VMOU Paper with answer ; VMOU HD-06 Paper BA Final Year , vmou hindi litrature important question

VMOU HD-06 Paper BA Final Year ; vmou exam paper 2023

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA Final Year के लिए हिन्दी साहित्य ( Hd-06 Hindi Bhasha Evam Prayojan Mulak Hindi) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –

Section-A

प्रश्न-1. बिहारी हिन्दी के अंतर्गत जो तीन बोलियाँ उल्लेखित हैं,
उनके नाम लिखिए ?

उत्तर:-बिहारी की तीन शाखाएँ हैं – भोजपुरी, मगही और मैथिली

प्रश्न-2. यादृच्छिकता से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:-यादृच्छिकता से तात्पर्य अकस्मात् या आकस्मिकता से होता है, जिसका मतलब होता है कि किसी घटना, परिस्थिति या परिणाम का आने-जाने अपूर्व और अप्रत्याशित होना। यह एक प्रकार की असामंजस्यता या आकस्मिक घटनाएँ होती हैं जिनकी हम पूर्वानुमान नहीं लगा सकते। किसी घटना के होने अथवा ना होने की यदि कोई दिशा निर्धारित नहीं है

प्रश्न-3. मारवाड़ी और मेवाड़ी बोली में क्या अंतर है ?

उत्तर:- मारवाड़ी और मेवाड़ी दोनों ही राजस्थानी बोलियाँ हैं, लेकिन उनमें थोड़ा-सा अंतर होता है।

मारवाड़ी: मारवाड़ी बोली, जिसे मारवाड़ी राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में बोली जाती है, उसमें मारवाड़ी क्षेत्र की संस्कृति और विशेषताओं की आवाज़ाही शामिल होती है।

मेवाड़ी: मेवाड़ी बोली राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में बोली जाती है और इसमें मेवाड़ क्षेत्र की विशेष संस्कृति और भाषा की बुनाई शामिल होती है। मेवाड़ी भाषा को मारवाड़ी की तुलना में एक पृथक् भाषा के रूप में वर्णित किया गया है

प्रश्न-4. काव्यानुवाद किसे कहते हैं ?

उत्तर:-काव्यानुवाद एक प्रकार का भावानुवाद है जिसे अधिकांशतः कवि ही करते हैं,
काव्यानुवाद एक ऐसी क्रिया है जिसमें किसी भाषा के काव्य या शायरी को दूसरी भाषा में रूपांतरित किया जाता है। यह काम कवि या अनुवादक द्वारा किया जाता है ताकि एक भाषा के अनुभाग, भावनाएँ, और अर्थ को दूसरी भाषा में सही रूप से प्रकट किया जा सके।

प्रश्न-5. राजभाषा अधिनियम कब लागू हुआ था ?

उत्तर:-राजभाषा अधिनियम को 1963 में लागू किया गया था। इस अधिनियम के तहत भारत सरकार ने हिंदी को भारतीय संघ, राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया था।

प्रश्न-6. कार्यालयी हिन्दी’ से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:-कार्यालयी हिंदी का अभिप्राय उस हिंदी से है जिसका प्रयोग सरकारी कार्यालयों के दैनिक कार्यों में होता है। ‘कार्यालयी हिन्दी’ से तात्पर्य ऐसी हिंदी भाषा से होता है जो कार्यालय और सार्वजनिक स्थानों में प्रयुक्त हो सके। दूसरे शब्दों में वह हिंदी जिसका प्रयोग वाणिज्यिक, पत्राचार, प्रशासन, व्यापार, चिकित्सा, योग, संगीत, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में होता है उसे कार्यालयी या कामकाजी हिंदी कहते हैं।

प्रश्न-7. जनसंचार के मुद्रित माध्यम के दो रूपों के नाम लिखिए ?

उत्तर:-जनसंचार के मुद्रित माध्यम के रूपों के नाम निम्नलिखित होते हैं:

  1. पत्रिकाएँ
  2. पत्रपत्रिकाएँ
  3. अखबार
  4. मैगज़ीन
  5. पत्रिकाएँ
  6. पुस्तकें
  7. ब्रोशर्स
  8. पोस्टर
  9. कैलेंडर
  10. फ्लायर्स
  11. पैम्फलेट्स
  12. बुकलेट्स
  13. जर्नल्स
प्रश्न-8. लिप्यंतरण किसे कहते हैं ?

उत्तर:- लिप्यंतरण से तात्पर्य वाक्यों, शब्दों या भाषा के एक रूप से दूसरे रूप में बदलने से होता है। यह एक भाषा को दूसरी भाषा में अनुवाद करने की क्रिया होती है, जिससे विभिन्न भाषाओं के लोग आपस में संवाद कर सकते हैं और भाषाओं के बीच साहित्यिक और सामाजिक आदान-प्रदान की संभावना बनती है।

प्रश्न-9. भोजपुरी और मंगही’ बोली का सम्बन्ध किस राज्य से है ?

उत्तर:-भोजपुरी -यह मुख्य रूप से पश्चिमी बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के उत्तर-पूर्वी भाग और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाती है।

मंगही – मुख्य रूप से यह बिहार के पटना, राजगीर, नालंदा, जहानाबाद,गया, अरवल, नवादा, शेखपुरा, लखीसराय, जमुई, मुंगेर, औरंगाबाद और झारखंड के पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, कोडरमा और हजारीबाग के इलाकों में बोली जाती है।

प्रश्न-10. पश्चिमी हिन्दी की दो बोलियों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-पश्चिमी हिन्दी इसके अंतर्गत पाँच बोलियाँ हैं – खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रजभाषा, कन्नौजी और बुंदेली

  1. खड़ी बोली खड़ी बोली (khadi boli) भी पश्चिमी हिंदी (pshcimi hindi) की प्रमुख बोली है, इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है। हिन्दुस्तानी, दक्खिनी हिंदी, उर्दू, साहित्यिक हिंदी और आधुनिक हिंदी का आधार यही खड़ी बोली ही है। khadi boli (खड़ी बोली) की लिपि देवनागरी है।
  2. हरियाणवी बोली: हरियाणवी बोली पश्चिमी हिन्दी की एक प्रमुख बोली है जो हरियाणा राज्य में बोली जाती है। इस बोली की विशेषता है उसके अक्षरिक और ध्वनिक प्रतिकृति में। हरियाणवी बोली में वर्णों की उच्चारण और विशेषताएँ दूसरी बोलियों से थोड़ी अलग होती हैं।
  3. ब्रजभाषा: ब्रजभाषा उत्तर प्रदेश के मध्यीय क्षेत्रों में बोली जाती है और यह पश्चिमी हिन्दी की एक प्रमुख बोली है। इसमें प्रेम और भक्ति के गीत बहुत प्रसिद्ध हैं।
  4. कन्नौजी: कन्नौजी बोली उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में बोली जाती है। यह बोली पश्चिमी हिन्दी की एक उप-बोली है और इसमें बृजभाषा के साथ कुछ समानताएँ होती हैं।
  5. बुंदेली: बुंदेली बोली मध्य प्रदेश के बुंदेलकंड जिले में बोली जाती है। यह बोली भी पश्चिमी हिन्दी की उप-बोली है और उत्तरी प्रदेश के ब्रजभाषा से भी कुछ समानताएँ रखती है।
प्रश्न-11. कोडमिक्सिंग से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:-कोड-व्यत्यय (Code-switching) एवं कोड-सम्मिश्रण (Code-mixing) से अभिप्राय – जब सामाजिक संदर्भ में या किसी से संवाद करते समय आवश्यकता के आधार पर व्यक्ति एक भाषायी कोड (एक भाषा या बोली) से दूसरी भाषा में बोलने लगता है,अथार्थ मिश्रण एक भाषा का दूसरी भाषा में उपयोग, एक भाषण में दो या दो से अधिक भाषाओं या भाषा किस्मों का मिश्रण है, कोडमिक्सिंग कहते हैं

प्रश्न-12. संविधान के किस अनुच्छेद में संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी का उल्लेख है ?

उत्तर:-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार हिंदी हमारे देश की राजभाषा है। इस अनुच्छेद के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।

प्रश्न-13. संक्षेपण का महत्व संक्षिप्त में लिखिए ?

उत्तर:-संक्षेपण के द्वारा कम से कम सार्थक शब्दों में ज्यादा से ज्यादा विचारों, भावों और तथ्यों को पेश किया जाता है। इसमें मूल की कोई आवश्यक बात छूटने नहीं पाती, अनावश्यक बातों को छोड़ दिया जाता है एवं मुख्य सार्थक बातों को ही रखा जाता है।

प्रश्न-14. भाषा के कोई दोअभिलक्षण लिखिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-15. देवनागरी लिपि के मानकीकरण से क्या तात्पर्य हैं ?

उत्तर:-

प्रश्न-16. राजस्थानी भाषा की कोई दो बोलियों के नाम लिखिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-

उत्तर:-

प्रश्न-

उत्तर:-

Section-B

प्रश्न-1. देवनागरी लिपि की विशेषताएँ लिखिए ।

उत्तर:-देवनागरी लिपि एक बहुत ही प्रसिद्ध और प्रचलित लिपि है, जिसका उपयोग हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए होता है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. यह लिपि समस्त प्राचीन भारतीय भाषाओं जैसे- संस्कृत, प्राकृत, पाली एवं अपभ्रंश की भी लिपि रही है
  2. जो लिपि चिह्न जिस ध्वनि का घोतक है उसका नाम भी वही है जैसे- आ, इ, क, ख आदि।
  3. मात्राएँ: देवनागरी लिपि में विभिन्न प्रकार की मात्राएँ (विराम चिह्न) होती हैं, जो ध्वनियों के सही उच्चारण को सुनिश्चित करने में मदद करती हैं।
  4. स्वरों का पूरा प्रतिस्थान: देवनागरी लिपि में हर स्वर (वोवल) का अलग अक्षर होता है, जो भाषाओं की उच्चारण और व्याकरण को सहायक बनाता है।
  5. व्यंजनों के पूरे प्रतिस्थान: व्यंजनों (कन्सोनेंट्स) को भी समग्र रूप में प्रतिस्थान देने की विशेषता है, जिससे शब्दों की शुद्धता बनी रहती है।
  6. उच्चारणीय वर्णमाला: देवनागरी लिपि वर्णमाला को सरलता से दर्शाती है जिससे उच्चारण को समझना और सीखना आसान होता है।
  7. सुंदर आकृति: इस लिपि की सुंदर और नेट आकृति के कारण उसका उपयोग आसानी से हो सकता है, और इसका छपाई और लिखने में भी आकर्षण होता है।
  8. अल्पविराम (हलंत चिह्न): देवनागरी लिपि में अल्पविराम चिह्न का प्रयोग वाक्यों को अलग करने में होता है, जो पठन को सुगम बनाता है।
  9. व्याकरण नियमों की पालना: देवनागरी लिपि में भाषा के व्याकरण नियमों की सुरक्षित पालना होती है, जो शब्दों के सही रूप में लिखने में मदद करती है।
प्रश्न-2. मध्यकाल में हिन्दी भाषा व साहित्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-मध्यकाल में हिंदी का स्वरूप स्पष्ट हो गया तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो गईं। इस काल में भाषा के तीन रूप निखरकर सामने आए— ब्रजभाषा, अवधी व खड़ी बोली। ब्रजभाषा और अवधी का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ तथा तत्कालीन ब्रजभाषा साहित्य को कुछ देशी राज्यों का संरक्षण भी प्राप्त हुआ।

इसी प्रकार मध्यकाल या मध्ययुग काल के दौरान हिन्दी भाषा और साहित्य का स्वरूप एक रूपरेखा में निम्नलिखित रूपों में रहा था –

  1. भाषा का उत्थान: मध्यकाल में हिन्दी भाषा का उत्थान होता है, और यह काव्य, नाटक और निबंध आदि में उपयोग होने लगती है। इस समय के लिखित दस्तावेज़ों में विशिष्ट ध्वनियों और शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिससे व्यक्तिगत भाषा का निर्माण होता है।
  2. भक्तिकाल का प्रारंभ: मध्यकाल में हिन्दी साहित्य का एक प्रमुख पहलु भक्तिकाल की शुरुआत होती है। संत तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई आदि के द्वारा भक्ति और भागवत प्रेम की विविधता का प्रतिनिधित्व किया जाता है।
  3. रीति और भाव काव्य: मध्यकाल में हिन्दी साहित्य रीति और भाव काव्य की परंपरा में विकसित होता है। रीतिकाव्य में विचारों को व्यक्त करने के लिए सुंदर छंद और अलंकरण का प्रयोग होता है, जबकि भावकाव्य में भावनाओं को स्थान मिलता है।
  4. भाषा की विविधता: मध्यकाल में हिन्दी साहित्य में विभिन्न भाषाओं की विविधता दिखाई देती है। यह समय भाषा के परिवर्तन के दौर में था और अलग-अलग क्षेत्रों में विशेषताएँ आवश्यक बनाती थीं।
  5. काव्यधारा की प्रमुखता: मध्यकाल में हिन्दी साहित्य में काव्यधारा की प्रमुखता दिखती है। शृंगार, वीर, रस, आदि के भाव को प्रकट करने के लिए यह धाराएँ विकसित होती हैं।
  6. भूतकालिक कविताएँ: मध्यकाल में हिन्दी साहित्य में भूतकाल के घटनाक्रमों को चित्रित करने वाली कविताएँ भी लिखी जाती हैं।
प्रश्न-3. ‘फलदायी वृक्ष हमेशा झुका रहता है’ इस कथन का पल्लवन कीजिए ?

उत्तर:-जो गुणवान व्यक्ति होता है वह सदा विनम्र रहता है । विद्या ददाति विनयम् । फलों को ज्ञान से तुलना करे तो और वृक्ष के झुकाव को विनम्रता से ले तो हम कह सकते है की ज्ञान इंसान में विनम्रता पैदा करता हैं इसी प्रकार से यह कथन ‘फलदायी वृक्ष हमेशा झुका रहता है’ एक महत्वपूर्ण प्रेरणादायक संदेश प्रस्तुत करता है। जीवन के विभिन्न पहलुओं में हमें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सफलता पाने के लिए हमें संघर्ष करना और कठिनाइयों का सामना करना होता है। इस प्रकार के परिस्थितियों में उन व्यक्तियों की तरह होना आवश्यक होता है जो हालातों के बावजूद अपने लक्ष्य की दिशा में निरंतर प्रयास करते रहते हैं। जैसे कि फलदायी वृक्ष हमेशा झुका रहता है, वैसे ही हमें भी समस्याओं और परिश्रमों के आगे झुकने की नहीं, बल्कि उनके सामने मुंह उचकाने की प्रेरणा लेनी चाहिए। हमारे प्रयास और संघर्ष के परिणामस्वरूप, हम निश्चित रूप से सफलता की ओर पहुंच सकते हैं, चाहे रास्ते में कितनी भी मुद्दतें और चुनौतियाँ क्यों ना आएं।

प्रश्न-4. प्रयोजनमूलक हिन्दी को परिभाषित करते हुए प्रयोजनमूलक हिन्दी के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-जिस भाषा का प्रयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाए, उसे ‘प्रयोजनमूलक भाषा’ कहा जाता है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि प्रयोजन के अनुसार शब्द-चयन, वाक्य-गठन और भाषा-प्रयोग बदलता रहता है। व्यावहारिक हिन्दी, कामकाजी हिन्दी, प्रयोजनी हिन्दी, प्रयोजनपरक हिन्दी, प्रायोगिक हिन्दी, प्रयोगपरक हिन्दी ।

प्रयोजनमूलक हिन्दी की भाषा सटिक, सुस्पष्ट, गम्भीर, वाच्यार्थ प्रधान, सरल तथा एकार्थक होती है और इसमें कहावतें, मुहावरे, अलंकार तथा उक्तियाँ आदि का बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता है

प्रयोजनमूलक हिन्दी, जिसे सबसे संक्षेप में “उद्देश्यवादी हिन्दी” भी कहा जाता है, एक ऐसी भाषा प्रणाली है जो विशेष उद्देश्यों और आवश्यकताओं के अनुसार व्यक्ति को हिन्दी का प्रयोग करने में सहायक बनाती है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि भाषा का प्रयोग व्यक्ति के साक्षरता, विशेषज्ञता, विकास और सफलता में मदद कर सके।

प्रयोजनमूलक हिन्दी का स्वरूप निम्नलिखित प्रकारों में होता है

  1. व्यावसायिकता
  2. विशेषज्ञता क्षेत्रों में
  3. शिक्षा क्षेत्र में
  4. सामाजिक और सार्वजनिक संवाद
  5. प्रोफेशनल संवाद
प्रश्न-5. प्रतिवेदन से क्या तात्पार्य है ? विस्तार से समझाइए ।

उत्तर:-प्रतिवेदन (Report) का तात्पर्य है – भूत अथवा वर्तमान की विशेष घटना, प्रसंग या विषय के प्रमुख कार्यो के क्रमबद्ध और संक्षिप्त विवरण को ‘प्रतिवेदन’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में- वह लिखित सामग्री, जो किसी घटना, कार्य-योजना, समारोह आदि के बारे में प्रत्यक्ष देखकर या छानबीन करके तैयार की गई हो, प्रतिवेदन या रिपोर्ट कहलाती है। प्रतिवेदन एक ऐसी विशेष रूपरेखा है जिसमें किसी घटना, प्रस्थिति, या विषय की जानकारी को संक्षिप्त और सुसंगत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। यह एक विशिष्ट लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति किए गए गहराईवादी अन्वेषण, अध्ययन और विश्लेषण के परिणामस्वरूप तैयार किया जाता है। प्रतिवेदन विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग होता है, जैसे कि समाचार, विज्ञान, विश्लेषण, और व्यवसाय में।

प्रश्न-6. प्रतिवेदन के प्रमुख लक्ष्य होते हैं ?

उत्तर:-प्रतिवेदन के प्रमुख लक्ष्य निम्न प्रकार से होते हैं-

  1. सुचना प्रस्तुत करना: प्रतिवेदन का प्रमुख उद्देश्य लोगों को किसी घटना या संघटना की सुचना प्रस्तुत करना होता है। यह संगठनों, संस्थानों, या व्यक्तियों की दैनिक कार्यक्रम और प्रस्थितियों की जानकारी साझा करने में मदद करता है।
  2. विश्लेषण और व्याख्या: प्रतिवेदन में घटना के पीछे के कारण, परिणाम और प्रभाव का विश्लेषण और व्याख्या किया जाता है। यह आधिकारिक रूप से उपलब्ध डेटा को साझा करके उसकी सही समझ में मदद करता है।
  3. संवाद और जागरूकता: प्रतिवेदन के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक, और सामाजिक मुद्दों की जागरूकता फैलाई जाती है। यह लोगों को समाज में हो रही घटनाओं के बारे में जागरूक करता है और सामाजिक संवाद को बढ़ावा देता है।
  4. निर्णय लेने में मदद: प्रतिवेदन विभिन्न प्रकार के निर्णयों की बुनाई में मदद करता है, चाहे वह व्यक्तिगत, पेशेवर, या सामाजिक हो। डेटा की सही विश्लेषण के आधार पर निर्णय लेने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  5. जानकारी प्रस्तुत करना: प्रतिवेदन के माध्यम से विशेष जानकारी, शोध, और अनुसंधान की प्रस्तुति की जाती है। यह उपयोगकर्ताओं को नवाचारों, विश्लेषणों, और विकासों की जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है।

इस प्रकार, प्रतिवेदन एक महत्वपूर्ण योजना और उपकरण होता है जो जानकारी को संक्षेपित और सुसंगत तरीके से प्रस्तुत करने में मदद करता है, जिससे लोग तेजी से और सही ढंग से सूचना प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न-7. न्यायिक क्षेत्र में हिन्दी भाषा की भूमिका का उल्लेख कीजिए ?

उत्तर:-न्यायिक क्षेत्र में हिन्दी भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो न्यायिक प्रक्रियाओं, न्यायिक निर्णयों और न्यायिक प्रस्तावनाओं में उपयोग होती है। हिन्दी भाषा के प्रयोग से न्यायिक प्रक्रियाएँ साहित्यिक और विधिक दृष्टि से सुसंगत रूप में प्रस्तुत की जाती हैं। जो निम्न प्रकार से हैं-

  1. न्यायिक प्रस्तावनाएँ: हिन्दी भाषा का प्रयोग न्यायिक प्रस्तावनाओं में उपयोगी होता है, जहाँ मुकदमों के पक्ष और विपक्ष के तरफ से तर्कों और सबूतों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।
  2. न्यायिक निर्णयों का सारांश: हिन्दी भाषा का प्रयोग न्यायिक निर्णयों के सारांश और समर्थन के लिए किया जाता है। यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि निर्णय उचित और सही हैं और उनकी विश्वसनीयता को बढ़ावा देता है।
  3. कानूनी डॉक्युमेंटेशन: हिन्दी भाषा का प्रयोग कानूनी डॉक्युमेंटेशन में भी होता है, जैसे कि मुकदमों, आदालती पत्रों, और साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए।
  4. न्यायिक प्रक्रियाएँ: हिन्दी भाषा का प्रयोग न्यायिक प्रक्रियाओं में भी होता है, जैसे कि सुनवाई, प्राथमिक विचार, और अपील में।
  5. विधिक विश्लेषण: हिन्दी भाषा का प्रयोग विधिक विश्लेषण में भी किया जाता है, जैसे कि कानूनी मामलों की विश्लेषण और विवादों के तर्कों को समझाने में।
  6. न्यायिक प्रक्रियाओं की साझा करना: हिन्दी भाषा का प्रयोग न्यायिक प्रक्रियाओं की साझा करने में भी किया जाता है, जैसे कि न्यायिक निर्णयों, प्रस्तावनाओं, और अन्य कानूनी डॉक्युमेंट्स को समझाने में।

इस प्रकार, हिन्दी भाषा न्यायिक क्षेत्र में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रियाएँ सही और समझने में सरल हों।

प्रश्न-8.समाचार-पत्रों के महत्व पर एकस संक्षिप्त लेख लिखिए ?

उत्तर:- समाचार-पत्र एक सूचनाओं का महत्वपूर्ण माध्यम है जो समाज को नवीनतम समाचार, जानकारियाँ और विचारों से अवगत कराता है। यह सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, और विज्ञानिक घटनाओं की जानकारी प्रदान करने के साथ-साथ जनता की आवश्यकताओं और रुचियों को पूरा करने में भी मदद करता है।

समाचार-पत्रों के महत्व कुछ निम्न प्रकार से है:

  1. नवीनतम समाचार: समाचार-पत्रों में प्रकाशित समाचार लोगों को नवीनतम और महत्वपूर्ण समाचार से अवगत कराते हैं। यह विशेष घटनाओं, विश्लेषणों और आपत्तियों की जानकारी प्रदान करके सामाजिक जागरूकता में मदद करता है।
  2. जानकारी और विश्लेषण: समाचार-पत्रों में प्रकाशित लेख और विश्लेषण विभिन्न मुद्दों, घटनाओं और विषयों के प्रति जनता को गहराई से जानकारी प्रदान करते हैं। विशेषज्ञों के विचार और विश्लेषण से लोग बेहतर समझ पाते हैं और सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  3. राजनीति और समाज: समाचार-पत्रों में प्रकाशित राजनीतिक और समाज से संबंधित समाचार लोगों को सरकारी नीतियों, आपत्तियों और मुद्दों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। यह लोगों को समाज में चल रही प्रमुख बदलावों से अवगत कराता है।
  4. शिक्षा और जागरूकता: समाचार-पत्रों में प्रकाशित विज्ञान, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, और शिक्षा से संबंधित लेख लोगों की जागरूकता और ज्ञान को बढ़ावा देते हैं।
  5. विचार व्यक्ति करने का माध्यम: समाचार-पत्रों में विचार व्यक्ति करने का माध्यम मिलता है। लेखक और समाचारकर्ताओं के द्वारा लिखे गए लेख सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर विचार व्यक्त करने का माध्यम होते हैं।
प्रश्न-9. प्रयोजनमूलक हिन्दी और साहित्यिक हिन्दी में अंतर स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:- प्रयोजनमूलक हिन्दी: यह वह हिन्दी है जो हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग होती है, जैसे कि बोलचाल में, सामाजिक मीडिया में, शिक्षा में आदि। इसमें व्यक्ति का प्राथमिक उद्देश्य आपसी संवाद करना और ज्ञान अद्यतन करना होता है। प्रयोजनमूलक हिन्दी में साधारण शब्दावली, सामान्य वाक्य संरचना और अपनी रोज़ाना की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता होती है।

साहित्यिक हिन्दी: यह वह हिन्दी है जो साहित्य क्षेत्र में प्रयुक्त होती है, जैसे कि काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि। साहित्यिक हिन्दी में व्यक्ति का उद्देश्य रस, भावनाओं, विचारों, और विशेषताओं को साझा करना होता है। इसमें भाषा का उच्च स्तर, कला, और विचारकों की गहराई होती है।

इस प्रकार, प्रयोजनमूलक हिन्दी और साहित्यिक हिन्दी के बीच मूल अंतर उनके प्रयोग के उद्देश्य, भाषा की परिप्रेक्ष्य और शैली में होता है।

प्रश्न-10. भाषा के प्रमुख अभिलक्षणों पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:- भाषा के प्रमुख अभिलक्षण (चरित्रिसंकेत) निम्नलिखित हैं:

  1. ध्वनि (स्वर): ध्वनियों का सही उच्चारण और उनके सम्बन्धित अक्षरों के साथ बदलने से भाषा का ध्वनित पहचाना जा सकता है।
  2. शब्दावली: भाषा की सामान्य और विशेष शब्दावली से उसकी पहचान की जा सकती है।
  3. वाक्य संरचना: सही वाक्य संरचना और वाक्यों के अर्थ के साथ भाषा की पहचान की जा सकती है।
  4. व्याकरण: सही व्याकरणिक नियमों के पालन से भाषा का अभिलक्षण किया जा सकता है।
  5. भाषा का प्रयोग: भाषा के उपयोग के तरीकों, वाक्य रचना, और भाषा की प्रकृति से उसका अभिलक्षण किया जा सकता है।
  6. रस, अलंकार, छंद: भाषा के विशिष्टताओं में रस, अलंकार और छंद का खास महत्व होता है, जिनसे भाषा का अभिलक्षण किया जा सकता है।
  7. समर्थन और प्रतिष्ठा: भाषा का समर्थन और प्रतिष्ठा समुदाय में भाषा की महत्वपूर्णता को दर्शाते हैं और उसकी पहचान को स्थापित करते हैं।

यादृच्छिकता , यादृच्छिकता का अर्थ है ‘ जैसी इच्छा ‘ या ‘ माना हुआ ‘ हमारी भाषा में किसी वस्तु या भाव का किसी शब्द के साथ सहज-स्वाभाविक संबंध नहीं है। सृजनात्मकता , अनुकरण ग्राह्यता ,परिवर्तनशीलता ,भाषा सामाजिक संपत्ति है ,भाषा परंपरागत वस्तु है ,भाषा अर्जित संपत्ति है ,भूमिकाओं की परंपरा परिवर्तनशीलता

प्रश्न-11. हिन्दी की प्रयोजनमूलक शैलियाँ कौन-कौन सी है? समझाइए ?

उत्तर:- हिन्दी भाषा की प्रयोजनमूलक शैलियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. लक्षणांकन शैली: इस शैली में भाषा का उद्देश्य विचारों को स्पष्टता से प्रकट करना होता है। शब्दों की उचित विभाजन, वाक्य संरचना, और स्पष्ट अर्थ विचारों को पहुँचाने में मदद करते हैं।
  2. वर्णमाला शैली: इसमें भाषा का उद्देश्य शब्दों के वर्णों की सुंदर और कलात्मक व्यवस्था को प्रमोट करना होता है। वर्णों के रस, छाया और ध्वनि को प्रमुखता देने का प्रयास किया जाता है।
  3. संवादमूलक शैली: इस शैली में भाषा का उद्देश्य वाक्यों के माध्यम से चरित्रों की बातचीत को प्रस्तुत करना होता है। यह चरित्रों की व्यक्तिगतिका और भाषा की सामाजिकता को बढ़ावा देता है।
  4. उपमा शैली: इसमें भाषा का उद्देश्य विचारों को उपमाओं के माध्यम से सुंदरता से प्रकट करना होता है। तुलना और उपमा का उपयोग करके अद्वितीयता और विचारशीलता को दिखाने का प्रयास किया जाता है।
  5. प्रतिष्ठान शैली: इस शैली में भाषा का उद्देश्य चरित्रों की सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा को प्रमोट करना होता है। भाषा के माध्यम से समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
  6. परिस्थितिक शैली: इसमें भाषा का उद्देश्य वात्सल्य और सामाजिक समर्पण को प्रकट करना होता है। चरित्रों की परिस्थितियों के अनुसार भाषा को रूपांतरित किया जाता है।
प्रश्न-12. वर्तमान समय में अनुवाद की आवश्यकता व महत्त्व पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-13. पल्लवन करते समय ध्यान देने योग्य बातों पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-14. वर्तमान भारत में हिन्दी की दृष्टि से जनसंचार के प्रभावी माध्यमों का उल्लेख कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-15. प्रयोजनमूलक हिन्दी के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-16. प्रतिवेदन किसे कहते हैं? इसके स्वरूप का भी उल्लेख कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न- 17. हिन्दी के उद्भव एवं विकास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-18. पश्चिमी हिन्दी की बोलियों का परिचय दीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-19. प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूपों पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-20. अनुवाद को परिभाषित करते हुए उसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-21. प्रशासनिक पत्राचार के विविध रूपों पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-22. जनसंचार माध्यमों के महत्त्व को समझाइए ?

उत्तर:-

प्रश्न-23. प्रशासनिक शब्दावली का अर्थ व निर्माण के सिद्धान्तों को समझाइए ?

उत्तर:-

प्रशासनिक शब्दावली का अर्थ व निर्माण के सिद्धान्तों को समझाइए 

प्रश्न-24. मसौदा लेखन का तात्पर्य स्पष्ट करते हुए स्वरूप स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-25.

उत्तर:-

Section-C

प्रश्न-1. राजभाषा हिन्दी’ का स्वरूप एवं कार्यान्वयन विषय पर एक लेख लिखिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-2. अनुवाद की परिभाषा देते हुए उसके विविध प्रकारों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-3. बिहारी हिन्दी की प्रमुख बोलियों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-4. किन्हीं दो पर टिप्पणी लिखिए ?
(i) जनसंचार माध्यम में हिन्दी

जनसंचार माध्यमों में हिन्दी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। हिन्दी भाषा भारत की राष्ट्रीय भाषा है और इसका उपयोग विभिन्न तरीकों से जनसंचार के लिए किया जाता है। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण जनसंचार माध्यम हैं जिनमें हिन्दी का प्रयोग होता है:

  1. प्रिंट मीडिया: हिन्दी अखबार, पत्रिकाएँ और मैगजीन लोगों तक विभिन्न समाचार, जानकारी और विचार पहुंचाते हैं। यह माध्यम जनसंचार की पहुंच को बड़ावा देता है और समाज में जागरूकता फैलाने में मदद करता है।
  2. रेडियो: हिन्दी में प्रसारित होने वाले रेडियो प्रोग्राम भी जनसंचार के माध्यम के रूप में महत्वपूर्ण हैं। यह सुनने वालों तक जानकारी, समाचार, कल्चरल प्रोग्राम आदि पहुंचाते हैं।
  3. टेलीविजन: हिन्दी टेलीविजन चैनल विभिन्न विषयों पर प्रसारण करके लोगों को जागरूक करते हैं और उन्हें मनोरंजन भी प्रदान करते हैं।
  4. इंटरनेट और डिजिटल मीडिया: आजकल इंटरनेट और डिजिटल मीडिया भी हिन्दी में विभिन्न प्रकार की जानकारी, समाचार, वीडियो, ऑडियो, ब्लॉग्स, सोशल मीडिया पोस्ट आदि प्रस्तुत करते हैं।
  5. सोशल मीडिया: प्लेटफ़ॉर्म जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि पर हिन्दी में जानकारी और विचार साझा किए जाते हैं।
(ii) मसौदा लेखन

मसौदा लेखन एक महत्वपूर्ण कौशल है जिससे हम अपने विचारों और ज्ञान को स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। यह एक तरह की रचनात्मकता है जिसमें विचारों को व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करने का कौशल आवश्यक होता है। निम्नलिखित कुछ टिप्स मसौदा लेखन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं:

  1. विषय का चयन: आपका विषय ऐसा होना चाहिए जिसमें आपका रुचि हो और जिस पर आपके पास पर्याप्त ज्ञान हो। आपके विचार स्पष्ट और प्रतिष्ठित होने चाहिए।
  2. शीर्षक और प्रारंभ: एक प्रभावशाली शीर्षक और वाक्यांश के साथ आपका लेख शुरू होना चाहिए जो पाठकों की ध्यान को आकर्षित कर सके।
  3. संरचना: आपके मसौदे को अच्छी संरचना देना महत्वपूर्ण है। प्रारंभिक परिचय, मुख्य बिंदुओं की व्याख्या और निष्कर्ष का स्पष्टीकरण करें।
  4. साक्षात्कार और उदाहरण: अपने मसौदे को आपके व्यक्तिगत अनुभव, वाक्यांश या उदाहरणों के माध्यम से सुनाएं। यह पाठकों के लिए विषय को समझने में मदद करेगा।
  5. भाषा और व्याकरण: सही भाषा, व्याकरण, और शब्दों का सटीक उपयोग करें। वाक्य संरचना भी स्पष्ट होनी चाहिए।
  6. आकर्षक भाषा: प्रतिष्ठित शब्द, उच्चारण, और समर्थ वाक्यों का उपयोग करके आकर्षक भाषा का उपयोग करें।
  7. पूरी तरह से संपादित करें: लेख को एक बार लिखने के बाद, उसे संपूर्णता के साथ संपादित करें। अनुचितताओं, गलतियों, और अस्पष्टताओं को सुधारें।
  8. अंतिम विचार: लेख के अंत में आपका निष्कर्ष होना चाहिए, जिसमें आप अपने मसौदे की मुख्य बातों को सारांशित कर सकें।
(iii) पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ

(iv) हिन्दी का विकास

प्रश्न-5. भाषा की परिभाषा देते हुए विशेषताएँ लिखिए ?

उत्तर:- भाषा एक संवादनात्मक संकेत-सिस्टम है जिसका उपयोग लोगों के बीच संवाद के लिए होता है। यह शब्द, वाक्य, और भाषाई नियमों का संयोजन होता है जिसका उपयोग विचार, भावनाएं, और ज्ञान की साझा करने में किया जाता है। भाषा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. सांकेतिकता (Arbitrariness): भाषा में शब्दों और उनके अर्थों के बीच कोई नियमित संबंध नहीं होता है। अर्थों का चयन सांकेतिक होता है और यह लोगों की सामाजिक समझ और सहमति पर आधारित होता है।
  2. व्याकरण (Grammar): भाषा के व्याकरणिक नियम उसकी संरचना को परिभाषित करते हैं। यह वाक्यों को कैसे बनाने और पूरी करने के निर्देश प्रदान करते हैं।
  3. शब्द संग्रहण (Lexicon): भाषा में शब्दों का संग्रहण एक विशिष्ट शब्दकोष में होता है जिसमें उनके अर्थ और उपयोग संग्रहित होते हैं।
  4. द्विधीभाषा (Bilinguality): भाषा एकाधिक व्यक्तियों के बीच संवाद को संभव बनाती है, जो एक से अधिक भाषाओं में हो सकती है।
  5. संवेदनशीलता (Sensitivity): भाषा व्यक्तिगत और सामाजिक भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम होती है और उन्हें प्राथमिकता देती है।
  6. अनुवाद (Translation): भाषा के माध्यम से अलग-अलग भाषाओं में जानकारी और विचारों की आपसी परिप्रेक्ष्य में परिवर्तन किया जा सकता है।
  7. समृद्धि (Richness): भाषा में विभिन्न शब्द, भाषाएँ, और भाषाई विधियाँ होती हैं, जिनका उपयोग विविधता और व्यक्तिगतता को व्यक्त करने में किया जा सकता है।
  8. शिक्षा और सीखने की क्षमता (Educational Capacity): भाषा विश्वभर में ज्ञान की प्राप्ति और संदेशों की प्रसारण की प्रमुख साधना है जिसके माध्यम से लोग सीखते हैं और ज्ञान प्राप्त करते हैं।
  9. समाजिकता (Social): भाषा सामाजिक संबंधों की निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और समाज में संवाद को सुनिश्चित करने में मदद करती है।
  10. परिवर्तनशीलता (Dynamic Nature): भाषा समय के साथ परिवर्तित होती रहती है और नए शब्द, उच्चारण, और भाषाई विधियों का निर्माण होता रहता है।

यह विशेषताएँ भाषा को एक अद्वितीय और शक्तिशाली संवादनात्मक साधन बनाती हैं जिसका माध्यम उन्हें सोचने, साझा करने, और समझने में सहायक होता है।

प्रश्न-6. अनुवाद की प्रक्रिया और विविध प्रकारों को समझाइए ?

उत्तर:-

प्रश्न-7. देवनागरी लिपि के नामकरण एवं विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-8. किन्हीं दो पर टिप्पणी लिखिए ?
(i) विज्ञापन में हिन्दी

(ii) व्यवसाय में हिन्दी

(iii) बैंकिंग प्रणाली में हिन्दी

(iv) तकनीकी हिन्दी भाषा

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