VMOU HI-02 Paper BA 1 st Year ; vmou exam paper 2023
नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA First Year के लिए इतिहास ( HI-02 , History of Rajasthan (From Earliest Time to 1956 A.D) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –
Table of Contents
Section-A
प्रश्न-1. पृथ्वीराज विजय पुस्तक के लेखक कौन है ?
उत्तर:-पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है। वर्ष 1191-93 ई. के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित ‘जयानक‘ ने की।
प्रश्न-2. राजस्थान के इतिहास के दो पुरातात्विक स्त्रोतों के नाम बताइए ?
उत्तर:- मुहरें, भवन तथा स्मारक, अभिलेख,नगर, सिक्के, मूर्तियाँ, चित्र, गुहा स्थापत्य आदि को शामिल किया जाता है।
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोत
- (1) शिलालेख फारसी शिलालेख
- (2) सिक्के महत्त्वपूर्ण सिक्के
प्रश्न-3. हल्दीघाटी के युध्द के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:-हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था। अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह प्रथम ने किया था, जबकि इस युद्ध में महाराणा प्रताप को मुख्य रूप से भील जनजाति का सहयोग मिला था।
प्रश्न-4. मोतीलाल तेजावत कौन थे ?
उत्तर:-आदिवासियों के मसीहा मोतीलाल तेजावत का जन्म 1888 ई में झाड़ोल के पास कोल्यारी गाँव में हुआ. शिक्षा समाप्ति के बाद ये झाड़ोल ठिकाने में कामदार बन गये. ‘आदिवासियों का मसीहा‘ के नाम से जाने जाते हैं। इन्होंने वनवासी संघ की स्थापना की।
प्रश्न-5. जैन ग्रन्थ कुवलयमाला के लेखक का नाम बताइए ?
उत्तर:-कुवलयमाला के रचयिता उद्योतन सूरि
प्रश्न-6. पुरातात्विक स्थल आहड़ के उत्खननकर्ताओं के नाम बताइए ?
उत्तर:-आहड़ सभ्यता उत्खननकर्ता – सर्वप्रथम 1953 ई. – अक्षय कीर्ति व्यास ने किया था । आहड़ सभ्यता का दूसरी बार उत्खननकर्ता 1956 ई. में रतनचन्द्र अग्रवाल, 1961 ई.
प्रश्न-7. राजस्थान में भक्ति आन्दोलन के किन्हीं चार सन्तों के नाम बताइए ?
उत्तर:-राजस्थान में भक्ति आन्दोलन का अलख जगाने वाले प्रथम संत पीपा जी थे|
- मीराबाई: मीराबाई राजपूताना की महान भक्त संत थी जिन्होंने अपनी भक्ति और कृष्ण भक्ति के गीतों के माध्यम से लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने समाज में जातिगत भेदभाव के खिलाफ उत्साहित किया और भक्ति के माध्यम से ईश्वर की प्रेम-भावना को प्रस्तुत किया।
- संत कबीर: संत कबीर राजस्थान के अलावा भारत भर में महत्वपूर्ण भक्ति संत थे। उन्होंने धार्मिक तथा सामाजिक बदलाव के लिए अपने दोहों में उपदेश दिए और मानवता के एकता और प्यार की महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत की।
- संत गोस्वामी तुलसीदास: संत तुलसीदास भगवान श्रीराम के भक्त और रामायण के प्रसिद्ध लेखक थे। उनकी रचनाएँ भगवान राम की महिमा और उनके भक्तों के प्रति भक्ति की अद्वितीय भावना को प्रकट करती हैं।
- संत नामदेव: संत नामदेव राजस्थान के भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण संत रहे हैं। उन्होंने अपने भजनों और अभंगों के माध्यम से भगवान की महिमा का प्रचार किया और समाज में धार्मिक जागरूकता को बढ़ावा दिलाया।
प्रश्न-8. सूफीवाद को परिभाषित कीजिए ?
उत्तर:-सूफीवाद इस्लाम का एक आध्यात्मिक रहस्यवाद है तथा यह एक धार्मिक संप्रदाय है जो ईश्वर की आध्यात्मिक खोज पर ध्यान केंद्रित करता है और भौतिकवाद को नकारता है। यह इस्लामी रहस्यवाद का एक रूप है जो तपस्या पर ज़ोर देता है। इसमें भगवान की भक्ति पर बहुत ज़ोर दिया गया है।
प्रश्न-9. राजस्थान के किस स्थान से अशोक के अभिलेख प्राप्त हुए है ?
उत्तर:-भाबरू (विराटनगर)- यह राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर में है।
प्रश्न-10. विजयसिंह पथिक कौन थे ?
उत्तर:-विजय सिंह पथिक (1882-1954) का जन्म गुलावठी, जिला बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश, भारत में एक गुर्जर परिवार में हुआ था ,भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें राष्ट्रीय पथिक के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न-11. मंगल पाण्डेय के बारे में आप क्या जानते हैं
उत्तर:-देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। वह सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार से थे। मंगल पाण्डे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी और नेता थे। उन्होंने 1857 के सिपाही विद्रोह (सिपाही बग) के समय बर्रेकपुर में अपने साथियों के साथ विद्रोह की शुरुआत की थी।
प्रश्न-12. ताज-उल-मआसिर का लेखक कौन था ?
उत्तर:-इस ग्रन्थ की रचना ‘हसन निज़ामी‘ ने की है।
प्रश्न-13. राजस्थान दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर:- यह हर वर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
प्रश्न-14. राजस्थान के एकीकरण में गोकुल भाई भट्ट का क्या योगदान था ?
उत्तर:-गोकुलभाई भट्ट ने 22 जनवरी, 1939 को सिरोही प्रजामंडल की स्थापना की। देश की आजादी के बाद उन्होंने राजस्थान के एकीकरण के दौरान सिरोही जिले के विभाजन और माउंट आबू को गुजरात को सौंपने का विरोध किया। इसके परिणामस्वरूप माउंट आबू राजस्थान का हिस्सा बना रहा। वे सार्वजनिक शिक्षा के प्रचारक थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता, चरखा और खादी के प्रचार-प्रसार और अस्पृश्यता निवारण के लिए लगातार संघर्ष किया। बाद में उन्होंने बम्बई की बजाय सिरोही को अपना कार्यक्षेत्र बनाया।
प्रश्न-15. राजस्थान में ‘एक्की आन्दोलन’ का प्रणेता कौन था ?
उत्तर:-मोतीलाल तेजावत ने 1921 ई में इस आन्दोलन को नेतृतव प्रदान किया।
प्रश्न-16. मुहणोत नैणसी कौन था ?
उत्तर:-मुहता नैणसी (1610–1670) महाराजा जसवन्त सिंह के राज्यकाल में मारवाड़ के दीवान थे।
प्रश्न-17.श्यामल दासजी कौन थे ?
उत्तर:- श्यामल दासजी सुप्रसिद्ध इतिहासकार तथा लेखक थे। 1879 ई में महाराणा सज्जनसिंह ने इनको ‘कविराज’ की उपाधि से विभूषित किया गया। कविराज को रॉयल एशियाटिक सोसायटी लंदन का फेलो चुना गया। ब्रिटिश सरकार ने कविराज को ‘महामहोपाध्याय’ की उपाधि प्रदान की तथा ‘कैसर-ए-हिन्द’ के सम्मान से सम्मानित किया।
प्रश्न-18. कालीबंगा की खोज किसने की ?
उत्तर:- सर्वप्रथम 1952 ई में अमलानन्द घोष ने इसकी खोज की।
प्रश्न-19. मानगढ़ धाम के विषय में लिखिए ?
उत्तर:-मानगढ़ धाम बांसवाड़ा जिले में स्थित है। यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है। पहाड़ी का एक हिस्सा गुजरात में और एक हिस्सा राजस्थान में शामिल है। इस पहाड़ी क्षेत्र में गोविंद गुरू नामक आदिवासी नेता ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ स्वतंत्रता का आंदोलन चला रहे थे। 17 नवंबर, 1913 को मानगढ़ (बाँसवाड़ा, राजस्थान) में एक भयानक त्रासदी हुई जिसमें 1,500 से अधिक भील आदिवासी मारे गए। गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित मानगढ़ पहाड़ी को आदिवासी जलियाँवाला के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न-20. राजप्रशस्ति का लेखक कौन था ?
उत्तर:- रणछोड़ भट्ट तैलंग (राज प्रशस्ति एक संस्कृत काव्य और शिलालेख है जो महाराणा राज सिंह द्वारा 1676 में राजसमंद झील के निर्माण की स्मृति में रचा गया है। प्रशस्ति काव्य रणछोड़ भट्ट तैलंग द्वारा अपने संरक्षक राज सिंह के आदेश पर लिखा गया था।)
प्रश्न-21. पीपा के विषय में लिखिए ?
उत्तर:- पीपाजी (14 वीं-15 वीं शताब्दी) गागरोन के शाक्त राजा एवं सन्त कवि थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। गुरु ग्रंथ साहिब के अलावा 27 पद, 154 साखियां, चितावणि व ककहारा जोग ग्रंथ इनके द्वारा रचित संत साहित्य की अमूल्य निधियां हैं जिन्हें पीपा बैरागी के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न-22. दुर्गादास कौन था ?
उत्तर:- दुर्गादास राठौड़ एक वीर राठौड़ राजपूत योद्धा थे, जिन्होने मुगल शासक औरंगज़ेब को युद्ध में पराजित किया था। दुर्गा दास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718) को 17वीं सदी में जसवंत सिंह के निधन के पश्चात् मारवाड़ में राठौड़ वंश को बनाये रखने का श्रेय जाता है।
प्रश्न-23.
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प्रश्न-25.
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Section-B
प्रश्न-1. महाराणा कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए ?
उत्तर:-राणा कुंभा को ‘राजस्थान की स्थापत्य कला का जन्मदाता’ कहा जाता है। कविराजा श्यामलदास के अनुसार मेवाड़ के 84 दुर्गों में से कुम्भा ने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया था। कर्नल टॉड के अनुसार मेवाड़ के सुरक्षा प्रबन्ध के लिए बताया गया है कि उसने 32 किलों को बनवाया।
महाराणा कुम्भा, मेवाड़ के चर्चित राजा थे और उनके समय में मेवाड़ राज्य का एक उच्च स्तर पर सांस्कृतिक विकास हुआ था। उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं:
- शैली और शिल्पकला: महाराणा कुम्भा के समय में शिल्पकला का महत्वपूर्ण स्थान था। उन्होंने शैल्य और वास्तुकला को बढ़ावा दिया और अपने महलों, मंदिरों और पार्कों में उन्हें प्रदर्शित किया। उनकी शिल्पकला विलक्षण थी और उनके द्वारा निर्मित भव्य मंदिर और महल आज भी उनके सौंदर्य और मानवता की उच्चता का प्रतीक हैं।
- शिक्षा और साहित्य: महाराणा कुम्भा ने शिक्षा को भी महत्व दिया। उन्होंने मेवाड़ में शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की और साहित्य को भी प्रोत्साहित किया। उनके द्वारा लिखित कई पुस्तकें आज भी उपलब्ध हैं और उनकी शायरी भी प्रसिद्ध है।
- रंगमंच और कला: उनके समय में रंगमंच कला में भी विकास हुआ। उन्होंने नाटक, नृत्य, और संगीत को प्रोत्साहित किया और अपने दरबार में कलाकारों को समर्थन दिया।
- राजस्थानी संगीत और नृत्य: महाराणा कुम्भा के राज्य में राजस्थानी संगीत और नृत्य का विकास हुआ। उन्होंने लोक संगीत और कला को प्रोत्साहित किया और राजस्थानी संस्कृति को मजबूती दी।
- शिक्षा का प्रोत्साहन: महाराणा कुम्भा ने महिलाओं की शिक्षा को भी महत्व दिया और उन्हें शिक्षित करने के लिए निरंतर प्रयास किए।
प्रश्न-2. मध्यकालीन राजस्थान में महिलाओं की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ?
उत्तर:-
प्रश्न-3. वर्तमान राजस्थान के गठन के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए ?
उत्तर:-
- प्रथम चरण – मतस्य संघ 17/18 मार्च, 1948
- दुसरा चरण– पूर्व राजस्थान 25 मार्च 1948
- तीसरा चरण– संयुक्त राजस्थान 18 अप्रैल, 1948
- चैथा चरण– वृहद राजस्थान 30 मार्च, 1949
- पांचवा चरण– संयुक्त वृहद् राजस्थान 15 मई, 1949
- छठा चरण– राजस्थान संघ 26 जनवरी, 1950
- सतंवा चरण– वर्तमान राजस्थान 1 नवम्बर, 1956
प्रश्न-4. अकबर व आमेर के मानसिंह के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए ?
उत्तर:-मुगल सम्राट अकबर के समय जिन राजपूत शासकों ने मुगलों को सहयोग किया उनमें मानसिंह का योगदान सर्वोपरि था। 1589 में इन्होंने आमेर का शासन सँभाला। उनका अधिकांश समय मुगल साम्राज्य की सेवा में आमेर से बाहर ही बीता। बादशाह अकबर मानसिंह को ‘फर्जन्द (बेटा)’ या ‘मिर्जा राजा’ कहते थे।अकबर व आमेर के मानसिंह के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए । राजा मान सिंह की बुआ का विवाह सम्राट अकबर से हुआ था और उनका रिश्ता फूफा और भतीजे का था। दूसरी तरफ़ महाराणा प्रताप भी राजा मान सिंह के रिश्तेदार थे। लेकिन, प्रताप मुग़लों से नफ़रत करते थे इसलिए उनके संबंध मानसिंह प्रथम से बेहद सीमित रह गए। 21 दिसंबर, 1540 ईस्वी में पैदा हुए मान सिंह प्रथम, अकबर के विश्वसनीय सेनापति थे।
प्रश्न-5. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रजामंडलों के योगदान की विवेचना कीजिए ?
उत्तर:- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रजामण्डलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश की आज़ादी के मार्ग में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यहां हम कुछ प्रमुख प्रजामण्डलों के योगदान की विवेचना करेंगे-
- किसान आंदोलन: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किसानों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खेती के क्षेत्र में उनके असहमतियों का प्रचलन हुआ और वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने लगे।
- महासभा आंदोलन: महासभा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अलग भूमिका निभाई। यह आंदोलन असहमति के बावजूद भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने का प्रयास किया और दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा की।
- हिंदू महासभा: हिंदू महासभा ने अपने प्रयासों के माध्यम से हिंदू समुदाय की रक्षा की और उनके धार्मिक अधिकारों की सुरक्षा की कोशिश की। यह संगठन स्वतंत्रता संग्राम में भी अपनी भूमिका निभाता रहा।
- इंडियन नेशनल कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी): इंडियन नेशनल कांग्रेस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने असहमति और सिविल अधीनता के माध्यम से आंदोलन किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया।
- मुस्लिम लीग: मुस्लिम लीग ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी अपनी भूमिका निभाई। यह संगठन मुस्लिम आवाम के हक़ की रक्षा करने का प्रयास किया और मुस्लिम वोटर्स की जरूरतों को ध्यान में रखकर राजनीतिक रूप से काम किया।
प्रश्न-6. राजस्थान की विभिन्न चित्रकला शैलियों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए ?
उत्तर:-
प्रश्न-7. राजस्थान में भक्ति आन्दोलन के प्रमुख सिद्धान्तों एवं प्रभावों को विवेचना कीजिए ?
उत्तर:-
प्रश्न-8. तुर्की के विरुद्ध रणथम्भोर के हमीरदेव के प्रतिरोध का वर्णन कीजिए ?
उत्तर:-
प्रश्न-9.राजस्थान के इतिहास के स्रोत के रूप में रासो साहित्य का महत्व बताइये ?
उत्तर:-राजस्थान मे 11 वी शताब्दी तक जैन कवियों द्वारा ‘ रास ‘ साहित्य रचा गया तथा उसी के समानान्तर राजाओं के श्रेय में ‘रासो ‘ साहित्य लिखा गया जिसके द्वारा उस समय की तत्कालीन ,एतिहासिक ,सामाजिक , धार्मिक , सांस्कृतिक परिस्थितियों के मूल्यांकन कि आधारभूत पृष्ठभूमि ही निर्मित नही हुई
रासो साहित्य राजस्थान के इतिहास के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्राचीन और प्रमुख लोककथा परंपरा है जो लोगों के जीवन, संस्कृति, सामाजिक प्रथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाती है। इसका महत्व निम्नलिखित कारणों से है:
- सामाजिक और सांस्कृतिक अध्ययन: रासो साहित्य में प्रस्तुत लोककथाएं और किस्से राजस्थान की सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं, मान्यताओं, और समुदाय के जीवन की प्रतिष्ठाओं को दर्शाते हैं। यह उन आदिवासी समुदायों की प्राचीनतम जीवन शैलियों को भी उजागर करता है जो अब भी राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में निवास करते हैं।
- ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या: रासो साहित्य विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या करता है जो आमतौर पर इतिहास पुस्तकों में नहीं मिलती। यह घटनाएं उन असली वर्णनों के साथ आती हैं जो लोगों के अनुभवों और समर्पण को दर्शाते हैं।
- भाषा और व्यंजन: रासो साहित्य राजस्थानी भाषा में लिखा गया होता है और इसमें लोकगीत, कहानियाँ, और जीवन की बातें शामिल होती हैं। इसके माध्यम से व्यंजनिक रूप से भी संस्कृति की पहचान होती है और भाषा के विकास को प्रकट किया जाता है।
- लोकप्रियता और संवाद: रासो साहित्य मुख्य रूप से लोकप्रिय रूप से प्रसिद्ध होता है क्योंकि इसमें व्यापारिक या साहित्यिक रूपक नहीं होता, बल्कि यह लोगों के दैनिक जीवन की कथाएं होती हैं जो समाज में बोली जाती हैं।
प्रश्न-10. शेखावटी किसान आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखिए ?
उत्तर:-
प्रश्न-11. राजस्थान के इतिहास लेखन में अमीर खुसरो का योगदान बताइये ?
उत्तर:-अमीर खुसरो राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक थे, और उनका योगदान विभिन्न क्षेत्रों में हुआ है। उन्होंने राजस्थान की सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर को समृद्ध किया और भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रकट किया।
अमीर खुसरो का जन्म 1253 ईसा पूर्व में दिल्ली में हुआ था। वे तुर्क वंशज थे और सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में रहते थे। उन्होंने अपने समय के दृष्टिकोण से राजस्थान के विकास और संस्कृति को समझने का प्रयास किया और उनके लेखन से राजस्थानी साहित्य को महत्वपूर्ण योगदान मिला।
अमीर खुसरो ने अपनी रचनाओं में राजस्थान की संस्कृति, लोकगीत, और उनके साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से ध्यान दिया। उन्होंने “ग़ज़ल” और “रब्बाइ” जैसी कविताओं की रचना की और उनमें राजस्थान की जीवनशैली, प्रेम, और प्राकृतिक सौन्दर्य को व्यक्त किया।
उनकी रचनाओं में “ख़ुसरौं की दिवान” और “नुह सिपिह्र” जैसी कई प्रमुख रचनाएं हैं, जो उनके समय के समाज, संस्कृति और जीवन की छवि को दिखाती हैं। वे राजपूताना और राजस्थान के विभिन्न राज्यों के विषयों पर भी लिखते थे, जो राजस्थान के इतिहास और सांस्कृतिक विकास की जानकारी प्रदान करते हैं।
इस प्रकार, अमीर खुसरो ने अपने शानदार साहित्य के माध्यम से राजस्थानी सांस्कृतिक धरोहर को संजीवनी दी और राजस्थान के इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण योगदान किया।
प्रश्न-12.मत्स्य जनपद पर टिप्पणी लिखिए ?
उत्तर:-मत्स्य जनपद एक राजस्थान का जनपद था यह महाभारत काल के समय का माना जाता है यह जनपद राजधानी विराटनगर मानी जाती है तथा यो जयपुर अलवर के आसपास के क्षेत्र को कवर करता था यह महा जनपद यमुना नदी के पश्चिम मे और कुरुराज्य के दक्षिण मे था। राजस्थान के जयपुर, भरतपुर और अलवर के क्षेत्र इसमे आते है।
मत्स्य जनपद, भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण एवं प्राचीन स्थलों में से एक है। यह उत्तर-पश्चिम भारत के प्रमुख राज्यों में से एक राजस्थान में स्थित है और इसका इतिहास गहरी संस्कृति और परंपराओं से भरा हुआ है।
मत्स्य जनपद अपनी प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इसका इतिहास मौर्य, गुप्त, चौहान, राठौड़, मुघल और ब्रिटिश शासनकाल के साथ जुड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप यह विभिन्न सम्राटों और राजाओं के शासन में आया।
मत्स्य जनपद का स्थलीय संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहाँ की लोकसंस्कृति, वास्तुकला, साहित्य, संगीत और कला में विशेष उपलब्धियाँ हुई हैं। मत्स्य जनपद के गांवों और शहरों के आवासीयों ने अपनी पारंपरिक कला और शैली को बनाए रखने का प्रयास किया है, जिससे यह स्थल सांस्कृतिक धरोहर से भरपूर है।
मत्स्य जनपद के प्रमुख धार्मिक स्थल, पुरातात्विक स्मारक और ऐतिहासिक स्थल भी यहाँ के इतिहास को दर्शाते हैं। धार्मिक तथा आध्यात्मिक आयोजनों में भी मत्स्य जनपद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस प्रकार, मत्स्य जनपद एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्वपूर्ण स्थल है जिसने भारतीय इतिहास और संस्कृति को विशेष रूप से प्रभावित किया है।
प्रश्न-13.महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए राजस्थान मे क्या प्रयास किए गये हैं ?
उत्तर:-
प्रश्न-14. अंग्रेजों और कोटा के मध्य 1818 में की गई संधि की मुख्य धाराएँ कौन-सी थी ?
उत्तर:- 1818 में अंग्रेजों और कोटा के बीच की संधि की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित थीं:
- सामर्थ्य में भागीदारी: संधि में यह धारा शामिल थी कि कोटा रियासत अंग्रेज साम्राज्य के साथ सहायक भागीदारी का पालन करेगी और उनके सामर्थ्य के अनुसार कृत्य करेगी।
- बाणियान और नगरी स्थापना: संधि में यह धारा शामिल थी कि कोटा की व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अंग्रेज सरकार ने कोटा की बाणियान और नगरी स्थापना का समर्थन किया।
- रक्षा और सुरक्षा: संधि में यह धारा शामिल थी कि कोटा रियासत अपनी सुरक्षा के लिए अंग्रेज साम्राज्य की सहायता करेगी और उसके साथ मित्रता का पालन करेगी।
इन मुख्य धाराओं के माध्यम से, 1818 में अंग्रेजों और कोटा के बीच की संधि तय की गई थी, जो कि उनके साथ सहयोग और समझौते की दिशा में थी।
प्रश्न-15. राजस्थान के इतिहास के अभिलेखीय स्रोतों की विवेचना कीजिए ?
उत्तर:-
- राजपूताना के प्राचीन ग्रंथों और लेखों का प्रामाणिकता: राजस्थान के प्रमुख राजपूताना राज्यों में अपनी प्राचीन ग्रंथों और लेखों का प्रामाणिकता अच्छे से प्रमाणित होता है। इनमें चौरासी वंशों के इतिहास, राजा और महाराणा के वंशजों के विवादों की जानकारी होती है।
- राजपूताना के इतिहासग्रंथों का महत्व: राजस्थान में लिखे गए इतिहासग्रंथ भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जैसे कि ‘राजपूताना कालचर’ और ‘राजपूताना का इतिहास’। इनमें राजपूत योद्धाओं की वीरता, राज्यों के विकास, और समाज की जानकारी होती है।
- किलों के पत्थर शिलालेख: राजस्थान के कई किलों पर पत्थर शिलालेख मिलते हैं जिनमें विभिन्न राजपूत राज्यों के राजाओं की उपलब्धियाँ, युद्धों, और यात्राओं की जानकारी होती है।
- शासन पत्रों और प्राशासनिक डोक्युमेंट्स: राजस्थान के राजपूत राज्यों के शासन पत्रों, डोक्युमेंट्स, और आधिकारिक पत्रों में उनके शासनकाल, समाजिक नियम और अन्य विवरण दर्शाए जाते हैं।
- अखबार और पत्रिकाएँ: राजस्थान के ब्रिटिश और पोस्ट-ब्रिटिश काल के अखबार और पत्रिकाओं में भी इतिहास संबंधी जानकारी मिलती है। यहाँ पर राज्य के सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक परिवेश की चर्चा भी होती है।
- प्राचीन स्मारक और म्यूजियम्स: राजस्थान में अनेक प्राचीन स्मारक और म्यूजियम्स हैं जिनमें प्राचीन शिलालेख, चित्रकला, और वस्तुएँ संग्रहित होती हैं जो राजस्थान के इतिहास को दर्शाते हैं।
प्रश्न-16.चित्तौड़ किले के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:- चित्तौड़ किला, जिसे चित्तौड़गढ़ किला भी कहते हैं, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ नगर में स्थित है और भारतीय इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह किला महाराणा प्रताप की वीरता और संघर्ष की कहानी के संदर्भ में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
चित्तौड़ किले का निर्माण सिंहासन गढ़ के महाराणा कुम्भा द्वारा 7वीं सदी में किया गया था। यह किला प्राचीन समय से ही चित्तौड़गढ़ के राजपूत राजा और महाराणाओं की प्रमुख राजधानी रहा है। चित्तौड़ किला भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं की गवाह है, जैसे कि राना सांगा की बयानी में हाल्दीघाटी युद्ध की घटना, जब महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ लड़कर वीरता की परिकल्पना की थी।
चित्तौड़ किला भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा होने के साथ-साथ राजस्थान के पर्यटन स्थलों में से एक है। यहाँ के स्थानों में कुम्भश्याम मंदिर, विजयस्तम्ब्ह, कीर्तिस्तम्ब्ह, राणी पद्मिनी की महल, और मेहरांगढ़ का पलास शामिल हैं।
चित्तौड़ किला के प्रमुख भवनों और स्मारकों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है राजस्थान के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर में, और यहाँ के दर्शनीय स्थलों से विशिष्ट रूप से जुड़ा हुआ है।
प्रश्न-17. महाराणा कुंभा की उपलब्धियाँ बताइए ?
उत्तर:-राणा कुंभा को ‘राजस्थान की स्थापत्य कला का जन्मदाता‘ कहा जाता है। कविराजा श्यामलदास के अनुसार मेवाड़ के 84 दुर्गों में से कुम्भा ने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया था।
महाराणा कुम्भा, मेवाड़ के महाराणा, 15वीं सदी के मध्य में राजपूताना क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण राजा थे और उनकी उपलब्धियाँ निम्न प्रकार देखि जा सकती हैं –
- विजय साम्राज्य की स्थापना: महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ राज्य को विस्तार किया और उन्होंने राणा सांगा के वंशजों के साथ मिलकर मेवाड़ के साम्राज्य की स्थापना की।
- कला और साहित्य में योगदान: महाराणा कुम्भा एक प्रतिष्ठित कलाकार और पत्रकार भी थे। उन्होंने चित्रकला और साहित्य को प्रोत्साहित किया और मेवाड़ शैली की चित्रकला का विकास किया।
- राजस्थानी वास्तुकला का प्रमोट करना: महाराणा कुम्भा ने वास्तुकला में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने दिल्ली के कुतुब मीनार के साथ संजोजन की योजना बनाई और मेवाड़ क्षेत्र में वास्तुकला की परंपरा को प्रोत्साहित किया।
- राणा प्रताप की शिक्षा और पालन-पोषण: महाराणा कुम्भा ने अपने पुत्र राणा प्रताप की शिक्षा और पालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने उन्हें योद्धा बनाने के लिए प्रेरित किया और उनके वीरता की परंपरा को जारी रखने की कोशिश की।
- मेवाड़ के कला और संस्कृति का प्रोत्साहन: महाराणा कुम्भा ने अपने दरबार में कलाकारों, लेखकों, और विद्वानों को प्रोत्साहित किया और उनके योगदान को महत्वपूर्ण माना।
- कालचुरी सम्राज्य के खिलाफ युद्ध: महाराणा कुम्भा ने कालचुरी सम्राज्य के खिलाफ भी युद्ध लड़े और उनकी विजय प्राप्त की।
- रणथंभोर का निर्माण: महाराणा कुम्भा ने रणथंभोर किला का निर्माण किया जो कि मेवाड़ के राज्य के रक्षा और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण था।
महाराणा कुम्भा की उपलब्धियाँ न केवल उनके राज्य में बल्कि भारतीय इतिहास में भी महत्वपूर्ण हैं, और उनकी योगदान को आज भी समृद्ध संस्कृति और इतिहास के हिस्से के रूप में माना जाता है।
प्रश्न-18. मीरा बाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:- मीरा बाई, जिन्हें भक्तिरस की आदिकवियों में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल है, राजपूताना की महान संत, कवियित्री और संत महात्मा थीं। वे 16वीं शताब्दी में जन्मी थीं और उनका जन्मस्थान मेड्ता, राजस्थान था।
मीरा बाई का जन्म राणा रतन सिंह के दरबार में हुआ था। उनके पिता का नाम रतन सिंह था और वे मेड्ता के राजा थे। बचपन से ही मीरा ने भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करना शुरू किया था और उन्होंने अपनी शादी के बाद भी उनकी भक्ति में मग्न रहा।
मीरा बाई ने अपनी भक्ति और प्रेम की भावना को संगीत और कविता के माध्यम से व्यक्त किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ भजन, पद, और कृति रूपी हैं, जिनमें उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, प्रेम, और भक्ति की महत्वपूर्ण बातें प्रकट की।
मीरा बाई ने अपने पति राणा कुंवर भैरोंसिंह की मृत्यु के बाद विधवा होने के बावजूद भगवान की भक्ति में लीन रहकर समाज में अपने आदर्शों की प्रेरणा दी। उन्होंने सामाजिक परंपराओं का खंडन किया और भक्ति के माध्यम से सभी को भगवान के प्रति समर्पण की ओर प्रेरित किया। इस प्रकार मीरा बाई के भक्ति और प्रेम भरे भजन और पद आज भी भक्तों के दिलों में बसे हैं और उनकी कविताएँ भक्तिरस की अद्वितीय उपलब्धियों में गिनी जाती हैं।
प्रश्न-19.गोविन्दगिरी पर एक लेख लिखिए ?
उत्तर:-
प्रश्न-20. बून्दी चित्रकला शैली की प्रमुख विशेषताएँ बताइए ?
उत्तर:-
Section-C
प्रश्न-1. प्रागतिहासिक राजस्थान पर एक निबन्ध लिखिए ?
उत्तर:-
प्रागतिहासिक काल एक ऐतिहासिक काल है जिसमें मानव समुदाय का विकास जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं के आसपास घटित हुआ। इस काल में राजस्थान के क्षेत्र में मानव जीवन की शुरुआत हुई, जिसने इस क्षेत्र के समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास की नींव रखी।
प्रागतिहासिक राजस्थान का इतिहास पालेयोलिथिक, मेसोलिथिक और न्यूथॉलिथिक युगों में बांटा जा सकता है। इस काल में मानव समुदाय ने अपनी आवश्यकताओं के लिए पत्थर, हड्डी, अस्त्र, शस्त्र आदि का उपयोग करना आरंभ किया। वे चिकित्सा, खाद्य संग्रहण, शिकार, और जल संचयन के क्षेत्र में भी कुशल थे।
राजस्थान के प्रागतिहासिक क्षेत्रों में मिले गए खगोलशास्त्रीय साक्ष्य दिखाते हैं कि यहाँ के लोग सूर्य और चंद्रमा की गतियों को जानने में रूचि रखते थे।
प्रागतिहासिक राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस काल के लोग चिकित्सा, खिलौने, गहने, और पर्यावरण के साथ मिलकर जुड़े रहे हैं। प्रागतिहासिक चित्रकला और शिल्प के आकृतिम श्रृंगार प्रागतिहासिक राजस्थान की विशिष्टता का परिचय देते हैं।
समापन में, प्रागतिहासिक राजस्थान का अद्वितीय और समृद्ध इतिहास है, जिसने इस क्षेत्र के संस्कृतिक और सामाजिक विकास की नींव रखी। यहाँ के लोगों की कठिनाइयों का सामना करते हुए वे अपने जीवन में सुधार करने का प्रयास करते रहे हैं, जिससे राजस्थान का इतिहास और संस्कृति समृद्धि और समृद्धि की ओर बढ़ते रहे।
प्रश्न-2. राजपूतों की उत्पत्ती के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन करिए ?
उत्तर:-कर्नल जेम्स टॉड द्वारा दिए गए सिद्धांत के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी मूल की थी. उनके अनुसार राजपूत कुषाण,शक और हूणों के वंशज थे. उनके अनुसार चूँकि राजपूत अग्नि की पूजा किया करते थे और यही कार्य कुषाण और शक भी करते थे. इसी कारण से उनकी उत्पति शको और कुषाणों से लगायी जाती थी.
प्रश्न-3. महाराणा कुम्भा की विजयों का विस्तृत विवरण दीजिए ?
उत्तर:-महाराणा ने अन्य अनेक विजय भी प्राप्त किए। पूर्वी राजस्थान में रणथम्भौर और आमेर की विजय महाराणा कुम्भा की महत्त्वपूर्ण विजयों में से थी, उसने डीडवाना(नागौर) की नमक की खान से कर लिया और खंडेला, आमेर, रणथंभोर, डूँगरपुर, सीहारे आदि स्थानों को जीता। इस प्रकार राजस्थान का अधिकांश और गुजरात, मालवा और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर उसने मेवाड़ को महाराज्य बना दिया।
महाराणा कुम्भा, मेवाड़ के महाराणा थे जिन्होंने 15वीं सदी के मध्य में अपने प्रायसों और योगदान के साथ राजपूताना क्षेत्र को अद्वितीय महत्वपूर्ण रूप से सजीव किया। उनकी विजयों ने उन्हें एक महान योद्धा, राजा, और साम्राज्य के नेता के रूप में प्रस्तुत किया।
- मालवा अभियान: महाराणा कुम्भा ने मालवा क्षेत्र पर अपने पिता के विरुद्ध विजय प्राप्त की और मेवाड़ के आक्रमणकारी राजपूत सिंहासनों के साथ संघर्ष किया। उन्होंने विभिन्न युद्धों में विजय प्राप्त की और मालवा क्षेत्र को अपने अधीन किया।
- चित्तौड़ की विजय: महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ की विजय प्राप्त की और उसे एक शक्तिशाली नगरी बनाया। उन्होंने चित्तौड़ की रक्षा करने के लिए कई किलों की निर्माण करवाई और उन्हें सुरक्षित बनाया।
- मल्लिनाथ युद्ध: मल्लिनाथ युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध था जिसमें महाराणा कुम्भा ने बुन्दी के महाराणा सांगा के खिलाफ लड़ा और विजय प्राप्त की। इससे उनका प्रतिष्ठान और शक्ति और बढ़ गया।
- हाल्दीघाटी युद्ध: महाराणा कुम्भा की एक अहम विजय थी हाल्दीघाटी युद्ध, जिसमें उन्होंने मुघल साम्राज्य के सुलतान मुहम्मद बाबर के खिलाफ लड़कर विजय प्राप्त की। यह युद्ध राजपूत समृद्धि की उत्कृष्ट उदाहरण था जहाँ राजपूत साहस और वीरता का परिचय दिया गया।
- सांगा की विजय: महाराणा कुम्भा ने सांगा क्षेत्र की विजय प्राप्त की और उसे मेवाड़ साम्राज्य का हिस्सा बनाया।
प्रश्न-4. महाराणा प्रताप द्वारा किए गये मुगल प्रतिरोध का वर्णन करिए ?
उत्तर:- महाराणा प्रताप ने आजीवन इस शर्त का पालन भी किया। महाराणा प्रताप द्वारा बार-बार मुगल आधिपत्य को अस्वीकार कर देने के कारण 18 जून 1576 को हल्दीघाटी के मैदान में अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य भीषण युद्ध हुआ। जिसमें मुगल सेना के पांव उखाड़ दिये। लेकिन मुगलों की विशाल सेना के सामने महाराणा प्रताप को पराजित होना पड़ा।
इसी प्रकार से और महाराणा प्रताप का मुगल प्रतिरोध का वर्णन निम्नलिखित है-
- हल्दीघाटी युद्ध: महाराणा प्रताप की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई हल्दीघाटी युद्ध थी, जो 1576 में लड़ी गई थी। इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर के सेनापति मानसिंह के खिलाफ लड़कर वीरता और संकल्प का परिचय दिया।
- सरनेच युद्ध: महाराणा प्रताप ने मुगल सेनानी मिरजा कियास उर्फ मानसिंह के साथ सरनेच युद्ध भी लड़ा, जिसमें वे साहसीता और वीरता का परिचय दिखाएं।
- कुंभलगढ़ युद्ध: महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ की युद्ध में भी मुगल सेना के खिलाफ लड़कर अपने साहस और निरंतर प्रतिरोध की दिशा में अपने योगदान का परिचय दिया।
- गोगुड युद्ध: गोगुड युद्ध में भी महाराणा प्रताप ने अपने सेना के साथ मुगल सेना का सामना किया और अपने वीरता का प्रदर्शन किया
प्रश्न-5.
उत्तर:-
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