VMOU Paper with answer ; VMOU PS-04 Paper BA 2nd Year , vmou Political Science important question

VMOU PS-04 Paper BA 2nd Year ; vmou exam paper 2023

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA Second Year के लिए राजनीति विज्ञान ( PS-04 , Indian Politics- An Introduction ) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –

Section-A

प्रश्न-1. गणतन्त्र को परिभाषित कीजिए ?

उत्तर:-यह शासन की ऐसी प्रणाली है जिसमें राष्ट्र के मामलों को सार्वजनिक माना जाता है।
गणतंत्र एक राज्य व्यवस्था है जिसमें शक्ति जनता के हाथ में होती है। यह लोकतंत्र की एक रूपरेखा होती है जिसमें नागरिकों के अधिकार और कर्तव्यों का पालन किया जाता है। नियमन संविधान से होता है।

(जिस भी प्रश्न का उत्तर देखना हैं उस पर क्लिक करे)

प्रश्न-2. 42वें संविधान संशोधन द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में किन शब्दों को जोड़ा गया ?

उत्तर:- 42वें संशोधन के बाद, प्रस्तावना में तीन नए शब्द “समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता” जोड़े गए।

प्रश्न-3. विधेयक से क्या आशय है ?

उत्तर:-विधेयक किसी विधायी प्रस्ताव का प्रारूप होता है। अधिनियम बनने से पूर्व विधेयक को कई प्रक्रमों से गुजरना पड़ता है। विधान संबंधी प्रक्रिया विधेयक के संसद की किसी भी सभा – लोक सभा अथवा राज्य सभा में पुरःस्थापित किये जाने से आरम्भ होती हैं। विधेयक किसी मंत्री या किसी गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुरःस्थापित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहे तो “विधेयक” शब्द से सांविदिक या संविधानिक प्रस्तावना की भावना दर्शाई जाती है, जो एक निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से संसद या विधायिका सदन में प्रस्तुत किया जाता है। यह सामान्यत: नया कानून या संशोधन परिप्रेक्ष्य में होता है जिसे सदन की सदस्यों की सहमति से पास किया जाना होता है।

प्रश्न-4. बहुदलीय व्यवस्था से आप क्या समझते हैं

उत्तर:-बहुदलीय व्यवस्था- एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें एक देश के अंदर विभिन्न राजनीतिक पार्टीयाँ चुनाव में भाग लेती है और जिस पार्टी को जनता का बहुमत प्राप्त होता है वह सत्ता में आ जाती है।

प्रश्न-5. साम्प्रदायिकता को समझाइए ?

उत्तर:-साम्प्रदायिकता एक सामाजिक स्थिति है जिसमें व्यक्तियों को उनकी धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर विभाजित किया जाता है। यह सामाजिक एकता को कमजोर करता है और समाज में विवादों का कारण बन सकता है।

प्रश्न-6. न्यायिक पुनरावलोकन क्या है ?

उत्तर:-न्यायिक पुनरावलोकन से तात्पर्य न्यायालय की उस शक्ति से है जिस शक्ति के बल पर वह विधायिका द्वारा बनाये कानूनों, कार्यपालिका द्वारा जारी किये गये आदेशों, तथा प्रशासन द्वारा किये गये कार्यों की जांच करती है कि वह मूल ढांचें के अनुरूप हैं या नहीं।

न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) एक कानूनी संकीकरण प्रक्रिया है जिसमें न्यायिक प्राधिकृता निर्णयों, कानूनों, और सरकारी क्रियावलियों की संवैधानिकता और कानूनीता की मान्यता की जांच करती है। यह न्यायिक संगठन की क्षमता है कि वे सरकारी क्रियावलियों को संविधान के मानकों के अनुसार मान्य या अमान्य ठहरा सकते हैं।

प्रश्न-7. भारतीय संविधान को संशोधन करने की विधियाँ क्या हैं ?

उत्तर:-

भारतीय संविधान में संशोधन करने के विभिन्न तरीके:

  1. संविधान संशोधन विधेयक: संविधान के किसी भी अनुच्छेद को संशोधित करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक परिषद द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद संविधान संशोधन विधेयक को दोनों सदनों के सदस्यों की मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
  2. सदनों की मंजूरी: संविधान संशोधन विधेयक को दोनों सदनों, यानी लोक सभा और राज्य सभा, की अद्यतन सदस्यों की अधिश्वनित मंजूरी की आवश्यकता होती है। दोनों सदनों में इसकी मंजूरी बिना नहीं हो सकती है।
  3. राष्ट्रपति की मंजूरी: संविधान संशोधन विधेयक को सदनों की मंजूरी प्राप्त होने के बाद, वह राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना संविधान संशोधन विधेयक को कानून नहीं बन सकता।
  4. राष्ट्रपति की मंजूरी की आवश्यकता: कुछ विशेष मामलों में, जैसे कि संविधान के मौलिक अनुच्छेदों को संशोधित करने की किसी भी कदर में, राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक की मंजूरी की आवश्यकता होती है।
  5. संविधान के विशेष बहुत्ववादी अनुच्छेदों की मंजूरी: कुछ विशेष अनुच्छेदों को संशोधित करने के लिए उनके संशोधन की बिना राष्ट्रपति की मंजूरी की आवश्यकता होती है। इससे संविधान के कुछ महत्वपूर्ण और मौलिक अनुच्छेदों की सुरक्षा होती है।
  6. महत्वपूर्ण बहस और सहमति: संविधान संशोधन के प्रस्तावित विधेयक के बारे में दोनों सदनों में महत्वपूर्ण बहस और सहमति होनी चाहिए।

इस प्रकार, भारतीय संविधान को संशोधित करने के लिए कई तरीके होते हैं जिनका पालन करते ह

प्रश्न-8. पंचायती राज व्यवस्था में सुधार के कोई दो सुझाव दीजिए ?

उत्तर:- पंचायती राज व्यवस्था में सुधार के लिए निम्न सुझाव:

  1. वित्तीय स्वायत्तता का बढ़ावा: पंचायतों को आर्थिक रूप से स्वायत्तता और स्वायत्त निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करने के लिए सरकार को वित्तीय संसाधनों की अधिक मात्रा और विनियोजन की स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए।
  2. जनप्रतिनिधिता में सुधार: पंचायती राज संविदान में जनप्रतिनिधिता को मजबूती देने के लिए, निर्वाचन प्रक्रिया को पारदर्शी और स्पष्ट बनाना चाहिए, ताकि नागरिकों के प्रति सरकार की खुली और जानकार व्यवस्था हो सके।
  3. कौशल विकास और प्रशासनिक प्रशिक्षण: पंचायत सदस्यों को प्रशासनिक कौशलों और शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण देने के लिए प्रशासनिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
प्रश्न-9. भारतीय संविधान को संशोधन करने की विधियाँ क्या है ?

उत्तर:-संविधान में संशोधन कई प्रकार से किया जाता है नामतः साधारण बहुमत, विशेष बहुमत तथा बहाली कम से कम आधे राज्यों द्वारा| अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन, भारतीय संविधान की एक मूल संशोधन प्रक्रिया है।

प्रश्न-10. कोई भी वाद जो मौलिक अधिकार के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में हो, वह सर्वोच्च न्यायालय के किस क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है ?

उत्तर:-अनुच्छेद 131 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक क्षेत्राधिकार का वर्णन किया गया है

प्रश्न-11. भारतीय संविधान के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ?

उत्तर:-भारत के संविधान अनुच्‍छेद 155 अनुसार राज्‍यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति अपने हस्‍ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा करते हैं । राज्‍यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्‍त पद धारण करेगा । राज्‍यपाल, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्‍ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्‍याग सकेगा । राज्‍यपाल की पदावधि 5 वर्ष निर्धारित है ।

प्रश्न-12. बंदी प्रत्याक्षीकरण लेख क्या है ?

उत्तर:-एक प्रकार का क़ानूनी आज्ञापत्र (writ, रिट) होता है जिसके द्वारा किसी ग़ैर-क़ानूनी कारणों से गिरफ़्तार व्यक्ति को रिहाई मिल सकती है

प्रश्न-13. नॅशनल कॉनफेरेंस ………………( राज्य का नाम लिखिए) का क्षेत्रीय राजनीतिक दल है।

उत्तर:- जम्मू कश्मीर

प्रश्न-14. क्षेत्रवाद का अर्थ समझाईए ?

उत्तर:-क्षेत्रवाद से अभिप्राय किसी देश के उस छोटे से क्षेत्र से है जो आर्थिक ,सामाजिक आदि कारणों से अपने पृथक् अस्तित्व के लिए जागृत है

प्रश्न-15. भारत में पंचायती राज संस्थाओं द्वारा सामना किये जा रहे कोई दो समस्याएं बताईए ?

उत्तर:-संस्थाओं में आर्थिक स्त्रोत की कमी इन्हें शासकीय अनुदान पर ही जीवित रहना पड़ता है। अतः पंचायती राज संस्थाओं के संचालन के लिए आय के पर्याप्त एवं स्वतंत्र स्त्रोत प्रदान किये जाने चाहिए ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुढृढ़ बन सके। 4. राजनीतिक जागरूकता की कमी भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। पंचायती राज निकाय कई प्रशासनिक समस्याओं का अनुभव करते हैं जैसे स्थानीय प्रशासन के राजनीतिकरण की प्रवृत्ति, लोकप्रिय और नौकरशाही तत्वों के बीच समन्वय की कमी, प्रशासनिक कर्मियों के लिए उचित प्रोत्साहन और पदोन्नति के अवसरों की कमी और उदासीन रवैया

प्रश्न-16. “भारतीय संविधान संसदीय प्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता के सिद्धान्तों के सम्बन्ध में माध्यम मार्ग का अनुसरण करता है।” स्पष्ट कीजिए

उत्तर:-संसदीय सम्प्रभुता (जिसे संसदीय सर्वोच्चता या विधायी सम्प्रभुता भी कहते हैं) कुछ संसदीय लोकतन्त्रों के संवैधानिक विधि की एक अवधारणा हैं। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संसदीय संप्रभुता के ब्रिटिश सिद्धांत और न्यायिक सर्वोच्चता के अमेरिकी सिद्धांत के बीच एक उचित समायोजन को प्राथमिकता दी है। सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक समीक्षा की शक्ति के माध्यम से संसदीय कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है

प्रश्न-17. भारतीय राष्ट्रपति को संसद का अंग क्यों माना गया है ?

उत्तर:-राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है और न ही वह संसद में बैठता है लेकिन राष्ट्रपति, संसद का अभिन्न अंग है । ऐसा इसलिए है क्योंकि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई विधेयक तब तक अधिनियम नहीं बन सकता, जब तक राष्ट्रपति उसे अपनी स्वीकृति नहीं दे देता

प्रश्न-18. भारतीय संघ व्यवस्था के दो प्रमुख लक्षण बताइए ?

उत्तर:-दोहरी शासन प्रणाली, ) द्वि-सदनीय व्यवस्थापिका , समानता और एकता , स्वतंत्रता और निष्पक्षता , संविधान की सर्वोच्चता, संविधान के द्वारा केन्द्रीय सरकार और इकाइयों की सरकारों में शक्तियों का विभाजन

प्रश्न-19. धन विधेयक को परिभाषित कीजिए ?

उत्तर:-आय-कर से संबंधित विधि में संशोधन करने वाले या उसे समेकित करने वाले विधेयक को धन विधेयक माना जाता है चूंकि ऐसे विधेयकों का मुख्य प्रयोजन किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, इत्यादि होता है, अन्य आनुषंगिक उपबंधों के होने से वह धन विधेयक की श्रेणी से भिन्न नहीं माना जा सकता।

प्रश्न-20. ऐसा क्यों कहा जाता है कि वित्त विधेयक या धन विधेयक के संदर्भ में राज्य सभा को लोक सभा के समान शक्तियां प्राप्त नहीं है ?

उत्तर:-

वित्त विधेयक या धन विधेयक के संदर्भ में यह कहा जाता है कि राज्यसभा को लोकसभा के समान शक्तियाँ प्राप्त नहीं हैं, इसका कारण वित्त विधेयक के प्रकार और उनके पारिति प्रक्रिया में होता है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 109 और 110 में वित्त विधेयक को दो प्रकारों में विभाजित किया गया है – ‘आम विधेयक’ और ‘धन विधेयक’ (मनी बिल)। आम विधेयक वे होते हैं जिनमें सामान्य वित्तीय मुद्दे होते हैं, जैसे कि वित्तीय वर्ष की बजट, कर, शुल्क आदि। ऐसे विधेयकों को लोकसभा और राज्यसभा दोनों को पारित करने की आवश्यकता होती है और उन्हें दोनों सदनों के पूर्ण सहमति की आवश्यकता होती है।

विरुद्ध, धन विधेयक (मनी बिल) वे होते हैं जिनमें केवल वित्तीय प्रावधान होते हैं, जैसे कि आमदनी या व्यय से संबंधित मुद्दे। ऐसे विधेयकों को केवल लोकसभा में पारित किया जा सकता है और राज्यसभा को उन पर केवल सलाह दी जा सकती है, लेकिन उसकी सहमति की आवश्यकता नहीं होती।

इस प्रकार, धन विधेयकों के मामले में राज्यसभा को लोकसभा के समान पूर्ण पारिति की अधिकारिक शक्ति नहीं होती है, जो कि वित्त विधेयकों के आम प्रकार में होती है।

प्रश्न-21. भारतीय संविधान का कौनसा अनुच्छेद ‘संविधान की आत्मा ‘ कहलाता है ?

उत्तर:-अनुच्छेद 32 को भारतीय संविधान की आत्मा कहा जाता है। इस अनुच्छेद को भारतीय संविधान का हृदय भी कहा जाता है, खुद बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने इस अनुच्छेद को भारतीय संविधान का हृदय और आत्मा कहा था। अनुच्छेद 32 नागरिकों को संविधानिक अधिकारों की रक्षा करने का प्रबंधन करता है और उन्हें संविधान के द्वारा प्रतिबद्ध किए गए मूल अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करता है।।

Section-B

प्रश्न-1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-प्रस्तावना भारतीय संविधान के उन उच्च आदर्शों का परिचय देती है जिन्हें भारतीय जनता ने शासन के माध्यम से लागू करने का निर्णय किया है. इन आदर्शों का उद्देश्य न्याय, स्वंतंत्रता, समानता, बंधुत्व या राष्ट्र की एकता एवं अखंडता स्थापित करना है. 3. प्रस्तावना भारत संघ की संप्रभुता तथा उसके लोकतंत्रात्मक स्वरूप की आधारशिला है. संविधान की प्रस्तावना में भारत की एकता, सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता, और शांति की भावना प्रकट होती है। यह भारतीय संविधान के मूल दरबार को प्रस्तुत करता है और उसके उद्देश्यों की महत्वपूर्ण अवधारणाओं को सार्थकता से प्रस्तुत करता है।

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प्रश्न-2. 42वें संविधान संशोधन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ?

उत्तर:-42वें संविधान संशोधन के प्रावधान​​ भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 3 नए शब्द समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता जोड़े गए।संशोधन का अधिकांश प्रावधान 3 जनवरी 1977 को लागू हुआ, अन्य 1 फरवरी से लागू किया गया और 27 अप्रैल 1 अप्रैल 1977 को लागू हुआ। 42 वां संशोधन को भारतीय इतिहास में सबसे विवादास्पद संवैधानिक संशोधन माना जाता है।

प्रश्न-3. राजस्थान की राजनीति पर एक निबन्ध लिखिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-4. राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था की संरचना को समझाइए ?

उत्तर:-राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था त्रिस्तरीय होती है। इसमें तीन स्तर होते हैं: जिला परिषद, पंचायत समिति, और ग्राम पंचायत। जिला परिषद जिले के स्तर पर, पंचायत समिति तहसील स्तर पर, और ग्राम पंचायत गांवों के स्तर पर होती है। प्रत्येक स्तर पर चुने गए प्रतिष्ठित सदस्यों के द्वारा संचालित होती है और यहां विभिन्न विकास कार्यों, निर्णयों, और स्थानीय मुद्दों पर नियमन करती है। वर्ष 1993 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।

प्रश्न-5. केन्द्र सरकार के एक प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की भूमिका का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:- राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिष्ठान और प्रतिनिधित्व करने वाले एक महत्वपूर्ण आदर्श अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं। उनका प्रमुख कार्यक्षेत्र राज्य में केंद्र-राज्य संबंधों की समन्वय करना होता है। वे केंद्र सरकार की नीतियों, दिशानिर्देशों और सिद्धांतों का पालन करने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। उनके पास निम्नलिखित कार्यक्षेत्र होते हैं:

  1. विधिमान समय से विधेयक पास करना: राज्यपाल का कार्य होता है संसद द्वारा पास किए गए विधेयकों को विधिमान समय पर पास करना और उन्हें संविधान के तात्कालिक प्रमुख के पैसे द्वारा पढ़ने के लिए प्रेषित करना।
  2. राज्य सरकार के सलाहकार और सहायक: उन्हें सलाह देने की अधिकार होती है राज्य सरकार के मामलों में और केंद्र सरकार की नीतियों को राज्य में प्रायोजित करने में।
  3. विभिन्न कार्यक्षेत्रों में सहयोग: उनका कार्य विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करना होता है जैसे कि न्यायिक, शिक्षा, सामाजिक और आर्थिक विकास क्षेत्र में।

राज्यपाल का यह पद केंद्र और राज्य के बीच संवाद में माध्यमिक भूमिका निभाता है जो समाज में समानता, सद्भावना और एकता को सुनिश्चित करने में मदद करता है

प्रश्न-4. भारत में न्यायिक सक्रियता पर टिप्पणी कीजिए ?

उत्तर:-न्यायिक सक्रियता राज्य के कार्यों की जांच करने के लिए न्यायालयों के अधिकार का उपयोग करने की प्रथा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के पास किसी भी विधायी, कार्यकारी या प्रशासनिक कार्रवाई को असंवैधानिक और शून्य मानने की शक्ति है। न्यायिक सक्रियता भारतीय न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण योगदान है। यह न्यायिक शाखा के निर्णयों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को हल करने में सहायक होती है। यहां न्यायिक सक्रियता का प्रयोग समाज के अधिकारों की रक्षा करने, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में और न्याय की पुनर्स्थापना में होता है। यह सामाजिक सुधार और सामाजिक न्याय को सफलतापूर्वक साबित करता है।

प्रश्न-6. भारतीय निर्वाचन प्रणाली में सुधार के सुझाव दीजिए ?

उत्तर:- भारतीय निर्वाचन प्रणाली में सुधार के निम्नलिखित सुझाव हो सकते हैं:

  1. वोटर आईडी कार्ड में सुरक्षा और गुणवत्ता की सुनिश्चितता: वोटर आईडी कार्डों में और वोटर रजिस्ट्रेशन में गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित जानकारी की सुनिश्चितता बढ़ाने के लिए और तंत्रिका प्रणाली का उपयोग करने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं।
  2. कार्यपालिका चुनावों में वित्तीय प्रतिबंधन: कार्यपालिका चुनावों में उम्मीदवारों की खर्चीली व्यय को नियंत्रित करने के लिए वित्तीय प्रतिबंधन लागू करने का प्रयास किया जा सकता है।
  3. चुनावी वित्तीय प्रवृत्तियों का प्रशासन: चुनावों में धन के व्यय को प्रशासन करने के लिए स्थानीय प्राधिकृता निकायों की निगरानी बढ़ाई जा सकती है ताकि अनुचित व्यय और अनुष्ठान की रूपरेखा बनाई जा सके।
  4. मॉनिटरिंग और प्रशासनिक सुधार: चुनावी प्रक्रिया की निगरानी, विफलताओं का निपटारा, और सुधार के लिए मॉनिटरिंग और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता हो सकती है।
  5. निष्पक्ष और उच्चतम स्तर की निगरानी: चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए उच्चतम स्तर की निगरानी और न्यायिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता हो सकती है।
  6. शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम: जनता को निर्वाचन प्रक्रिया के बारे में जागरूक करने के लिए शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं, ताकि वे अपने मताधिकार का सही उपयोग कर सकें।

इन सुझावों के माध्यम से भारतीय निर्वाचन प्रणाली में सुधार किए जा सकते हैं और राजनीतिक प्रक्रिया को न्यायसंगत, सामर्थ्यपूर्ण और स्वतंत्र बनाया जा सकता है। इनके अलावा निम्न सुझाव भी दिए जा सकते हैं –

  • मत-पत्र के प्रयोग के बजाय एलेक्ट्रानिक मतदान मशीन द्वारा मतदान
  • स्वैच्छिक मतदान के बजाय अनिवार्य मतदान
  • नकारात्मक मत का विकल्प
  • ‘किसी को मत नहीं’ (नोटा) का विकल्प
  • चुने हुए प्रतिनिधियों को हटाने या बुलाने की व्यवस्था
  • मत-गणना की सही विधि का विकास
  • स्त्रियों एवं निर्बल समूहों के लिए सीटों का आरक्षण
प्रश्न-7. भारतीय राजनीति की वर्तमान प्रकृति को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-संविधान के अनुसार, भारत एक प्रधान, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक राज्य है, जहां पर विधायिका जनता के द्वारा चुनी जाती है। राजनीतिक सिद्धांत राज्य और उसकी कार्यकारी सरकार के व्यवस्थित अध्ययन से जुड़ा है। यह राज्य और सरकार से संबंधित विचारों का वर्णन और विश्लेषण करता है। यह उनके वास्तविक संदर्भ में राजनीतिक घटनाओं की व्याख्या करता है। यह संस्थानों का मूल्यांकन करता है और अच्छे राज्य और अच्छे समाज की संभावनाओं की जांच करता है।

प्रश्न-8. नीति-निदेशक तत्वों का महत्व और प्रासंगिकता क्या है ?

उत्तर:-राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत सरकार को दिए गए कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश हैं ताकि वह उसके अनुसार काम कर सके और कानून और नीतियां बनाते समय उनका उल्लेख कर सके , नीति निदेशक तत्व जनसाधारण को शासन की सफलता अथवा असफलता की जांच करने का मापदंड प्रदान करते है।राज्य के नीति निदेशक तत्व का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का निर्माण करना है जिसके तहत नागरिक एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकें। उनका उद्देश्य कल्याणकारी राज्य के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना भी है।

प्रश्न-9. “भारत के द्वारा संघात्मक व्यवस्था अपनाया गया है, तदापि यहाँ एकल नागरिकता का ही प्रावधान किया गया है।” इस कथन को समझाईए।

उत्तर:-

प्रश्न-10. भारतीय संसद की प्रशासकीय शक्तियां क्या हैं?

उत्तर:-भारतीय संसद एक शक्तिशाली संस्था है जो देश के शासन और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसद के पास कानून बनाने, सरकार की नीतियों की जांच करने, बजट को मंजूरी देने और कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने की शक्ति है। संसद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य विधि निर्माण करना है। उसे संघ सूची तथा समवर्ती सूची के सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।

प्रश्न-11. भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:-भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। अनुच्छेद 25 से 28 में संविधान के तहत धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी है। प्रत्येक भारतीय नागरिक को अपने धर्म का शांतिपूर्वक अभ्यास करने और बढ़ावा देने का अधिकार है

प्रश्न-12. मौलिक अधिकार पर एक टिप्पणी लिखिए ?

उत्तर:-मौलिक अधिकारों के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति पूरी स्वतंत्रता एवं सम्मान के साथ अपना जीवन जी सकता है। मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति की सांस्कृतिक एवं धार्मिक हितों की रक्षा करते है। मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है, लेकिन समय की परिस्थिति के अनुसार इनमें संशोधन किया जा सकता है।

प्रश्न-13. “राज्यपाल मात्र संवैधानिक प्रमुख से अधिक है। ” स्पष्ट कीजिए

उत्तर:-राज्यपाल, राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। वह मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है परंतु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्रिपरिषद की तुलना में बहुत सुरक्षित है। वह राष्ट्रपति के समान असहाय नहीं है

प्रश्न-14. भारतीय राजनीति में जातिवाद से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर:-

प्रश्न-15. भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर एक टिप्पणी लिखिए ?

उत्तर:-न्यायपालिका की स्वतंत्रता या न्यायिक स्वातंत्र्य (Judicial independence) से आशय यह है कि न्यायपालिका को सरकार के अन्य अंगों (विधायिका और कार्यपालिका) से स्वतन्त्र हो। इसका अर्थ है कि न्यायपालिका सरकार के अन्य अंगों से, या किसी अन्य निजी हित-समूह से अनुचित तरीके से प्रभावित न हो। यह एक महत्वपूर्ण परिकल्पना है।

प्रश्न-16. भारत में हाल ही में अवसरवादिता तथा सिद्धान्त रहित गठबंधन की राजनीति की बढ़ती प्रवृत्तियों पर एक टिप्पणी लिखिये।

उत्तर:-

प्रश्न-17. राज्यपाल की शक्तियों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-18. लोक सभा और राज्य सभा के अन्तर सम्बन्ध की विवेचना कीजिए ।

उत्तर:-

प्रश्न-19. भारतीय दलीय व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिए ? और उसकी विशेषताए भी लिखिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-20. सर्वोच्च न्यायालय की प्रमुख शक्तियों के बारे में समझाए ?

उत्तर:-

Section-C

प्रश्न-1. लोकसभा की शक्तियों का परीक्षण कीजिए एवं विवेचना कीजिए 

उत्तर:-

प्रश्न-2. निम्न पर टिप्पणी करो –
अ) राष्ट्रपति कार्य शक्ति

ब) मौलिक अधिकार

स) लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण

द) केंद राज्य संबंध के बीच विवाद

प्रश्न-3. वर्तमान में गठबंधन की राजनीति ही स्थायी शासन का विकल्प हो सकता है। स्पष्ट कीजिए

उत्तर:-

प्रश्न-4.  भारतीय संसद की शक्तियों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

  1. संसद संघीय तथा समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाती है। …
  2. केन्द्र के वित्त पर भी संसद को पूर्ण अधिकार है। …
  3. कार्यकारिणी पर भी संसद को पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है। …
  4. संविधान के संशोधन में भी संसद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
  1. कानून निर्माण की शक्ति: संसद के पास कानून निर्माण की महत्वपूर्ण शक्ति है। सदस्यों की सभी सदनों में प्रस्तावित विधेयकों की पारिति होती है और उन्हें कानून के रूप में लागू किया जाता है।
  2. वित्तीय नियंत्रण की शक्ति: संसद वित्तीय बजट की पारिति करके सरकार के खर्चों को नियंत्रित करती है। यह सुनिश्चित करती है कि सरकार वित्तीय व्यय को विवेकपूर्ण और विकासमूलक तरीके से करे।
  3. सरकार के प्रशासनिक कार्यों की निगरानी: संसद सरकार के प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करती है और सरकारी प्रक्रियाओं में त्रुटियों की सुचना प्राप्त करके उन्हें सुधारने की मांग करती है।
  4. संविधानिक नियमों की रक्षा: संसद भारतीय संविधान की रक्षा करती है और संविधान में दिए गए मूल अधिकारों की पालन करने का सुनिश्चित करती है।
  5. सरकार के नेतृत्व की मान्यता देने की शक्ति: संसद से मंजूरी प्राप्त करने के बिना, सरकार किसी भी निर्णय की प्राधिकृता अधिकारी के रूप में कार्रवाई नहीं कर सकती।
  6. नेतृत्व और मंत्री पर सवाल करने की शक्ति: संसद सदस्यों को विभागीय मंत्रियों के प्रति सवाल करने और उनके कार्रवाईयों की निगरानी करने का अधिकार देती है।
  7. विदेशी मामलों में शामिल होने की शक्ति: संसद भारतीय सरकार के विदेशी मामलों में भी शामिल होने की शक्ति रखती है और विदेशी नीतियों की मान्यता प्रदान करती है।
  8. राजनीतिक दलों के बीच सांझा काम करने की शक्ति: संसद विभिन्न राजनीतिक दलों को एक साथ काम करने की शक्ति देती है ताकि देश की प्रगति में सहमति हासिल की जा सके।

भारतीय संसद के पास ये शक्तियाँ होने से वह देश की समृद्धि, सामाजिक समानता, और सुरक्षा में सहायक होती है और देश के सभी नागरिकों के हित में काम करती है

प्रश्न-5. भारत में राजनैतिक दलों द्वारा अपनाई जा रही चुनावी राजनीति पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर:-

प्रश्न-6. भारतीय राज व्यवस्था में बहुदलीय व्यवस्था के प्रभावों का विश्लेषण कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-7. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों की प्रकृत्ति और महत्त्व का परीक्षण करें।

उत्तर:-

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