VMOU HD-05 Paper BA 3rd Year ; vmou exam paper 2024
नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA 3rd Year के लिए हिंदी साहित्य ( HD-05 , आधुनिक काव्य ) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –
Section-A
प्रश्न-1. किन्हीं चार लम्बी कविताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:-
- भागी हुई लड़कियाँ आलोकधन्वा
- मुसलमान देवी प्रसाद मिश्र
- घर की याद भवानीप्रसाद मिश्र
- राम की शक्ति-पूजा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- अँधेरे में गजानन माधव मुक्तिबोध
- सरोज-स्मृति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- सफ़ेद रात आलोकधन्वा
- असाध्य वीणा अज्ञेय
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प्रश्न-2. आचार्य शुक्ल ने आधुनिक काल को क्या नाम दिया था ?
उत्तर:- ‘गद्यकाल’
प्रश्न-3. आधुनिक काल में कविता की भाषा कौनसी थी ?
उत्तर:-
प्रश्न-4. मुक्तिबोध का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:- गजानन माधव मुक्तिबोध
प्रश्न-5. ‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता के लेखक का नाम लिखिए ?
उत्तर:- सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न-6. किसी एक प्रसिद्ध शोकगीत का नाम लिखिए।
उत्तर:- सरोज स्मृति १९३५ ई. में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखी लंबी कविता और एक शोकगीत है।
प्रश्न-7. मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित दो खण्डकाव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:- जयद्रथवध, साकेत, पंचवटी, सैरन्ध्री, बक संहार, यशोधरा, द्वापर, नहुष, जयभारत, हिडिम्बा, विष्णुप्रिया एवं रत्नावली आदि रचनाएं इसके उदाहरण हैं।
प्रश्न-8. खंड काव्य किसे कहते हैं ?
उत्तर:- खण्डकाव्य साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप है। जीवन की किसी घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खण्डकाव्य है। “खण्ड काव्य’ शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है। जिसमें चरित नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित नहीं करता।
प्रश्न-9. सुमित्रानंदन पंत रचित लम्बी कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:- सुमित्रानंदन पंत रचित प्रमुख रचनाओं में उच्छवास, पल्लव, मेघनाद वध, बूढ़ा चांद आदि
प्रश्न-10. ‘सरोजस्मृति’ कविता किसकी स्मृति में लिखी गई कविता है?
उत्तर:- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
प्रश्न-11. मुक्तिबोध की किन्हीं दो काव्य रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:-
- ब्रह्म राक्षस: यह मुक्तिबोध की सबसे लंबी और महत्वाकांक्षी कविता है। इसमें उन्होंने आधुनिक जीवन की जटिलताओं, विरोधाभासों और संघर्षों का चित्रण किया है।
- चाँद का मुँह टेढ़ा है: यह मुक्तिबोध की एक और प्रसिद्ध कविता है। इसमें उन्होंने सामाजिक यथार्थवाद और मानवीय पीड़ा को व्यक्त किया है।
प्रश्न-12. ‘कुआनों नदी’ के रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:- कुआनो नदी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता।
प्रश्न-13. नरेश मेहता के दो खण्ड काव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:-
- अरण्या चैत्या: यह खंडकाव्य महाभारत के वनपर्व पर आधारित है। इसमें अरण्यवास के दौरान पांडवों के जीवन, उनके संघर्षों और उनके चरित्रों का चित्रण किया गया है।
- पुरुष प्रवाद पर्व: यह खंडकाव्य भी महाभारत पर आधारित है। इसमें युद्ध के बाद के घटनाक्रमों, शांति स्थापना के प्रयासों और पाण्डवों के राज्याभिषेक का वर्णन किया गया है।
प्रश्न-14. हालावाद का प्रवर्तक किसे माना जाता है ?
उत्तर:- हालावाद के प्रवर्तक कवि हरिवंश राय बच्चन जी है।
प्रश्न-15. लम्बी कविता का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- लम्बी कविता के लिए काव्यशास्त्रीय विधि नियम गैरजरूरी और बांझ हो जाते हैं क्योंकि संवेदना का सर्वथा नवीन रूप, आधुनिक जीवन की विसंगति और युगीन जटिल यथार्थ के लिए भावों का निर्बाध प्रवाह बन्धनरहित शैली में ही संभव है । सक्रांति बेला के दौर से गुजर रही हो में लम्बी कविता की प्रेरणा निहित होती है।
प्रश्न-16. ‘कनुप्रिया’ के रचयिता का नाम बताइए।
उत्तर:- Dharamvir Bharati (धर्मवीर भारती)
प्रश्न-17. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के किन्हीं चार काव्य संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:- निराला की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं- परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज आदि ।
प्रश्न-18. ब्रह्म राक्षस’ कविता की मूल संवेदना लिखिए।
उत्तर:- “ब्रह्मराक्षस” एक हिंदी कविता है जो ब्रह्मराक्षस नामक एक पौराणिक प्राणी की कहानी कहती है। कविता अलौकिक ताकतों और अहंकार और लालच के परिणामों के खिलाफ मानव संघर्ष के विषय की पड़ताल करती है। कविता में, ब्रह्मराक्षस को एक शक्तिशाली और द्रोही प्राणी के रूप में दर्शाया गया है जो कभी मानव था।
प्रश्न-19. मुक्तिबोध की दो लम्बी कविताओं के नाम बताइए।
उत्तर:- अंधेरे में , एक अंतर्कथा , कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं
प्रश्न-20. अज्ञेय की चर्चित लम्बी कविता ‘असाध्य वीणा’ मूलतः किस संग्रह में प्रकाशित हुई ?
उत्तर:- ‘असाध्य वीणा’ अज्ञेय के आँगन के पार द्वार कविता संग्रह में है। आँगन के पार द्वार-काव्य संग्रह अज्ञेय द्वारा 1961ई. में रचित है।
प्रश्न-21. धूमिल की लम्बी कविता ‘पटकथा’ किस संग्रह में प्रकाशित हुई ?
उत्तर:- ये कविताएँ हैं– मोचीराम, प्रौढ़ शिक्षा और पटकथा। ये तीनों लम्बी कविताएँ उनके पहले काव्यसंग्रह, संसद से सड़क तक ( सन् 1972) में संकलित हैं।
प्रश्न-22. ‘कुआनो नदी’ कविता का उद्देश्य बताइए।
उत्तर:- “कुआनो नदी खतरे का निशान ” कविता में बाढ़ की भयावह स्थिति, अपनी गृहस्थी के समान को बचा लेने की जद्दोजहद, सरकारी रक्षा – तंत्र के निरूपाय उपायों के बीच मानवमात्र की जिजीविषा के साथ कवि ने आम जनता को बाढ़ के खतरे के निशान से बचने के लिए मार्गदर्शन और ऊर्जा भी दी है।
Section-B
प्रश्न-1.हरिवंश राय बच्चन के व्यक्तित्व व कृतित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- हरिवंश राय बच्चन: व्यक्तित्व और कृतित्व का संक्षिप्त विवरण
व्यक्तित्व:
हरिवंश राय बच्चन, जिन्हें “महाकवि” के नाम से भी जाना जाता है, हिंदी साहित्य के एक विशाल स्तंभ थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी और प्रेरणादायक था।
- साहसी और निडर: बच्चन जी अपनी बेबाक राय और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बोलने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने जातिवाद, छुआछूत और अन्याय जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई।
- दार्शनिक और विचारशील: बच्चन जी के जीवन और रचनाओं में गहरे दार्शनिक और विचारशील पहलू थे। उन्होंने जीवन, मृत्यु, प्रेम, नैतिकता और मानवीय स्थिति पर गहन चिंतन किया।
- रसिक और हास्यप्रिय: बच्चन जी जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते थे और उनमें हास्य का भी अच्छा बोध था। उनकी रचनाओं में अक्सर हास्य और व्यंग्य का प्रयोग मिलता है।
- सर्वांदिक: बच्चन जी ने कविता, गद्य, नाटक, अनुवाद, आत्मकथा और निबंध सहित साहित्य की लगभग सभी विधाओं में रचना की।
कृतित्व:
हरिवंश राय बच्चन ने हिंदी साहित्य को अमूल्य रत्न प्रदान किए हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं:
कविता:
- मधुशाला
- निशा निमंत्रण
- मृगलोक
- आँसू
- सोती हुई पृथ्वी
गद्य:
- अलका
- कर्मवीर
- बसेरे से दूर
- नीड़ का निर्माण
नाटक:
- अरुण
- हार की जीत
आत्मकथा:
- काया को बदलता देख
अनुवाद:
- ओथेलो (शेक्सपियर)
- मैकबेथ (शेक्सपियर)
पुरस्कार और सम्मान:
- कमल पुरस्कार (1986)
- पद्म भूषण (1955)
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1965)
- पद्म विभूषण (1976)
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प्रश्न-2. ‘दो चट्टानें’ कविता का मूल कथ्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:- ‘दो चट्टानें’ कविता का मूल कथ्य: प्रकृति और मानव जीवन का द्वंद्व
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘दो चट्टानें’ कविता प्रकृति और मानव जीवन के बीच द्वंद्व को दर्शाती है। यह कविता दो विशाल चट्टानों, जो कि गंगा नदी के किनारे स्थित हैं, के माध्यम से प्रकृति की शक्ति और स्थायित्व का चित्रण करती है। वहीं दूसरी ओर, मानव जीवन क्षणभंगुर और परिवर्तनशील है।
कविता के मुख्य भाव:
मृत्यु का स्वीकार: अंत में, कवि मृत्यु को स्वीकार करता है। मृत्यु जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है।
प्रकृति की शक्ति और स्थायित्व: कवि चट्टानों को प्रकृति का प्रतीक मानते हैं। चट्टानें हजारों सालों से अटल खड़ी हैं, नदी के तेज बहाव और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करती रही हैं।
मानव जीवन की क्षणभंगुरता: मानव जीवन चट्टानों की तुलना में क्षणभंगुर और परिवर्तनशील है। मनुष्य जन्म लेता है, बूढ़ा होता है और मृत्यु को प्राप्त करता है।
संघर्ष और विजय: कविता में यह भी दर्शाया गया है कि मानव जीवन में अनेक संघर्ष होते हैं। मनुष्य इन संघर्षों का सामना हार मानकर नहीं, बल्कि चट्टानों की तरह दृढ़ता और साहस के साथ करता है।
आशा और निराशा: जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी-कभी निराशा का सामना करना पड़ता है, लेकिन मनुष्य आशा का त्याग नहीं करता और आगे बढ़ने का प्रयास करता है।
प्रश्न-3. लम्बी कविता का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके शिल्प पर विचार कीजिए।
उत्तर:- लम्बी कविता युग की अनिवार्यता के साथ कवि कर्म की विवशता से भी जुड़ी हुई है। अतः यह ज़रूरी है कि इस काव्य माध्यम के ज़रिए साहित्यिक रूढ़िवादिता से मोर्चा लिया जाये । समकालीन यथार्थ बोध और आधुनिक संश्लिष्ट जीवन की जटिल अभिव्यक्ति के अनुरूप पुराने काव्य-रूप अपने कलेवर में परिवर्तन नहीं कर पाते ।लम्बी कविता, जिसे महाकाव्य या खंडकाव्य के नाम से भी जाना जाता है, एक विस्तृत रचना होती है जिसमें अनेक छंद होते हैं। यह एक विशिष्ट कथा या भावना पर केंद्रित होती है और अक्सर इसमें गहन चरित्र चित्रण, जटिल कथानक और प्रतीकात्मकता का समावेश होता है। लम्बी कविताएं अक्सर ऐतिहासिक घटनाओं, पौराणिक कथाओं या सामाजिक मुद्दों से प्रेरित होती हैं।
प्रश्न-4. खण्डकाव्य की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:- खंडकाव्य की विशेषताएं:
खंडकाव्य, महाकाव्य का ही एक रूप है, लेकिन इसमें महाकाव्य की तुलना में कुछ कम विशेषताएं होती हैं।
- 1. आकार: खंडकाव्य महाकाव्य की तुलना में आकार में छोटा होता है। इसमें आमतौर पर कुछ सौ से लेकर हजारों छंद तक होते हैं।
- 2. विषयवस्तु: खंडकाव्य का विषयवस्तु महाकाव्य की तरह व्यापक नहीं होता है। यह किसी एक विशेष घटना, चरित्र या भावना पर केंद्रित होता है।
- 3. कथानक: खंडकाव्य का कथानक अपेक्षाकृत सरल और सीधा होता है। इसमें महाकाव्य की तरह अनेक उपकथाएं और जटिलताएं नहीं होती हैं।
- 4. पात्र: खंडकाव्य में पात्रों की संख्या भी कम होती है।
- 5. शैली: खंडकाव्य की शैली महाकाव्य की तरह ही होती है। इसमें भी वर्णनात्मक, गीतात्मक और कथात्मक शैली का प्रयोग होता है।
- 6. भाषा: खंडकाव्य की भाषा भी महाकाव्य की तरह ही परिष्कृत और प्रभावशाली होती है।
- 7. छंद: खंडकाव्य में अनेक प्रकार के छंदों का प्रयोग किया जा सकता है।
- 8. उदाहरण:
- सुमित्रानंदन पंत जी का “पल्लव”
- प्रसाद जी का “कामायनी”
- मैथिलीशरण गुप्त जी का “पंचवटी”
प्रश्न-5. प्रवाद पर्व का अनुभूति पक्ष स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- प्रवाद पर्व का अनुभूति पक्ष: भावनाओं का तूफान , प्रवाद पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाता है। इस पर्व का अनुभूति पक्ष अत्यंत गहन और भावनात्मक होता है।
प्रमुख भावनाएं:
- आनंद और उत्साह: भगवान कृष्ण के जन्म का समाचार सुनकर लोगों में अत्यधिक आनंद और उत्साह का वातावरण होता है। घरों और मंदिरों को सजाया जाता है, दीप जलाए जाते हैं, और मिठाइयां वितरित की जाती हैं।
- भक्ति और श्रद्धा: लोग भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं, भजन गाते हैं, और उनकी लीलाओं का स्मरण करते हैं।
- प्रेम और स्नेह: यह पर्व प्रेम और स्नेह का भी प्रतीक है। लोग एक दूसरे से मिलते हैं, बधाई देते हैं, और मिठाइयां बांटते हैं।
- आशा और विश्वास: भगवान कृष्ण को अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व के माध्यम से लोग बुराई पर अच्छाई की विजय की आशा करते हैं।
- कृतज्ञता: लोग भगवान कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
उदाहरण:
“कृपा करो मुरारी, हम सब पर दया करो, पापों से मुक्ति दिलाओ, जीवन में सुख भर दो” – यह प्रार्थना भगवान कृष्ण के प्रति लोगों की कृतज्ञता को दर्शाती है। “कन्हैया लाल की जय श्री कृष्ण की जय” – यह नारा लोगों के उत्साह और आनंद को दर्शाता है। “राधा रानी के लाल, मोहन प्यारे, आज तुम्हारा जन्मदिन, सबके मन में हर्ष अपार” – यह भजन भगवान कृष्ण के प्रति लोगों की भक्ति और श्रद्धा को दर्शाता है। “कान्हा आए हैं, खुशियां लाए हैं, दुखों को दूर भगाए हैं” – यह गीत भगवान कृष्ण के प्रेम और स्नेह को दर्शाता है। “अंधकार मिटाएगा, गोपाल आएगा, नई रोशनी लाएगा” – यह पंक्तियां भगवान कृष्ण के प्रति लोगों की आशा और विश्वास को दर्शाती हैं।
प्रश्न-6. ‘परिवर्तन’ कविता में वर्तमान के प्रति गहरा असंतोष व्यक्त हुआ है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- ‘परिवर्तन’ कविता में वर्तमान के प्रति गहरा असंतोष: उदाहरणों सहित विवेचना
सुमित्रानंदन पंत की कविता “परिवर्तन” 20वीं शताब्दी के आरंभिक दौर की रचना है। यह कविता उस समय के समाज में व्याप्त कुरीतियों, अन्याय और अत्याचारों पर कवि का गहरा असंतोष व्यक्त करती है। कवि वर्तमान व्यवस्था से निराश है और वह एक ऐसे समाज की कल्पना करता है जो न्यायपूर्ण, समानतापूर्ण और प्रेमपूर्ण हो।
कविता में वर्तमान के प्रति असंतोष व्यक्त करने के कुछ उदाहरण:
- “जग जीवन मृतक, श्वास घुट रहा है।” – यह पंक्ति उस समय के समाज में व्याप्त निराशा और हताशा को दर्शाती है।
- “अंधकारमय घन छाए हैं चारों ओर।” – यह पंक्ति अज्ञानता, अन्याय और अत्याचारों को दर्शाती है।
- “स्वार्थ का तांडव है, नीति मिट रही है।” – यह पंक्ति उस समय के समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनैतिकता को दर्शाती है।
- “कहाँ प्रेम का दीप, कहाँ स्नेह का जल।” – यह पंक्ति प्रेम और स्नेह की कमी को दर्शाती है।
- “मानवता रोती है, पीड़ा से कराहती है।” – यह पंक्ति मानव जाति की पीड़ा और दुख को दर्शाती है।
कवि एक ऐसे समाज की कल्पना करता है:
- “जहाँ न हो अंधकार, जहाँ न हो भय।”
- “जहाँ न हो स्वार्थ, जहाँ न हो द्वेष।”
- “जहाँ प्रेम का प्रकाश फैले चारों ओर।”
- “जहाँ मानवता सुखी और समृद्ध हो।”
निष्कर्ष:
“परिवर्तन” कविता न केवल उस समय के समाज की एक सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करती है, बल्कि यह हमें एक बेहतर भविष्य के लिए प्रेरित भी करती है। यह कविता हमें सिखाती है कि हमें वर्तमान की बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और एक न्यायपूर्ण, समानतापूर्ण और प्रेमपूर्ण समाज के निर्माण के लिए प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न-7. ब्रह्मराक्षस कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए
उत्तर:- ब्रह्मराक्षस कविता का सारांश:
मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता “ब्रह्मराक्षस” आधुनिक समाज की विसंगतियों और विरोधाभासों का चित्रण करती है। यह कविता एक ऐसे व्यक्ति की मनोदशा को व्यक्त करती है जो समाज में व्याप्त बुराइयों से निराश और हताश है।
कविता का मुख्य पात्र एक विचारक है जो समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, शोषण और अन्याय को देखकर व्यथित है। वह इन बुराइयों के खिलाफ लड़ने का प्रयास करता है, लेकिन उसे हर तरफ से निराशा ही मिलती है।
कविता में अनेक प्रतीकों का प्रयोग किया गया है जो समाज की विभिन्न बुराइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- “ब्रह्मराक्षस” अंधविश्वास और रूढ़िवादिता का प्रतीक है।
- “मृत बावड़ी” समाज की जड़ता और गतिहीनता का प्रतीक है।
- “कंकाल” मृत्यु और विनाश का प्रतीक है।
- “रक्त” क्रूरता और हिंसा का प्रतीक है।
कविता का अंत निराशाजनक है। विचारक हार मान लेता है और वह समाज से दूर एकांत में चले जाता है।
लेकिन, कविता का संदेश नकारात्मक नहीं है। यह हमें प्रेरित करती है कि हम समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाएं और एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रयास करें।
प्रश्न-8. खण्ड काव्य परम्परा एवं विकास पर लेख लिखिए ?
उत्तर:- खंडकाव्य परम्परा एवं विकास:
परिचय:
हिंदी साहित्य में खंडकाव्य का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह महाकाव्य का ही लघु रूप है, जिसमें महाकाव्य की तुलना में कम विशेषताएं होती हैं। खंडकाव्य में आमतौर पर कुछ सौ से लेकर हजारों छंद तक होते हैं।
इतिहास:
खंडकाव्य परम्परा का उद्भव संस्कृत साहित्य में हुआ माना जाता है। संस्कृत के अनेक प्रसिद्ध खंडकाव्य हैं, जैसे कि “अभिज्ञानशाकुंतलम्” (कालिदास) और “सीताचरितम्” (भास)।
हिंदी साहित्य में खंडकाव्य की शुरुआत मध्यकाल में हुई। भक्तिकाल के अनेक कवियों ने खंडकाव्य लिखे, जैसे कि “सूरदास” का “भागवत” और “तुलसीदास” का “रामचरितमानस”।
आधुनिक काल में भी खंडकाव्य रचना की गयी है। कुछ प्रसिद्ध आधुनिक खंडकाव्य हैं, जैसे कि “प्रसाद जी” का “कामायनी”, “मैथिलीशरण गुप्त जी” का “पंचवटी” और “सुमित्रानंदन पंत जी” का “पल्लव”।
विशेषताएं:
- आकार: खंडकाव्य महाकाव्य की तुलना में छोटा होता है।
- विषयवस्तु: खंडकाव्य का विषयवस्तु महाकाव्य की तरह व्यापक नहीं होता है। यह किसी एक विशेष घटना, चरित्र या भावना पर केंद्रित होता है।
- कथानक: खंडकाव्य का कथानक अपेक्षाकृत सरल और सीधा होता है।
- पात्र: खंडकाव्य में पात्रों की संख्या भी कम होती है।
- शैली: खंडकाव्य की शैली महाकाव्य की तरह ही होती है। इसमें भी वर्णनात्मक, गीतात्मक और कथात्मक शैली का प्रयोग होता है।
- भाषा: खंडकाव्य की भाषा भी महाकाव्य की तरह ही परिष्कृत और प्रभावशाली होती है।
- छंद: खंडकाव्य में अनेक प्रकार के छंदों का प्रयोग किया जा सकता है।
प्रकार:
खंडकाव्य को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि:
- धार्मिक खंडकाव्य: इन खंडकाव्यों में धार्मिक विषयों का चित्रण होता है।
- पौराणिक खंडकाव्य: इन खंडकाव्यों में पौराणिक कथाओं का वर्णन होता है।
- ऐतिहासिक खंडकाव्य: इन खंडकाव्यों में ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण होता है।
- सामाजिक खंडकाव्य: इन खंडकाव्यों में सामाजिक मुद्दों पर विचार किया जाता है।
- मनोवैज्ञानिक खंडकाव्य: इन खंडकाव्यों में मानवीय मनोविज्ञान का अध्ययन किया जाता है।
उदाहरण:
- मनोवैज्ञानिक खंडकाव्य: “कामायनी” (जयशंकर प्रसाद), “आँसू” (सुमित्रानंदन पंत)
- धार्मिक खंडकाव्य: “भागवत” (सूरदास), “रामचरितमानस” (तुलसीदास)
- पौराणिक खंडकाव्य: “अभिज्ञानशाकुंतलम्” (कालिदास), “सीताचरितम्” (भास)
- ऐतिहासिक खंडकाव्य: “हेमाचंद्र” (जयशंकर प्रसाद), “अकबर” (मैथिलीशरण गुप्त)
- सामाजिक खंडकाव्य: “पंचवटी” (मैथिलीशरण गुप्त), “कर्मभूमि” (जयशंकर प्रसाद)
प्रश्न-9. हरिवंश राय बच्चन के कृतित्व पर टिप्पणी लिखिए
उत्तर:- हरिवंश राय बच्चन: हिंदी साहित्य के महानायक
परिचय:
हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) हिंदी साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित कवियों और लेखकों में से एक थे। उन्हें “हिंदी के नवीनतम कवि” और “हिंदी साहित्य के महानायक” के रूप में जाना जाता है।
कृतित्व:
बच्चन जी ने कविता, गद्य, आत्मकथा, अनुवाद और नाटक सहित विभिन्न विधाओं में रचनाएँ कीं। उनकी रचनाओं में भावनाओं की गहराई, विचारों की स्पष्टता और भाषा की प्रभावशाली शैली का समावेश है।
काव्य रचनाएँ:
- मधुशाला: यह बच्चन जी की सबसे प्रसिद्ध रचना है। इसमें उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया है।
- निशा निमंत्रण: यह बच्चन जी की एक भावुक कविता है। इसमें उन्होंने प्रेम, जीवन और मृत्यु पर विचार व्यक्त किए हैं।
- सोत: यह बच्चन जी की एक प्रगतिशील कविता है। इसमें उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर विचार व्यक्त किए हैं।
गद्य रचनाएँ:
- आँखें: यह बच्चन जी की आत्मकथा है। इसमें उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न अनुभवों का वर्णन किया है।
- बसेरे से दूर: यह बच्चन जी की यात्रा वृत्तांत है। इसमें उन्होंने अपनी विदेश यात्राओं का वर्णन किया है।
- अग्निपथ: यह बच्चन जी का एक प्रसिद्ध उपन्यास है। इसमें उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक युवा क्रांतिकारी का चित्रण किया है।
अनुवाद:
बच्चन जी ने अनेक अंग्रेजी नाटकों का हिंदी में अनुवाद किया। उनके प्रसिद्ध अनुवादों में “शेक्सपियर” के नाटक शामिल हैं।
नाटक:
बच्चन जी ने कुछ नाटक भी लिखे। उनके प्रसिद्ध नाटकों में “अलका” और “मिलन” शामिल हैं।
सम्मान:
बच्चन जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मानों से सम्मानित किया गया। उन्हें पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार मिले।
विरासत:
हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य के एक स्तंभ हैं। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है और वे आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।
प्रश्न-10. निराला रचित ‘सरोज स्मृति’ के शिल्प पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:-
प्रश्न-11. आधुनिक काव्य की पृष्ठभूमि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:- आधुनिक काव्य का उदय 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के दौर में हुआ। इस कालखंड को अनेक चरणों में बांटा जा सकता है:
1. भारतेंदु युग (1868-1905):
- इस युग की शुरुआत भारतेंदु हरिश्चंद्र से मानी जाती है।
- इस काल में राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ और साहित्य में नवीनता लाने का प्रयास किया गया।
- रीतिकालीन परंपराओं से मुक्ति और सामाजिक सुधारों पर बल दिया गया।
- प्रमुख कवि: भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रताप नारायण मिश्र, मैथिलीशरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
2. छायावाद युग (1918-1935):
- इस युग में कल्पना, भावना और सौंदर्य पर विशेष ध्यान दिया गया।
- प्रकृति, प्रेम और रहस्यवाद प्रमुख विषय थे।
- भाषा में लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता का प्रयोग हुआ।
- प्रमुख कवि: जयशंकर प्रसाद, प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत
3. प्रगतिवाद युग (1930-1950):
- इस युग में सामाजिक यथार्थवाद और सामाजिक मुद्दों पर ज़ोर दिया गया।
- गरीबी, शोषण, भेदभाव और वर्ग संघर्ष जैसे विषयों को उठाया गया।
- भाषा सरल और सहज थी।
- प्रमुख कवि: नरसिंह प्रसाद ‘निराला’, सुप्रीत, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता
4. प्रयोगवाद युग (1940-1960):
- इस युग में कविता में नए प्रयोग किए गए।
- छंद, भाषा और शैली में विविधता लाने का प्रयास किया गया।
- कविता में अस्पष्टता और रहस्यवाद का समावेश हुआ।
- प्रमुख कवि: गिरिराज शंकर ‘गिरिराज’, अज्ञेय, मुक्तिबोध, तुलसीदास ‘नरेंद्र’, शैलेन्द्र, धूमिल
5. स्वातंत्र्योत्तर काव्य (1950-वर्तमान):
प्रमुख कवि: नरेश मेहता, कृष्णा सोबती, महादेवी वर्मा, धूमिल, अज्ञेय, मुक्तिबोध, शैलेन्द्र, गिरिराज शंकर ‘गिरिराज’, अरुण सहाय, केदारनाथ सिंह, रघुवीर सहाय, जयप्रकाश ‘जैसी’, कुमार विक्रम, आदित्य, अरुणा शर्मा, शीला बजाज, लेनिन चंद्र द्विवेदी, सुभाष चंद्र
इस काल में कविता में अनेक विविधताएं देखने को मिलती हैं।
व्यक्तिगत अनुभव, सामाजिक-राजनीतिक मुद्दे, स्त्री-विमर्श, दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य, पर्यावरणीय चिंताएं, वैश्वीकरण जैसे विषयों पर कविताएं लिखी गईं।
प्रश्न-12. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की ‘सरोज स्मृति’ की भावपक्षीय विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:- सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की ‘सरोज स्मृति’ की भावपक्षीय विशेषताएं:
‘सरोज स्मृति’ सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की एक प्रसिद्ध कविता है, जिसमें उन्होंने अपनी बेटी सरोज के निधन पर दुःख और वेदना व्यक्त की है। यह कविता भावनाओं की तीव्रता और मार्मिकता के लिए जानी जाती है।
इस कविता की भावपक्षीय विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं:
- तीव्र दुःख: निराला अपनी बेटी की मृत्यु से गहरा दुःखी हैं। कविता में वे बार-बार ‘हाय’, ‘आह’, ‘ओह’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो उनके दुःख की तीव्रता को दर्शाते हैं।
- वेदना और पीड़ा: निराला अपनी बेटी की मृत्यु से पीड़ित हैं। वे कविता में ‘पीड़ा’, ‘दुःख’, ‘वेदना’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो उनकी पीड़ा को व्यक्त करते हैं।
- स्मृतियां: निराला अपनी बेटी के साथ बिताए हुए समय को याद करते हैं। वे कविता में उनकी मासूमियत, शरारतें, और हंसी-मजाक को याद करते हैं।
- आत्मग्लानि: निराला अपनी बेटी की मृत्यु के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हैं। वे कविता में ‘मैं पापी’, ‘मैं नीच’, ‘मैं कायर’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो उनकी आत्मग्लानि को दर्शाते हैं।
- आशा और विश्वास: निराला को उम्मीद है कि उनकी बेटी मृत्यु के बाद भी खुश रहेगी। वे कविता में ‘देवों का आंगन’, ‘स्वर्ग’, ‘अमरत्व’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो उनकी आशा और विश्वास को दर्शाते हैं।
‘सरोज स्मृति’ हिंदी साहित्य की एक मार्मिक और भावपूर्ण रचना है। यह कविता एक पिता के दुःख और वेदना को बखूबी व्यक्त करती है।
प्रश्न-13. ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता के काव्य सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:- ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता का काव्य सौंदर्य:
‘ब्रह्मराक्षस’ जयशंकर प्रसाद की एक प्रसिद्ध कविता है। यह कविता आधुनिक जीवन के संकट, अस्तित्ववादी चिंताओं, द्वंद्वात्मकता, सामाजिक परिवर्तन की इच्छा और आशावाद को दर्शाती है।
इस कविता का काव्य सौंदर्य निम्नलिखित विशेषताओं में निहित है:
1. बिम्बविधान:
- प्रसाद जी ने इस कविता में अनेक प्रभावशाली बिम्बों का प्रयोग किया है।
- ‘ब्रह्मराक्षस’ अंधविश्वास और रूढ़िवादिता का प्रतीक है,
- ‘विचारक’ सत्य और प्रगति का प्रतीक है,
- ‘रक्त-बीज’ क्रांति और परिवर्तन का प्रतीक है,
- ‘रक्त-पुष्प’ बलिदान और त्याग का प्रतीक है।
- ये बिम्ब कविता को अर्थपूर्ण और प्रभावशाली बनाते हैं।
2. प्रतीकात्मकता:
- ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता प्रतीकात्मकता से भरपूर है।
- ‘ब्रह्मराक्षस’ केवल एक राक्षस नहीं है, बल्कि यह समाज में व्याप्त बुराइयों का प्रतीक है।
- ‘विचारक’ केवल एक व्यक्ति नहीं है, बल्कि यह सत्य और प्रगति के लिए संघर्ष करने वाले व्यक्ति का प्रतीक है।
- ‘रक्त-बीज’ क्रांति और परिवर्तन की शक्ति का प्रतीक है।
- ‘रक्त-पुष्प’ बलिदान और त्याग की भावना का प्रतीक है।
- प्रतीकात्मकता के माध्यम से प्रसाद जी ने कविता में गहराई और अर्थ लाया है।
3. भाषा:
- प्रसाद जी ने ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता में सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया है।
- भाषा में भावों की तीव्रता और विचारों की गहराई है।
- प्रसाद जी ने अलंकारों का भी प्रभावशाली प्रयोग किया है।
- उपमा, रूपक, प्रतीक, उत्प्रेक्षा जैसे अलंकारों ने कविता को अधिक प्रभावशाली बना दिया है।
4. छंद:
- ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता छंदबद्ध है।
- प्रसाद जी ने ‘वीर रस’ के अनुकूल छंदों का प्रयोग किया है।
- छंदों में लय और गति है, जो कविता को पढ़ने में मधुर बनाते हैं।
5. भाव:
- ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता भावनाओं से भरपूर है।
- कविता में दुःख, वेदना, निराशा, क्रोध, आक्रोश, आशावाद जैसे भावों का चित्रण किया गया है।
- ये भाव कविता को जीवंत और प्रभावशाली बनाते हैं।
निष्कर्ष:
‘ब्रह्मराक्षस’ जयशंकर प्रसाद की एक उत्कृष्ट रचना है। यह कविता काव्य सौंदर्य से भरपूर है और आधुनिक जीवन के अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाती है।
प्रश्न-14. सुमित्रानंदन पन्त की ‘परिवर्तन’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:- सुमित्रानंदन पंत की ‘परिवर्तन’ कविता का प्रतिपाद्य:
सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध कविता “परिवर्तन” जीवन में निरंतर परिवर्तन की प्रक्रिया और उसके विभिन्न पहलुओं का चित्रण करती है। यह कविता दो भागों में विभाजित है:
प्रथम भाग:
- इस भाग में कवि प्रकृति के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हैं।
- वे बताते हैं कि प्रकृति में भी परिवर्तन निरंतर होता रहता है।
- दिन रात, ऋतुएँ, जन्म-मृत्यु, आदि प्रकृति के परिवर्तन के उदाहरण हैं।
- कवि प्रकृति के परिवर्तन को स्वीकार करते हैं और उसे जीवन का सार मानते हैं।
द्वितीय भाग:
- इस भाग में कवि मानव जीवन में परिवर्तन की बात करते हैं।
- वे बताते हैं कि मानव जीवन भी परिवर्तन से भरा है।
- सुख-दुःख, आशा-निराशा, प्रेम-विरह, सफलता-असफलता, आदि मानव जीवन के परिवर्तन के उदाहरण हैं।
- कवि मानव जीवन में परिवर्तन को स्वीकार करते हैं और उसे आगे बढ़ने का मार्ग मानते हैं।
कविता का प्रतिपाद्य:
- परिवर्तन जीवन का सार है: यह कविता हमें सिखाती है कि जीवन में परिवर्तन निरंतर होता रहता है।
- प्रकृति और मानव जीवन, दोनों ही परिवर्तन से भरे हुए हैं।
- हमें परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिए और उससे डरना नहीं चाहिए।
- परिवर्तन प्रगति का मार्ग है: परिवर्तन हमें आगे बढ़ने और विकास करने का अवसर देता है।
- यदि हम परिवर्तन को स्वीकार नहीं करेंगे तो हम जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे।
- आशावाद: यह कविता हमें आशावादी बने रहने का संदेश देती है।
- परिवर्तन भले ही कितना भी कठिन क्यों न हो, हमें हमेशा उम्मीद रखनी चाहिए कि भविष्य बेहतर होगा।
निष्कर्ष:
“परिवर्तन” एक प्रेरक कविता है जो हमें जीवन के सत्यों का सामना करने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
प्रश्न-15. खण्डकाव्य का स्वरूप स्पष्ट करते हुए उसकी परम्परा और विकास को समझाइए।
उत्तर:- खंडकाव्य का स्वरूप, परंपरा और विकास:
खंडकाव्य महाकाव्य से छोटी और मुक्तक से बड़ी काव्य रचना है।
इसकी प्रमुख विशेषताएं:
- आकार: खंडकाव्य का आकार महाकाव्य से कम और मुक्तक से अधिक होता है।
- कथा: इसमें एक ही घटना या प्रसंग का वर्णन होता है।
- चरित्र: इसमें आमतौर पर एक ही मुख्य चरित्र होता है।
- भाव: इसमें एक ही प्रमुख भाव होता है।
- भाषा: इसकी भाषा सरल और सहज होती है।
- छंद: इसमें अनेक प्रकार के छंदों का प्रयोग किया जा सकता है।
खंडकाव्य की परंपरा:
- खंडकाव्य की परंपरा वैदिक साहित्य से शुरू होती है।
- वेदों में अनेक स्तोत्र और सूक्तियां खंडकाव्य के रूप में मिलती हैं।
- संस्कृत साहित्य में भी अनेक खंडकाव्य रचे गए हैं।
- कालिदास का ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’, भवभूति का ‘उत्तररामचरित’ और हर्षवर्धन का ‘रत्नावली’ खंडकाव्य की श्रेष्ठ रचनाओं में गिने जाते हैं।
- हिंदी साहित्य में भी अनेक खंडकाव्य रचे गए हैं।
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की ‘कुकुरमुत्ता’, जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’, और मैथिलीशरण गुप्त की ‘सकीर्तन’ खंडकाव्य की प्रसिद्ध रचनाओं में शामिल हैं।
खंडकाव्य का विकास:
- समय के साथ खंडकाव्य की शैली और विषयवस्तु में भी परिवर्तन हुए हैं।
- प्राचीन खंडकाव्यों में प्रेम, वीरता, और नीति जैसे विषयों पर अधिक ध्यान दिया जाता था।
- आधुनिक खंडकाव्यों में सामाजिक यथार्थवाद, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, और अस्तित्ववादी चिंताओं जैसे विषयों को भी उठाया गया है।
- भाषा और छंदों में भी प्रयोग किए गए हैं।
निष्कर्ष:
खंडकाव्य हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है। यह महाकाव्य और मुक्तक के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करता है। खंडकाव्यों में अनेक रसों, भावों और विचारों का समावेश होता है। यह विधा पाठकों को मनोरंजन और ज्ञान दोनों प्रदान करती है।
Section-C
प्रश्न-1. आधुनिक काव्य की पृष्ठभूमि का सविस्तार विवेचन कीजिए।
उत्तर:- आधुनिक काव्य की पृष्ठभूमि: एक सविस्तार विवेचन
आधुनिक हिंदी काव्य का उदय 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। यह काल सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलावों से भरा था, जिसका प्रभाव तत्कालीन साहित्य पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई दिया।
पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण घटनाएं:
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: 18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी के दौरान, भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी भावनाएं उभरने लगीं। इसने साहित्य में भी देशभक्ति और क्रांतिकारी विचारों को जन्म दिया।
- सामाजिक सुधार आंदोलन: 19वीं शताब्दी में, भारत में कई सामाजिक सुधार आंदोलन शुरू हुए, जैसे कि ब्राह्मणवाद और जातिवाद का विरोध, महिला शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन। इन आंदोलनों ने साहित्य में भी प्रगतिशील और सुधारवादी विचारों को जन्म दिया।
- पश्चिमी साहित्य का प्रभाव: 19वीं शताब्दी में, पश्चिमी साहित्य का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। रोमांटिकवाद, यथार्थवाद और प्रतीकवाद जैसे पश्चिमी साहित्यिक आंदोलनों ने हिंदी कविता में नए प्रयोगों को प्रोत्साहित किया।
आधुनिक काव्य की विशेषताएं:
- विषय वस्तु में विविधता: आधुनिक काव्य में विषय वस्तु की अत्यधिक विविधता देखने को मिलती है। राष्ट्रीयता, सामाजिक मुद्दे, प्रेम, प्रकृति, दर्शन, व्यक्तिगत अनुभव आदि सभी विषयों पर कविताएं लिखी गईं।
- छंद मुक्त कविता का उदय: आधुनिक काव्य में, छंदबद्ध कविता के साथ-साथ छंद मुक्त कविता का भी उदय हुआ। इससे कवियों को अपनी भावनाओं को अधिक स्वतंत्रता से व्यक्त करने में मदद मिली।
- भाषा में प्रयोग: आधुनिक कवियों ने भाषा में अनेक प्रयोग किए। उन्होंने खड़ी बोली, क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृत के शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचनाओं को समृद्ध किया।
- प्रतीकात्मकता का प्रयोग: आधुनिक कविता में प्रतीकात्मकता का अत्यधिक प्रयोग हुआ। कवियों ने प्रतीकों के माध्यम से गहरे अर्थों और भावनाओं को व्यक्त किया।
प्रमुख आधुनिक कवि:
- भारतेंदु हरिश्चंद्र: आधुनिक हिंदी काव्य के प्रवर्तक माने जाते हैं।
- प्रसाद: छायावादी कविता के प्रमुख स्तंभ।
- निराला: छायावादी कविता के प्रमुख स्तंभ।
- महावीर प्रसाद द्विवेदी: द्विवेदी युग के प्रमुख कवि।
- सुमित्रानंदन पंत: प्रकृतिवादी कविता के प्रमुख कवि।
- जयशंकर प्रसाद: छायावादी कविता के प्रमुख स्तंभ।
- राहुल सांकृत्यायन: प्रगतिवादी कविता के प्रमुख कवि।
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़: प्रगतिवादी कविता के प्रमुख कवि।
- नरेंद्र धर्मवीर: प्रयोगवादी कविता के प्रमुख कवि।
- मुक्तिबोध: प्रयोगवादी कविता के प्रमुख कवि।
निष्कर्ष:
आधुनिक हिंदी काव्य हिंदी साहित्य का एक स्वर्णिम अध्याय है। इस काल में अनेक महान कवियों ने जन्म लिया जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी भाषा और साहित्य को समृद्ध किया। आधुनिक काव्य ने विषय वस्तु, शैली और भाषा में अनेक प्रयोग किए जिसके परिणामस्वरूप हिंदी कविता में नवीनता और विविधता का आगमन
(जिस भी प्रश्न का उत्तर देखना हैं उस पर क्लिक करे)
प्रश्न-2. दो चट्टानें’ कविता के शिल्प पक्ष का व्यापक विश्लेषण कीजिए ?
उत्तर:- दो चट्टानें’ कविता का शिल्प पक्ष: विस्तृत विश्लेषण
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘दो चट्टानें’ कविता, प्रकृति और मानव जीवन के बीच द्वंद्व को दर्शाती है। यह कविता न केवल भावनात्मक रूप से प्रभावशाली है, बल्कि शिल्प के दृष्टिकोण से भी अत्यंत समृद्ध है।
छंद:
- इस कविता में ‘कव्वाली’ छंद का प्रयोग हुआ है।
- यह छंद चार पंक्तियों का होता है और इसकी तुकबंदी ‘अअबा’ होती है।
- ‘कव्वाली’ छंद का प्रयोग इस कविता को संगीतमय और लयबद्ध बनाता है, जो भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करता है।
भाषा:
- प्रसाद जी ने इस कविता में सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया है।
- भाषा में तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों का मिश्रण है।
- कुछ अरबी-फारसी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है, जो कविता को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।
- प्रतीकों का प्रयोग:
- कविता में प्रतीकों का अत्यंत प्रभावशाली प्रयोग हुआ है।
- ‘दो चट्टानें’ प्रकृति और मानव जीवन का प्रतीक हैं।
- ‘नदी’ जीवन के प्रवाह का प्रतीक है।
- ‘सूर्य’ प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक है।
- ‘चंद्रमा’ शांति और प्रेम का प्रतीक है।
- प्रतीकों का प्रयोग कविता को गहराई और अर्थ प्रदान करता है।
अलंकार:
- प्रसाद जी ने इस कविता में अनेक अलंकारों का प्रयोग किया है, जैसे कि रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, प्रतीक आदि।
- अलंकारों का प्रयोग कविता को अधिक सजीव और प्रभावशाली बनाता है।
- बिंब विधान:
- कविता में अनेक प्रभावशाली बिंबों का चित्रण किया गया है।
- ‘चट्टानों का टकराना’, ‘नदी का बहना’, ‘सूर्य का डूबना’, ‘चंद्रमा का उगना’ – ये सभी बिंब पाठक के मन में स्पष्ट छवि बनाते हैं।
- लय और ताल:
- कविता में लय और ताल का उचित मिश्रण है।
- ‘कव्वाली’ छंद के प्रयोग से कविता में स्वाभाविक लय और ताल पैदा होता है।
निष्कर्ष:
‘दो चट्टानें’ कविता न केवल भावनात्मक रूप से प्रभावशाली है, बल्कि शिल्प के दृष्टिकोण से भी अत्यंत समृद्ध है। छंद, भाषा, प्रतीक, अलंकार, बिंब विधान, लय और ताल – इन सभी तत्वों का कुशल प्रयोग इस कविता को हिंदी साहित्य की एक उत्कृष्ट कृति बनाता है।
प्रश्न-3. ‘कुआनो नदी’ कविता के अभिव्यंजना पक्ष की उदाहरण सहित विवेचना कीजिए।
उत्तर:- ‘कुआनो नदी’ कविता का अभिव्यंजना पक्ष: उदाहरण सहित विवेचना
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित ‘कुआनो नदी’ कविता, सामाजिक यथार्थवाद और मानवीय पीड़ा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है। यह कविता न केवल भावनाओं को छू लेती है, बल्कि समाज के प्रति प्रश्न भी उठाती है।
कविता के अभिव्यंजना पक्ष के कुछ प्रमुख पहलू:
1. सामाजिक यथार्थवाद:
- कवि कुआनो नदी के माध्यम से गरीबों और शोषितों की दयनीय स्थिति का सजीव चित्रण करते हैं।
- नदी के किनारे रहने वाले लोग गरीबी, भूख और बीमारी से जूझ रहे हैं।
- वे नदी पर निर्भर हैं, जो उन्हें जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करने के लिए मजबूर करती है।
उदाहरण:
- “कूड़े कचरे से लदी, बदबूदार, काली” – यह पंक्ति नदी की प्रदूषित स्थिति और गरीबों के दयनीय जीवन का चित्रण करती है।
- “नदी के किनारे बसे गाँव, झोपड़ियों के” – यह पंक्ति नदी के किनारे रहने वाले लोगों की गरीबी और पिछड़ेपन को दर्शाती है।
2. मानवीय पीड़ा:
- कवि नदी के माध्यम से मानवीय पीड़ा और संघर्ष को व्यक्त करते हैं।
- नदी में बहते शव, डूबते बच्चे, और रोती हुई महिलाएं – ये सभी दृश्य मानवीय जीवन की त्रासदी को उजागर करते हैं।
उदाहरण:
- “शवों की लाशें तैरती हैं, डूबते हैं बच्चे” – यह पंक्ति नदी में होने वाली दुर्घटनाओं और लोगों की मौतों को दर्शाती है।
- “रोती हैं स्त्रियां, बिलखते हैं पुरुष” – यह पंक्ति मानवीय पीड़ा और विलाप को व्यक्त करती है।
3. प्रतीकात्मकता:
- कविता में प्रतीकों का प्रभावी प्रयोग हुआ है।
- ‘कुआनो नदी’ गरीबों और शोषितों का प्रतीक है।
- ‘नदी का बहना’ जीवन के संघर्ष और अनिश्चितता का प्रतीक है।
- ‘नदी का सूखना’ आशाओं और सपनों का टूटना का प्रतीक है।
उदाहरण:
- “कुआनो नदी, गरीबों की धाय” – यह पंक्ति नदी और गरीबों के बीच संबंध को दर्शाती है।
- “बहती है नदी, अनिश्चित गति से” – यह पंक्ति जीवन के अनिश्चित स्वरूप को दर्शाती है।
- “सूख रही है नदी, आशाएं टूट रही हैं” – यह पंक्ति गरीबों की निराशा और हताशा को दर्शाती है।
4. व्यंग्य:
- कवि समाज में व्याप्त असमानता और अन्याय पर व्यंग्य करते हैं।
- वे अमीरों और शक्तिशाली लोगों की उदासीनता और लापरवाही को उजागर करते हैं।
उदाहरण:
“नेता जी आए, वादे किए, चले गए” – यह पंक्ति राजनेताओं की झूठी उम्मीदों और खोखले वादों पर व्यंग्य करती है।
“अमीरों के महलों से निकला कूड़ा” – यह पंक्ति नदी के प्रदूषण के लिए अमीरों की जिम्मेदारी को दर्शाती है।
प्रश्न-4. सुमित्रानंदन पंत की काव्य यात्रा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- सुमित्रानंदन पंत की काव्य यात्रा: एक रोमांचक सफर
सुमित्रानंदन पंत, जिन्हें “हिंदी साहित्य का महाकवि” भी कहा जाता है, 20वीं शताब्दी के हिंदी साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित स्तंभों में से एक हैं। उनकी काव्य यात्रा अनेक रंगों से भरी है, जिसमें छायावाद, प्रगतिवाद और अध्यात्मवाद जैसे विभिन्न चरणों का समावेश है।
1. छायावादी युग (1918-1936):
- पंत जी की काव्य यात्रा का आरंभ छायावादी कवि के रूप में हुआ।
- उनकी प्रारंभिक रचनाओं में प्रकृति, प्रेम, सौंदर्य और रहस्यवाद जैसे विषयों का चित्रण मिलता है।
- ‘पल्लव’, ‘वीणा’, ‘गुंजन’ और ‘ग्रन्थि’ उनकी इस काल की प्रमुख रचनाएं हैं।
उदाहरण:
- “प्रकृति के रंग, सौंदर्य अपार, मन मोह लेती है उसकी प्यार।”
2. प्रगतिवादी युग (1936-1945):
- 1930 के दशक में, पंत जी प्रगतिवादी विचारधारा से प्रभावित हुए।
- उनकी रचनाओं में सामाजिक यथार्थवाद, गरीबी, शोषण और वर्ग संघर्ष जैसे विषयों को उजागर किया गया।
- ‘कला और बूढ़ा चाचा’, ‘लोहा गरम है’ और ‘बूढ़ा कबाड़ी’ उनकी इस काल की प्रमुख रचनाएं हैं।
उदाहरण:
- “किसानों की मेहनत, मजदूरों का पसीना, इसी से बनता है देश का खजाना।”
3. अध्यात्मवादी युग (1945-1977):
- 1940 के दशक के बाद, पंत जी अध्यात्मवाद की ओर झुके।
- उनकी रचनाओं में जीवन, मृत्यु, आत्मा और परमात्मा जैसे विषयों पर गहन चिंतन मिलता है।
- ‘पलाश शिखा’, ‘आँसू’, ‘सीता की रात’ और ‘कामना’ उनकी इस काल की प्रमुख रचनाएं हैं।
उदाहरण:
- “आत्मा अमर है, मृत्यु केवल देह का नाश, जीवन का सफर है एक अनंत अभिलाष।”
पंत जी की काव्यगत विशेषताएं:
- भाषा का सौंदर्य: पंत जी की भाषा अत्यंत सौंदर्यपूर्ण और प्रभावशाली है।
- विम्बविधान: उनकी रचनाओं में अनेक प्रभावशाली बिम्बों का चित्रण मिलता है।
- संगीतमयता: उनकी रचनाओं में लय और ताल का मधुर समावेश है।
- विषय वस्तु की विविधता: उन्होंने अनेक विषयों पर रचनाएं कीं।
निष्कर्ष:
सुमित्रानंदन पंत जी की काव्य यात्रा हिंदी साहित्य के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल मनोरंजन और प्रेरणा प्रदान की, बल्कि सामाजिक और दार्शनिक मुद्दों पर भी गहन विचार व्यक्त किए। पंत जी सदैव हिंदी साहित्य के इतिहास में एक चमकदार सितारे की तरह याद किए जाएंगे।
प्रश्न-5. लम्बी कविता की विशेषताओं के आधार पर ‘परिवर्तन’ कविता का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:-
प्रश्न-6. ब्रह्मराक्षस कविता के आधार पर मुक्तिबोध की वैचारिक दृष्टि को विश्लेषित कीजिए।
उत्तर:- ब्रह्मराक्षस कविता के आधार पर मुक्तिबोध की वैचारिक दृष्टि का विश्लेषण:
मुक्तिबोध हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि और विचारक थे। उनकी रचनाओं में गहराई, भावना और विचारों का समावेश है। “ब्रह्मराक्षस” उनकी प्रसिद्ध कविताओं में से एक है, जो आधुनिक जीवन की जटिलताओं, विरोधाभासों और संघर्षों का चित्रण करती है।
इस कविता के आधार पर मुक्तिबोध की वैचारिक दृष्टि को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है:
1. अस्तित्ववाद और आधुनिक जीवन का संकट:
- ब्रह्मराक्षस कविता आधुनिक जीवन के संकट और अस्तित्ववादी चिंताओं को दर्शाती है।
- कविता का मुख्य पात्र, जो एक विचारक है, अपने आसपास की दुनिया से निराश और हताश है।
- वह समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, शोषण और अन्याय को देखकर व्यथित है।
- वह इन बुराइयों के खिलाफ लड़ने का प्रयास करता है, लेकिन उसे हर तरफ से निराशा ही मिलती है।
- यह निराशा और हताशा उसे अस्तित्ववादी संकट की ओर ले जाती है।
2. द्वंद्वात्मक दृष्टिकोण:
- मुक्तिबोध की वैचारिक दृष्टि द्वंद्वात्मक है।
- वे मानते हैं कि दुनिया में अच्छाई और बुराई, सत्य और असत्य, प्रेम और घृणा, प्रकाश और अंधकार जैसे विरोधी तत्वों का द्वंद्व होता है।
- “ब्रह्मराक्षस” कविता में भी यह द्वंद्वात्मकता दिखाई देती है।
- कविता में ब्रह्मराक्षस अंधविश्वास और रूढ़िवादिता का प्रतीक है, जबकि विचारक सत्य और प्रगति का प्रतीक है।
- दोनों के बीच संघर्ष कविता का मुख्य विषय है।
3. सामाजिक परिवर्तन की इच्छा:
- मुक्तिबोध सामाजिक परिवर्तन की इच्छा रखते थे।
- वे मानते थे कि समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए संघर्ष करना आवश्यक है।
- “ब्रह्मराक्षस” कविता में भी यह सामाजिक परिवर्तन की इच्छा दिखाई देती है।
- विचारक समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ लड़ने का प्रयास करता है, भले ही उसे हार का सामना करना पड़े।
4. आशावाद और मानवतावाद:
- मुक्तिबोध निराशावादी नहीं थे।
- वे मानते थे कि भले ही दुनिया में बुराइयां हों, लेकिन अच्छाई की भी शक्ति है।
- “ब्रह्मराक्षस” कविता में भी यह आशावाद दिखाई देता है।
- कविता का अंत निराशाजनक है, लेकिन यह हमें प्रेरित करती है कि हम समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाएं और एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रयास करें।
निष्कर्ष:
“ब्रह्मराक्षस” कविता मुक्तिबोध की वैचारिक दृष्टि को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण रचना है। यह कविता हमें आधुनिक जीवन के संकट, अस्तित्ववादी चिंताओं, द्वंद्वात्मकता, सामाजिक परिवर्तन की इच्छा और आशावाद के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती है।
प्रश्न-7. नरेश मेहता के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सविस्तार प्रकाश डालिए
उत्तर:-
प्रश्न-8. सरोज स्मृति’ एक शोकगीत है। उदाहरण सहित अपना अभिमत दीजिए।
उत्तर:-
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