VMOU Paper with answer ; VMOU SO-06 Paper BA 3rd Year , vmou Sociology important question

VMOU SO-06 Paper BA Final Year ; vmou exam paper 2024

vmou exam paper 2024 VMOU SO-06 Paper

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA Final Year के लिए समाजशास्त्र ( SO-06 , Social Anthropology ) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –

Section-A

प्रश्न-1. ‘रेसेज एण्ड कल्चर ऑफ इण्डिया’ पुस्तक के लेखक कौन है ?

उत्तर:- Dhirendra Nath Majumdar (धीरेन्द्रनाथ मजूमदार)

(जिस भी प्रश्न का उत्तर देखना हैं उस पर क्लिक करे)

प्रश्न-2. अन्तर्विवाह को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- अंतर्विवाह के अनुसार एक विशिष्ट वर्ग के व्यक्तियों को उसी वर्ग के अंदर रहने वाले व्यक्तियों में से ही वधू को चुनना पड़ता है। वे उस वर्ग से बाहर के किसी व्यक्ति के साथ विवाह नहीं कर सकते।

प्रश्न-3. परिहास सम्बन्ध।

उत्तर:- परिहास या हंसी मजाक के संबंध :- परिहास संबंध परिहार संबंध के विपरीत है जहां परिहार संबंध में दो रिश्तेदारों के मध्य में दूरी पाई जाती थी वही परिहास संबंध में दो रिश्तेदारों के मध्य आपस में हंसी मजाक तथा एक दूसरे को भद्दे कथन कहना भी शामिल है । उदाहरण के लिए देवर भाभी तथा जीजा – साली के मध्य परिहास संबंध पाया जाता है ।

प्रश्न-4.काला जादू को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- काला जादू पारम्परिक रूप से पराप्राकृतिक शक्तियों अथवा दुष्ट शक्तियों की सहायता से अपने स्वार्थी उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए किया जाने वाला एक जादू है।

प्रश्न-5.प्रथाओं के महत्व बताइए।

उत्तर:- प्रथाएं समाज के मूल्यों, विश्वासों और इतिहास को दर्शाती हैं। ये समाज को एकजुट रखने, पहचान बनाने और सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रथाएं पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती हैं और समाज को स्थिरता प्रदान करती हैं।

प्रश्न-6.हस्तान्तरित कृषि को समझाइए।

उत्तर:- स्थानांतरण कृषि या झूम कृषि (slash and burn farming) एक आदिम प्रकार की कृषि है जिसमें पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है और साफ की गई भूमि को पुराने उपकरणों (लकड़ी के हलों आदि) से जुताई करके बीज बो दिये जाते हैं। जब तक मिट्टी में उर्वरता विद्यमान रहती है इस भूमि पर खेती की जाती है।

प्रश्न-7.राजस्थान की किन्हीं दो जनजातियों के नाम लिखिए।

उत्तर:- भील, मीणा, गरासिया व डामोर

प्रश्न-8. संस्कृति को परिभाषित कीजिए ?

उत्तर:- संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र स्वरूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने के स्वरूप में अन्तर्निहित होता है। यह ‘कृ’ (करना) धातु से बना है। इस धातु से तीन शब्द बनते हैं ‘प्रकृति’ की मूल स्थिति,यह संस्कृत हो जाता है और जब यह बिगड़ जाता है तो ‘विकृत’ हो जाता है।

प्रश्न-9.

उत्तर:-

प्रश्न-10.

उत्तर:-

प्रश्न-11.

उत्तर:-

प्रश्न-

उत्तर:-

Section-B

प्रश्न-1. राजस्थान की मीणा जनजाति पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:- राजस्थान की मीणा जनजाति भारत की सबसे पुरानी और प्रमुख जनजातियों में से एक है। यह राजस्थान के कई जिलों में पाई जाती है और राज्य की संस्कृति और इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

मीणा जनजाति की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं:

  • सैन्य परंपरा: मीणाओं को उनके साहस और सैन्य कौशल के लिए जाना जाता है। इतिहास में, उन्होंने कई युद्धों में भाग लिया और अपने शौर्य का प्रदर्शन किया।
  • कृषि: मीणा मुख्यतः कृषि कार्य करते हैं। वे खेतों में काम करते हैं और फसल उगाते हैं।
  • पशुपालन: पशुपालन भी मीणा जनजाति का प्रमुख व्यवसाय है। वे गाय, भैंस, बकरी आदि पालते हैं।
  • शिल्पकार: मीणा समुदाय में कुशल शिल्पकार भी पाए जाते हैं। वे धातु के बर्तन, आभूषण आदि बनाते हैं।
  • सामाजिक संगठन: मीणा समाज में एक मजबूत सामाजिक संगठन होता है। वे गोत्रों में बंटे हुए हैं और उनके अपने रीति-रिवाज और परंपराएं हैं।
  • धर्म: अधिकांश मीणा हिंदू धर्म को मानते हैं और वे विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।

मीणा जनजाति का सामना किन चुनौतियों का है:

  • भूमि हनन: विकास कार्यों के कारण मीणाओं की भूमि का हनन हो रहा है।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: मीणा बहुल क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।
  • रोजगार के अवसरों का अभाव: मीणा युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सीमित हैं।

निष्कर्ष:

राजस्थान की मीणा जनजाति राज्य की संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, वे कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। सरकार को इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।

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प्रश्न-2. सामाजिक मानवशास्त्र का अर्थ एवं प्रकृति की विवेचना कीजिए ?

उत्तर:- सामाजिक मानवशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो मानव समाजों का अध्ययन करता है। यह विज्ञान मानव समाजों की उत्पत्ति, विकास, संरचना, और कार्यप्रणाली को समझने का प्रयास करता है।

अर्थ:

सामाजिक मानवशास्त्र का मूल उद्देश्य विभिन्न समाजों के लोगों के जीवन के तरीकों, विश्वासों, मूल्यों, रीति-रिवाजों, और सामाजिक संगठनों को समझना है। यह विज्ञान मानव व्यवहार को सांस्कृतिक संदर्भ में देखता है और यह समझने की कोशिश करता है कि विभिन्न समाजों में लोग कैसे सोचते हैं, महसूस करते हैं और व्यवहार करते हैं।

प्रकृति:

सामाजिक मानवशास्त्र की प्रकृति निम्नलिखित है:

  • तुलनात्मक अध्ययन: यह विभिन्न समाजों की तुलना करके मानव व्यवहार के सामान्य सिद्धांतों को विकसित करता है।
  • सांस्कृतिक सापेक्षता: यह विभिन्न संस्कृतियों को उनके अपने संदर्भ में समझने पर जोर देता है।
  • क्षेत्रीय कार्य: सामाजिक मानवशास्त्री अक्सर क्षेत्र में जाकर लोगों के साथ रहकर और उनके जीवन का अध्ययन करके डेटा एकत्र करते हैं।
  • सहयोगी: यह एक सहयोगी विज्ञान है जो अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे कि इतिहास, राजनीति विज्ञान, और अर्थशास्त्र के साथ मिलकर काम करता है।

महत्व:

सामाजिक मानवशास्त्र हमें विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानने और समझने में मदद करता है। यह हमें अपनी खुद की संस्कृति को बेहतर ढंग से समझने में भी मदद करता है। इसके अलावा, सामाजिक मानवशास्त्र हमें सामाजिक समस्याओं को हल करने और बेहतर नीतियां बनाने में मदद कर सकता है।

उदाहरण:

एक सामाजिक मानवशास्त्री किसी आदिवासी समाज में जाकर उनके जीवन शैली, रीति-रिवाजों, और धार्मिक विश्वासों का अध्ययन कर सकता है। इस अध्ययन से हमें उस समाज के बारे में बहुत कुछ जानने को मिल सकता है और यह भी समझने में मदद मिल सकती है कि वे कैसे प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर रहते हैं।

प्रश्न-3. जनजातीय समुदायों में विवाह साथी के चयन की विधि को समझाइए ।

उत्तर:- जनजातीय समुदायों में विवाह साथी का चयन, उनकी सांस्कृतिक परंपराओं, सामाजिक संरचना और आर्थिक परिस्थितियों से अत्यधिक प्रभावित होता है। ये विवाह केवल व्यक्तिगत संबंधों से परे होते हुए, समूह की एकता, सामाजिक बंधनों और आर्थिक सहयोग को मजबूत करते हैं।

विवाह साथी चयन की कुछ प्रमुख विधियां निम्नलिखित हैं:

  • गोत्र या कुल व्यवस्था: कई जनजातीय समुदायों में गोत्र या कुल की अवधारणा होती है। विवाह में एक ही गोत्र के सदस्यों के बीच विवाह वर्जित होता है।
  • वधू मूल्य: कुछ समुदायों में दूल्हे के परिवार को वधू के परिवार को एक निश्चित राशि या वस्तु देनी होती है। यह विवाह को एक आर्थिक लेन-देन के रूप में देखने का एक तरीका है।
  • वधू विनिमय: कुछ समुदायों में दो परिवार एक-दूसरे की बेटियों का आदान-प्रदान करते हैं।
  • स्वयंवर: कुछ जनजातियों में दुल्हन स्वयं अपना वर चुनती है।
  • परिवार द्वारा चयन: अधिकांश जनजातियों में परिवार के बड़े बुजुर्ग ही विवाह के लिए जोड़े का चयन करते हैं।

विवाह के पीछे के उद्देश्य:

  • सामाजिक बंधन: विवाह से सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं और समूह की एकता बढ़ती है।
  • आर्थिक सहयोग: विवाह से दो परिवारों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ता है।
  • सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण: विवाह से सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण होता है।
  • वंशवृद्धि: विवाह से वंशवृद्धि होती है और परिवार का नाम आगे बढ़ता रहता है।

आधुनिक समय में परिवर्तन:

आधुनिक समय में शिक्षा और शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण जनजातीय समुदायों में भी विवाह के तरीकों में बदलाव आ रहा है। युवा पीढ़ी अपनी पसंद के अनुसार विवाह साथी चुनने की स्वतंत्रता चाहती है। हालांकि, कई समुदाय अपनी परंपराओं को बनाए रखने का प्रयास करते हैं।

निष्कर्ष:

जनजातीय समुदायों में विवाह साथी का चयन उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना से गहराई से जुड़ा हुआ है। विवाह केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं बल्कि समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक घटना है।

प्रश्न-4. आदिम नातेदारी संगठन पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:- आदिम समाजों में नातेदारी का संगठन समाज के अन्य सभी पहलुओं से गहराई से जुड़ा होता है। यह समाज के लोगों के बीच रिश्तों को परिभाषित करता है, सामाजिक संरचना को आकार देता है और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करता है।

आदिम नातेदारी संगठन की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं:

  • रक्त संबंध: आदिम समाजों में रक्त संबंधों को बहुत महत्व दिया जाता है। माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-ताऊ आदि के साथ रिश्ते बहुत मजबूत होते हैं।
  • विवाह: विवाह का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत संतुष्टि नहीं होता था, बल्कि समूह के बीच संबंधों को मजबूत करना भी होता था।
  • गोत्र व्यवस्था: कई आदिम समाजों में गोत्र व्यवस्था होती थी। एक ही गोत्र के सदस्यों के बीच विवाह वर्जित होता था।
  • वंश: अधिकांश आदिम समाजों में वंश पितृवंशी या मातृवंशी होता था।
  • नातेदारी शब्दावली: आदिम समाजों में नातेदारी शब्दावली बहुत विस्तृत होती थी। प्रत्येक रिश्ते के लिए एक अलग शब्द होता था।

आदिम नातेदारी संगठन का महत्व:

  • सामाजिक एकता: नातेदारी के माध्यम से समाज के लोगों के बीच एकता और सामंजस्य बना रहता था।
  • सामाजिक नियंत्रण: नातेदारी के नियमों का पालन न करने पर सामाजिक दंड दिया जाता था।
  • आर्थिक सहयोग: नातेदार एक-दूसरे की आर्थिक मदद करते थे।
  • सांस्कृतिक विरासत: नातेदारी के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती थी।

आधुनिक समय में परिवर्तन:

आधुनिक समय में आर्थिक विकास, शहरीकरण और शिक्षा के प्रसार के कारण आदिम समाजों में नातेदारी संगठन में काफी बदलाव आया है। रक्त संबंधों का महत्व कम हो गया है और व्यक्तिवादी मूल्य बढ़ गए हैं। हालांकि, कई आदिम समाजों में नातेदारी का महत्व आज भी बना हुआ है।

निष्कर्ष:

आदिम नातेदारी संगठन आदिम समाजों की सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण आधार था। यह समाज के लोगों के जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता था। हालांकि, आधुनिक समय में इसमें काफी बदलाव आया है।

प्रश्न-5. संस्कृति प्रतिमान की अवधारणा को समझाइए।

उत्तर:- संस्कृति प्रतिमान एक ऐसी अवधारणा है जो किसी समाज के जीवन के विभिन्न पहलुओं को एक साथ जोड़ती है। यह एक ऐसा ढांचा है जो किसी समाज के सदस्यों को सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को निर्धारित करता है। यह एक ऐसा नमूना है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आता है और समाज के सदस्यों को एक साझी पहचान प्रदान करता है।

संस्कृति प्रतिमान के प्रमुख घटक होते हैं:

  • विश्वास: किसी समाज के सदस्यों के धार्मिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक विश्वास।
  • मूल्य: किसी समाज के सदस्यों द्वारा स्वीकार किए गए सही और गलत के मानक।
  • नियम: किसी समाज के सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करने वाले नियम और कानून।
  • रीति-रिवाज: किसी समाज के सदस्यों द्वारा पालन किए जाने वाले रीति-रिवाज और परंपराएं।
  • भाषा: किसी समाज के सदस्यों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा।
  • कला: किसी समाज के सदस्यों द्वारा बनाई गई कलाकृतियाँ।

संस्कृति प्रतिमान का महत्व:

  • सामाजिक एकता: यह समाज के सदस्यों को एक साथ जोड़ता है और सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है।
  • व्यवहार का मार्गदर्शन: यह समाज के सदस्यों को उनके दैनिक जीवन में व्यवहार करने का तरीका बताता है।
  • संस्कृति का संरक्षण: यह समाज की संस्कृति को संरक्षित करने में मदद करता है।
  • समाज का विकास: यह समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उदाहरण के लिए: एक भारतीय ग्रामीण समाज में संस्कृति प्रतिमान में धार्मिक विश्वास, जाति व्यवस्था, कृषि पर आधारित जीवन शैली, और पारिवारिक मूल्य शामिल हो सकते हैं।

प्रश्न-6. परिवार को परिभाषित करते हुए इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- परिवार को एक सामाजिक इकाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आमतौर पर रक्त संबंध, विवाह या गोद लेने से जुड़े व्यक्तियों का एक समूह होता है। यह एक ऐसी संस्था है जो मानव समाज की मूल इकाई के रूप में कार्य करती है और समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

परिवार की प्रमुख विशेषताएं:

  • रक्त संबंध: परिवार के सदस्यों के बीच आमतौर पर रक्त संबंध होता है। माता-पिता, बच्चे, भाई-बहन आदि रक्त संबंध से जुड़े होते हैं।
  • विवाह संबंध: विवाह भी परिवार के गठन का एक महत्वपूर्ण आधार है। पति-पत्नी के बीच विवाह संबंध परिवार को एकजुट करता है।
  • गोद लेने: गोद लेने से भी परिवार का विस्तार होता है। गोद लिए गए बच्चे परिवार के अन्य सदस्यों के समान अधिकार और दायित्व प्राप्त करते हैं।
  • साझा निवास: परिवार के सदस्य आमतौर पर एक ही घर में रहते हैं। यह उनके बीच घनिष्ठता को बढ़ावा देता है।
  • साझा आर्थिक इकाई: परिवार एक आर्थिक इकाई के रूप में कार्य करता है। परिवार के सदस्य एक-दूसरे की आर्थिक मदद करते हैं।
  • सामाजिकरण: परिवार बच्चे का पहला और सबसे महत्वपूर्ण सामाजिककरण एजेंट होता है। बच्चे परिवार से ही सामाजिक मूल्य और व्यवहार सीखते हैं।
  • भावनात्मक समर्थन: परिवार भावनात्मक समर्थन का एक महत्वपूर्ण स्रोत होता है। परिवार के सदस्य एक-दूसरे को मुश्किल समय में सहारा देते हैं।
  • सामाजिक नियंत्रण: परिवार सामाजिक नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण साधन होता है। परिवार के सदस्य एक-दूसरे के व्यवहार पर नियंत्रण रखते हैं।

परिवार के प्रकार:

  • संयुक्त परिवार: जिसमें तीन या अधिक पीढ़ियों के सदस्य रहते हैं।
  • एकल परिवार: जिसमें माता-पिता और उनके बच्चे रहते हैं।

परिवार का महत्व:

परिवार समाज का आधार है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार सामाजिक स्थिरता और समाज के विकास में भी योगदान देता है।

निष्कर्ष:

परिवार एक जटिल सामाजिक संस्था है जो मानव समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्यक्ति के जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है।

प्रश्न-7. भारत में जनजातीय की प्रमुख समस्याओं को लिखिए।

उत्तर:- भारत में जनजातीय समुदाय विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करते हैं। ये समस्याएँ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से जटिल हैं। कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं:

  • भूमि का हनन: औद्योगिकीकरण और विकास परियोजनाओं के कारण जनजातीय लोगों की भूमि का हनन होता है। उन्हें अपने पारंपरिक निवास स्थान से विस्थापित किया जाता है जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।
  • सामाजिक भेदभाव: गैर-आदिवासी समुदायों द्वारा आदिवासियों के साथ भेदभाव किया जाता है। उन्हें निम्न जाति माना जाता है और उन्हें सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया जाता है।
  • शिक्षा का अभाव: आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की सुविधाएं बहुत कम हैं। इससे आदिवासी बच्चों का शैक्षिक स्तर बहुत निम्न रहता है।
  • स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव होता है। इससे आदिवासी लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं।
  • आर्थिक पिछड़ापन: आदिवासी समुदाय आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। उनके पास अपनी आजीविका के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं।
  • संस्कृतिक पहचान का संकट: आधुनिकीकरण के कारण आदिवासी अपनी संस्कृति और परंपराओं को खो रहे हैं।
  • स्वशासन की कमी: आदिवासी क्षेत्रों में स्वशासन की व्यवस्था नहीं है, जिससे वे अपनी समस्याओं को स्वयं हल करने में असमर्थ होते हैं।
  • कानूनी जागरूकता का अभाव: अधिकांश आदिवासी लोग अपने अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं होते हैं।
  • शराब और नशीली दवाओं का सेवन: कुछ आदिवासी समुदायों में शराब और नशीली दवाओं का सेवन एक बड़ी समस्या है।

इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को कई कदम उठाने होंगे जैसे कि आदिवासियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास, उनके अधिकारों का संरक्षण, और उनके आर्थिक विकास के लिए कार्यक्रम।

प्रश्न-8. आदिम राजनैतिक व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:- आदिम राजनैतिक व्यवस्था मानव सभ्यता के प्रारंभिक चरणों में विकसित हुई थी। यह व्यवस्था मुख्यतः जनजातीय समुदायों में पाई जाती थी, जहाँ कोई संगठित राज्य या सरकार नहीं होती थी। समाज का नेतृत्व सामान्यतः बुजुर्गों, कुलपतियों या युद्ध में अनुभवी लोगों के हाथों में होता था। इन नेताओं का चयन उनकी बुद्धिमानी, अनुभव और समाज के प्रति उनके योगदान के आधार पर किया जाता था।

संपत्ति का निजी स्वामित्व नहीं होता था और संसाधनों का समान वितरण होता था। निर्णय सामूहिक रूप से लिए जाते थे और पंचायत जैसी संस्थाओं के माध्यम से विवादों का निपटारा किया जाता था। यह व्यवस्था सामाजिक समानता और सामुदायिक भावना पर आधारित थी।

हालांकि यह प्रणाली सरल और स्वाभाविक थी, लेकिन इसके भी अपने सीमितियां थीं, जैसे कि बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा की कमी और सीमित संसाधनों के कारण विकास की धीमी गति।

आदिम राजनैतिक व्यवस्था ने आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणालियों के विकास की नींव रखी और समाज के संगठित रूप में प्रगति के लिए एक प्रारंभिक ढांचा प्रदान किया।

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Section-C

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