिहारी ने श्रृगांर रस के दोनों पक्षों संयोग एंव वियोग पक्ष का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है।बिहारी सतसई शृंगारप्रधान रचना है, बृंद सतसई नीतिपरक काव्य है तथा तुलसी सतसई में भक्ति, ज्ञान, कर्म और वैराग्य के दोहे हैं। सतसईकारों ने अपनी सतसईयों में प्राय: इन सभी विषयों के दोहे कहे हैं। शृंगारप्रधान सतसईयों में शृंगार के साथ नीति तथा भक्ति और वैराग्य के दोहे भी मिलते हैं,शृंगार रस के ग्रन्थों में ‘बिहारी सतसई’ सर्वोत्कृष्ट रचना है। शृंगारिकता के अतिरिक्त इसमें भक्ति और नीति के दोहों का भी अदभुत समन्वय मिलता है। शृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण इस ग्रन्थ में किया गया है। बिहारी ने यद्यपि कोई रीति ग्रन्थ (लक्षण ग्रन्थ) नहीं लिखा, तथापि ‘रीति’ की उन्हें जानकारी थी।

प्रश्न-17. अनुप्रास और उपमा अलंकार को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:- part-c मे उदाहरण सहित उत्तर दे रखे है दोनों अलंकारों के

प्रश्न-18. रीतिकाल की प्रवृत्तियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

  1. श्रृंगारिकता मुख्य काव्य प्रवृत्ति
  2. रीति की प्रधानता
  3. प्रकृति के आलंबन की अपेक्षा उद्दीपन रूप को प्रमुखता
  4. कला पक्ष मुख्य रूप से उजागर
  5. प्रबंध एवं मुक्तक काव्य इसकी विशेषता
  6. आलंकारिकता की प्रधानता
  7. ब्रजभाषा का रीतिकालीन साहित्य में प्रयोग
  8. लाक्षणिक ग्रंथों का निर्माण
प्रश्न-19. पद्मावत की कथावस्तु का चित्रण कीजिए ?

उत्तर:-पद्मावत के रचनाकार मलिक मुहम्मद जायसी ने इस कृति में मुख्य रूप से राजा रत्नसेन एवम् रानी पद्मावती की प्रेम कथा का वर्णन किया है। इस महाकाव्य के अन्तर्गत जायसी ने ऐतिहासिक एवं काल्पनिक दो पक्षों को दर्शाया है। रत्नसेन और पद्मावती के प्रेम का लौकिक और अलौकिक चित्रण इस महाकाव्य की विशेषता है। जिसमें प्रेम और युद्ध को समान महत्व दिया गया है । पद्मावत एक लौकिक प्रेम काव्य है , इसीलिए जायसी की कविता में व्यक्त प्रेम का स्वरूप सूफीमत के प्रचलित प्रेम से अलग है । यही कारण है कि उनका प्रेम मानवीय संवेदनाओं से भरा हुआ है । पद्मावत को कुछ संकेतों के आधार पर उसे सूफी काव्य मानना ठीक नहीं है।

प्रश्न-20. मीरा काव्य की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-निश्चित रूप से मीरा का काव्य गीति-काव्य है । गीति काव्य की सभी विशेषताएं आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, तीव्रता, संगीतात्मकता, भावात्मकता आदि उनके काव्य में देखी जा सकती है।

प्रश्न- 21. मीराँ के विरह – वर्णन की सोदाहरण संक्षेप में समीक्षा कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न- 22. सूरदास के काव्य में जो वात्सल्य वर्णन है वह अन्यत्र दुर्लभ है। स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न- 23. दादूदयाल की भक्ति भावना को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न- 24. तुलसी के काव्य में समन्वय की भावना विद्यमान है। स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न- 25. स्वच्छन्द काव्यधारा के कवियों में घनानन्द का महत्व बताइए ?

उत्तर:-

Section-C

प्रश्न-1. रस का अर्थ, स्वरूप और उसके विभिन्न अवयवों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-2. रीतिकाल की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए रीतिकाल में बिहारी काव्य के महत्त्व का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-3. कबीर के रहस्यवाद पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-4 निम्न पर टिप्पणी लिखिए ? (कोई दो पर करनी होगी)
(अ) अनुप्रास अलंकार

उत्तर:- अनुप्रास अलंकार में किसी एक व्यंजन वर्ण की आवृत्ति होती है।

अनुप्रास अलंकार वाक्य में आवाज की आवृत्ति और ताल का मनोबलित उपयोग है, जिससे वाक्य की मधुरता और सुवाद बढ़ जाती है। यह अलंकार ध्वनि के खेल में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है और कविता, गीत और छंद में प्रयुक्त होता है।

अनुप्रास अलंकार के द्वारा विशेष ध्वनियों को बढ़ावा दिया जाता है जिससे उनकी मनोहरता और संगीतमयता में वृद्धि होती है। ध्वनियों के आनन्दपूर्ण समर्थन से वाक्य और पद अधिक चित्रित होते हैं और पाठकों के मन में छवियों का निर्माण होता है।

उदाहरण स्वरूप, “बजी बाजी बंसी बजी, मन मोहन मुरली बजाय” अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है। इसमें ‘ब’ ध्वनि की आवृत्ति दोहराई गई है, जिससे वाक्य की सुवादितता बढ़ी है और वाक्य का म्यूजिकल असर बढ़ गया है।

इस तरह, अनुप्रास अलंकार ध्वनि के रंगीन और संगीतमय प्रयोग से काव्य, संगीत और साहित्यिक रचनाओं को उनकी अद्वितीयता और चित्रता के साथ प्रस्तुत करने में सहायक होता है।

(ब) उपमा अलंकार

उत्तर:-उपमा का अर्थ – मापना या तोलना अर्थात जहाँ दो अलग – अलग वस्तुओं या व्यक्तियों में रूप, गुण, धर्म या आकृति व प्रभाव की दृष्टि से अंतर रहते हुए भी समानता दिखाई जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है।

उपमा अलंकार विशेषण का विशिष्ट प्रकार है जिसमें दो वस्तुओं के बीच तुलना की जाती है ताकि उनकी सामान्यताएँ और विशेषताएँ प्रकट हो सकें। यह अलंकार साहित्य में छंद, रुपक, गद्य, और कविता में प्रयुक्त होता है। उपमा अलंकार के माध्यम से विचारों और भावनाओं को सुंदरता से व्यक्त किया जाता है।

उपमा अलंकार के द्वारा एक वस्तु को दूसरी वस्तु के साथ तुलित करके उनके समानता और विभिन्नता को दर्शाया जाता है। यह विचारों को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत करने का एक श्रेष्ठ तरीका है। उपमा अलंकार का प्रयोग करके कवियों और लेखकों ने अपने रचनात्मक काम में गहराईयों तक विचारों को पहुँचाया है।

उदाहरण के रूप में, “उसकी मुस्कान सूरज की किरनों की तरह थी” उपमा अलंकार का एक उदाहरण है। इसमें एक व्यक्ति की मुस्कान को सूरज की किरनों से तुलना की गई है, जिससे उसकी मुस्कान की उनकी उज्ज्वलता और प्रकाश व्यक्त होता है।

इस प्रकार, उपमा अलंकार साहित्य में भाषा की सुंदरता और विवरण क्षमता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(स) चौपाई छन्द

उत्तर:- चौपाई छंद काव्यशास्त्र में एक महत्वपूर्ण छंद है जिसमें प्रत्येक पद में चार-चार मात्राएँ होती हैं। यह छंद कई भाषाओं में प्रयुक्त होता है और कविता, धार्मिक ग्रंथ, कहानी, और किस्सों में आम रूप से प्रयोग होता है।

चौपाई छंद का नाम इसकी विशेषता से है, जिसमें प्रत्येक पद में चार मात्राएँ होती हैं। यह छंद आसानी से याद किया जा सकता है और भाषा को सुंदर और संरचित बनाता है।

चौपाई छंद का उदाहरण इस प्रकार है: “राम दुआरे तुम रखवारे। हो जी, चरणन की सुदृढ़ बौध।।”

चौपाई छंद का प्रयोग आदर्श और सिंपल ढंग से अपने विचारों को प्रस्तुत करने में किया जाता है, और यह छंद संस्कृति और साहित्य के अनेक दिग्गज रचनाकारों ने अपने काव्यों में प्रयोग किया है।

(द) रोला छन्द

उत्तर:- रोला छंद एक विशेष प्रकार का छंद है जिसमें प्रत्येक पंक्ति में तीन वर्ण होते हैं। यह छंद संस्कृति और साहित्य में प्रयुक्त होता है और विशेष रूप से लोकगीतों, पौराणिक कथाओं, और गाथाओं में पाया जाता है।

रोला छंद का नाम इसकी विशेषता से है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति में तीन वर्ण होते हैं। यह छंद सुनने में मनोहर और लोकप्रिय होता है और गीतों के रूप में आमतौर पर प्रयुक्त होता है।

रोला छंद का उदाहरण इस प्रकार है: “खेती का तिलक करो, देखो रे मित्र देखो।”

रोला छंद का प्रयोग लोकप्रिय गीतों में, खासकर गांवों और उनकी संस्कृति से संबंधित गीतों में किया जाता है। इसका छंद गीतों को जीवंत, उत्साहित और स्वादिष्ट बनाता है, जिससे गीत गुनगुनाने में आसानी होती है।

(य) श्लेष अलंकार

उत्तर:-श्लेष अलंकार, हिंदी काव्य में प्रयुक्त अलंकारों में से एक होता है जिसमें दो या दो से अधिक पदों की बातचीत एक साथ की जाती है और उनके बीच में सुविधानुसार समानता का वर्णन होता है। इस अलंकार का प्रयोग दृष्टिकोण और विचारों के बीच में तात्पर्य या समानता को जताने के लिए किया जाता है।

उदाहरणस्वरूप, अगर हम कहें, “समर्थ हैं सर्वत्र व्याप्त, समर्थ हैं सबमें विराजत,” तो यहाँ “समर्थ हैं” दोनों पदों में समानता दिखा रहा है। यह श्लेष अलंकार का उदाहरण है, जिससे दो पदों में एक ही गुण की प्रशंसा हो रही है और विचार की समानता दिखाई जा रही है।

श्लेष अलंकार का प्रयोग कविता में तात्पर्य और विचारों की प्रमुखता को प्रकट करने के लिए किया जाता है और इससे पाठक की ध्यान एवं समझने की क्षमता में वृद्धि होती है।

(र) रूपक अलंकार

उत्तर:- रूपक अलंकार, हिंदी कविता में प्रयुक्त अलंकारों में से एक है जो विशेष रूप से तुलना अलंकार के परिप्रेक्ष्य में प्रयुक्त होता है। इस अलंकार में किसी वस्तु को किसी दूसरी वस्तु से तुलित करके उसकी गुण, दोष, रूप, या लक्षण का वर्णन किया जाता है, जिससे पठक का अधिक अनुभव होता है।

उदाहरणस्वरूप, किसी दृश्य को किसी दूसरे दृश्य से तुलना करके उसकी रूपरेखा को चित्रित किया जाता है। इसके द्वारा पाठक को अधिक विवरणीयता मिलती है और उनकी भावनाओं का अधिक सामर्थ्य बनता है। रूपक अलंकार के प्रयोग से कविता की रिच छवि तथा व्यक्तिगतता में बदलाव आता है।

इस प्रकार, रूपक अलंकार हिंदी काव्य में छवि और भावनाओं की प्रबलता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण उपाय होता है।

(ल) ) शब्द – शक्ति

(व) रस या कोई भी छंद

प्रश्न-5. “केशवदास ने मार्मिक स्थलों को भली-भाँति पहचाना है।” इस कथन की सोदाहरण पुष्टि कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-6. घनानंद के काव्य के भाव और शिल्प सौन्दर्य का उद्घाटन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-7. भरतमुनि के रससूत्र की व्याख्या करते हुए रस के महत्व को समझाइए ?

उत्तर:-

प्रश्न-8. रीतिकाल की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

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