शिक्षक डायरी (अध्यापक दैनन्दिनी) का अर्थ , परिभाषा , अध्यापक दैनन्दिनी का उद्देश्य , अध्यापक दैनन्दिनी का महत्व व आवश्यकता , सावधानियाँ , अध्यापक दैनन्दिनी कैसे भरे , अध्यापक दैनन्दिनी के सम्बन्ध में सारी जानकारी teacher diary in hindi –
अध्यापक दैनन्दिनी (teacher diary) शिक्षक डायरी
अध्यापक को अपने कार्य-शिक्षण योजना, शिक्षण-प्रक्रिया, शिक्षण विधि, विद्यार्थियों के मूल्याकन, उनकी उपस्थिति गणना, प्रधानाध्यापक के अनुदेश, उपचारात्मक शिक्षण आदि की पूर्व योजना के संक्षिप्त अभिलेख रखने हेतु जो स्वीकृत प्रारूप में पुस्तिका होती है, उसे अध्यापक दैनन्दिनी कहा जाता है।
अध्यापक के कार्य का, जिसमें समस्त क्रियाओं की नैदानिक सम्प्राप्ति निहित मानी जाती है। शिक्षक के लिए आवश्यक रूप से कार्य संचालन की एक महन्ती परन्तु नित्य पूर्व क्रियात्मक क्रिया हैं। जो शिक्षक छात्र दोनों के हित के लिए तथा उनके भावपूर्ण सम्बन्धों के लिए भी अति आवश्यक हैं।
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि शिक्षकों के नियमित व व्यवस्थित कार्य संचालन के लिए तथा योजनानुरूप अभ्यास क्रम पूरा करने के लिए प्रत्येक अध्यापकों को दैनन्दिनी रखना आवश्यक होता हैं। अध्यापक दैनन्दिनी दैनिक शिक्षक की पूर्व तैयारी, क्रमबद्ध व व्यवस्थित शिक्षक समय चक्रानुरूप कार्य कलापों को व्यवस्थित करने छात्रों को नियमित गृहकार्य देने तथा मूल्यांकित करने के लिए अति आवश्यक हैं तथा अध्यापक हेतु एक महत्वपूर्ण सहचर के लिए साधन हैं।
अध्यापक दैनन्दिनी की परिभाषा (definition of teacher diary)
प्रो. एस. के.दुबे केअनुसार :- “डायरी लेखन का अर्थ है वह आदर्शवादी कार्य व्यवहार और विचारों का अभिलेखन और निर्माण करना जिसके माध्यम से व्यक्ति भविष्य में अपने कार्य व्यवहार, जीवन की घटनाओं और अपने विचारों की समीक्षा करता है।”
श्रीमती, आर. के. शर्मा के अनुसार:- “डायरी लेखन किसी व्यक्ति के कार्य, व्यवहार और विचारों का लेखा-जोखा है, जिसमें व्यक्ति अपने विचारों, कार्य, व्यवहार और स्वयं से जुड़ी घटनाओं के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का वर्णन करता है और उपरोक्त सारांश चर्चा से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह प्रक्रिया दैनिक लेखन एक व्यक्ति की स्वयं के कार्यों की आत्म-समीक्षा की प्रक्रिया है।”
कला शिक्षण को उद्देश्यनिष्ठ एवं प्रभावी बनाने की दृष्टि से दैनन्दिनी अध्यापक को शिक्षण की पूर्व तैयारी का अभास कराती है। साथ ही उसके द्वारा किये गये शिक्षण का एक लिखित साक्ष्य भी है।
अध्यापक दैनन्दिनी का महत्व (Importance of teacher diary)
अध्यापक के कार्य को योजनाबद्ध, क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित तथा प्रभावी बनाने में शिक्षक डायरी (अध्यापक दैनन्दिनी) का विशेष महत्व है-
- दैनिक शिक्षण कार्य को पूर्व निर्धारित योजनानुसार प्रभावी रूप से सम्पन्न करने में अध्यापकः की सहायता करना।
- शिक्षण-कार्य को एक समयबद्ध कार्यक्रम के अनुसार निर्धारित समय से समाप्त करने हेतु ।
- अध्यापक को दैनिक करणीय कार्य का स्मरण दिलाने एवं उसकी पूर्व तैयारी कर जाने हेतु।
- विद्यार्थियों को गृह-कार्य के आवंटन एवं उनके संशोधन हेतु
- प्रधानाध्यापक को अपने कार्य से अवगत कराने हेतु।
- दैनिक कार्य के सम्पादन के आधार पर पूर्व निर्धारित योजना में परिवर्तन, संशोधन ए परिवर्द्धन करने हेतु Feed Back करने के लिए।
शिक्षक डायरी (अध्यापक दैनन्दिनी) की आवश्यकता (need of teacher diary)
शिक्षक डायरी (अध्यापक दैनन्दिनी) की आवश्यकता :-
- यह शिक्षक को पाठ या विषय के लक्ष्यों और उद्देश्यों के बारे में एक विचार देता है।
- यह शिक्षकों को जिस विषय को पढ़ा रहे हैं उससे संबंधित विभिन्न दक्षताओं में भी मदद करता है।
- यह शिक्षण-अधिगम परिणामों का स्पष्ट विचार देता है
- यह उन्हें किसी विशेष विषय को पढ़ाने के लिए आवश्यक विभिन्न रणनीतियाँ देता है।
- इसका उपयोग छात्रों का मूल्यांकन करने के लिए मूल्यांकन तकनीकों को नोट करने और उनका विश्लेषण करने के लिए किया जा सकता है।
- यह शिक्षक को विभिन्न रिकॉर्ड बनाए रखने में मदद करता है जैसे कि छात्र रिकॉर्ड, मीटिंग रिकॉर्ड इत्यादि।
अध्यापक दैनन्दिनी का उद्देश्य (purpose of teacher diary )
- यह एक शिक्षक के शिक्षण रिकॉर्ड और उनके द्वारा की गई अन्य गतिविधियों को प्रदान करता है।
- यह शिक्षक को उसे सौंपी गई विभिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रमों को पूरा करने के लिए मार्गदर्शन करता है।
- यह शिक्षकों के कार्य और जिम्मेदारियों को पूरा करने की प्रासंगिकता लाता है।
- यह कक्षा प्रबंधन और अनुदेशात्मक प्रक्रिया तैयार करने में मदद करता है।
- यह प्रधानाध्यापक को कार्यरत शिक्षकों की निगरानी करने और जांच करने का आधार प्रदान करता है।
अध्यापक दैनन्दिनी का उपयोग (use of teacher diary)
शिक्षक डायरी (अध्यापक दैनन्दिनी) का उपयोग-
अध्यापक को सत्रारम्भ में समय विभाग चक्र निर्धारण के साथ ही दैनन्दिनी का संधारण प्रारम्भ कर देना चाहिए। दैनन्दिनी का संधारण करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- शिक्षण की वार्षिक योजना-
- सत्रारम्भ के प्रथम सप्ताह में शिक्षण की वार्षिक योजना बनायी जाये।
- प्रत्येक कक्षा या विषय हेतु पृथक-पृथक योजना का निर्माण किया जाए।
- योजना का निर्माण दैनन्दिनी में वर्णित सत्रानुसार किया जाए।
- कार्य विभाजन (माह तथा इकाईवार) का ब्यौरा स्पष्ट रूप से दिया जाए।
- एक ही विषय को कक्षा के विभिन्न वर्गों में दो अध्यापक द्वारा अध्यापन कार्य करवाया जाता है तो प्रत्येक कक्षा व वर्ग हेतु एक ही इकाई योजना बनायी जाये।
- दैनिक पाठ योजना-
- दैनिक पाठ योजना का निर्माण दैनन्दिनी में वर्णित प्रारूप में किया जाए।
- प्रारूप में उल्लेखित स्तम्भ अध्यापन बिन्दु में पाठ से सम्बन्धित मुख्य बिन्दुओं को विस्तृत लिखा जाए ! केवल पाठ का नाम लिखना ही पर्याप्त नहीं होगा।
- शिक्षण विधि के अन्तर्गत-प्रश्नोत्तर विधि, पाठ प्रदर्शन विधि, व्याख्या-विधि इत्यादि में से अध्ययन के समय जिस विधि का उपयोग किया जाता है। उसका उल्लेख किया जाए।
- कक्षा शिक्षण के समय अध्यापक द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली सहायक सामग्री का स्पष्ट उल्लेख किया जाए।
- गृह कार्य के अन्तर्गत दिये जाने वाले पाठ के प्रश्नों के क्रमांक या अध्यापक द्वारा स्व निर्मित प्रश्नों का उल्लेख किया जाए। प्रश्नों में वस्तुनिष्ठ, अतिलघूत्तरात्मक, लघूत्तरात्मक एवं निबन्धात्मक विविधता हो। जहाँ तक हो स्वनिर्मित प्रश्नों को प्राथमिकता दी जाए।
- शैक्षिक मूल्यांकन –
- प्रभावी अधिगम के लिए आवश्यक है कि छात्रों का शिक्षण के साथ-साथ मूल्यांकन भी किया जाए। ताकि कमजोर एवं प्रतिभावन छात्रों का चयन करके उनको उचित मार्गदर्शन दिया जा सके।
- इसमें निम्न कार्य किये जाने चाहिए
- छात्र-छात्राओं के विभिन्न परीक्षाओं के प्राप्तांकों का अभिलेख रखा जाए। इनकी मासिक प्रगति को आरेख द्वारा भी दर्शाया जा सकता है।
- परीक्षा के प्राप्तांकों के आधार पर अपने विषय के प्रतिभावान एवं कमजोर छात्रों की सूची बनाकर उनके लिए विशेष शिक्षण की योजना बनाकर सतत मूल्यांकन करे।
- कमजोर विद्यार्थियों के लिए निदानात्मक परीक्षण एवं उपचारात्मक शिक्षण दिया जाए।
- इसमें निम्न कार्य किये जाने चाहिए
- प्रभावी अधिगम के लिए आवश्यक है कि छात्रों का शिक्षण के साथ-साथ मूल्यांकन भी किया जाए। ताकि कमजोर एवं प्रतिभावन छात्रों का चयन करके उनको उचित मार्गदर्शन दिया जा सके।
शिक्षक डायरी (अध्यापक दैनन्दिनी) में रखी जाने वाली सावधानियाँ ( Precautions to be taken in teacher diary )
शिक्षण कार्य अध्यापक का प्रमुख कार्य होता है। अतः इसका पूर्व नियोजन वार्षिक, मासिक साप्ताहिक, इक़ाई एवं पाठ योजनाओं में विभक्त किया जाना चाहिए। उनकी प्रविष्ठियाँ दैनन्दिनी में यथास्थान सत्रारम्भ में ही कर लेनी चाहिए। केवल साप्ताहिक एवं दैनिक पाठ योजनाएँ उनकी क्रियान्विति के कुछ समय पूर्व अंकित की जा सकती है।
शिक्षक डायरी कैसे भरे teacher diary kaise banate hain
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शिक्षक डायरी में भरी जाने वाले जानकारी (Information to be filled in teacher diary)
- प्रारंभ में शिक्षक को अपनी व्यक्तिगत पहचान जैसे शिक्षक का नाम, शिक्षण विषय, कक्षा शिक्षक, उसका पता और टेलीफोन नंबर आदि प्रदान करना होगा।
- व्यक्तिगत समय-सारणी एवं उसकी कक्षा की समय सारणी के खाली प्रोफार्मा को कॉपी कर लेना है।
- निर्धारित कक्षाओं के विषय और उनके पाठ्यक्रम को डायरी में लिखना होगा।
- अंतिम कमजोर में पढ़ाए गए विषयों की सामग्री की मात्रा नियमित और लगातार दर्ज की जाती है।
- यदि कोई विषयवस्तु नहीं पढ़ाई जा सकी तो कमजोर में उसे कारण बताना होगा। छुट्टी या अन्य कारणों से स्कूल बंद रहते हैं।
- विद्यार्थी के आंतरिक मूल्यांकन अंकों का रिकॉर्ड भी शिक्षक डायरी में रखा जाता है।
- प्रिंसिपल को हर महीने हस्ताक्षर करने होते हैं, शिक्षक को हर रिकॉर्ड पर अपने हस्ताक्षर करने होते हैं।
- शिक्षक को अपनी शिक्षण गतिविधियों का प्रबंधन स्कूल कैलेंडर के अनुसार करना होगा।
- पाठ्यक्रम अर्धवार्षिक एवं वार्षिक परीक्षाओं से पहले पूरा किया जाना है।
- शिक्षक को स्कूल के अन्य कार्यक्रमों और गतिविधियों में अपनी भागीदारी का उल्लेख करना होगा।
- अपनी डायरी को अद्यतन ( update ) बनाना शिक्षक का दायित्व है।
मैंने क्या सीखा teacher diary in hindi
- शिक्षक डायरी को कैसे भरा जाता हैं ये सीखा ।
- शिक्षक डायरी क्या हैं तथा उसका के फॉर्मेट को समझा और डायरी में प्रविष्टियाँ दर्ज करना सीखा ।
- शिक्षक डायरी से संबंधित आवश्यक दिशा निर्देश को तथा उससे संबंधित उपयुक्त सावधानियाँ के बारे में जाना तथा ध्यान में रखना सीखा ।
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