VMOU Paper with answer ; VMOU SO-02 Paper BA 1st Year , vmou Sociology important question
VMOU SO-02 Paper BA 1st Year ; vmou exam paper 2024
नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA First Year के लिए समाजशास्त्र SOCIOLOGY [ SO-02 , (Society in India भारत में समाज ) ] का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –
Section-A
प्रश्न-1.विवाह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। एक विवाह के समारोह को विवाह उत्सव (वेडिंग) कहते है।
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प्रश्न-2.जाति का अर्थ समझाइए।
उत्तर:- कूले (Cooley) के अनुसार – “जब एक वर्ग पूर्णता है अनुवांशिकता पर आधारित होता है तो हम उसे जाती कहते हैं” । जे एच हट्टन (J. H. Huttan) के अनुसार – “जाति एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अंतर्गत एक समाज अनेक आत्म केंद्रित एवं एक दूसरे से पूर्णत: पृथक इकाइयों में विभाजित रहता है ।
प्रश्न-3.परिवार को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- परिवार (family) साधारणतया पति, पत्नी और बच्चों के समूह को कहते हैं, किंतु दुनिया के अधिकांश भागों में वह सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह है जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा स्वीकृत व्यक्ति भी सम्मिलित हैं।
प्रश्न-4.सामाजिक विकास क्या है ?
उत्तर:- सामाजिक विकास का मतलब है लोगों में निवेश करना। इसके लिए बाधाओं को दूर करना आवश्यक है ताकि सभी नागरिक आत्मविश्वास और गरिमा के साथ अपने सपनों की ओर यात्रा कर सकें। यह इस बात को स्वीकार करने से इनकार करने के बारे में है कि जो लोग गरीबी में रहते हैं वे हमेशा गरीब ही रहेंगे।
प्रश्न-5. संस्कार को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- संस्कार शब्द का मूल अर्थ है, ‘शुद्धीकरण’। मूलतः संस्कार का अभिप्राय उन धार्मिक कृत्यों से है जो किसी व्यक्ति को अपने समुदाय का पूर्ण रुप से योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करने के लिए किए जाते है, किन्तु हिंदू संस्कारों का उद्देश्य व्यक्ति में अभीष्ट गुणों को जन्म देना भी है।
प्रश्न-6. वर्ण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- वर्ण एक सामाजिक श्रेणी है जो व्यक्ति को जन्म से ही मिलती है और आमतौर पर बदलती नहीं है। यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें लोगों को विभिन्न समूहों में बांटा जाता है और इन समूहों के बीच सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताएं होती हैं।
प्रश्न-7. विविधता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- विविधता एक ऐसी अवधारणा है जो समाज में लोगों के बीच मौजूद भिन्नताओं को दर्शाती है। ये भिन्नताएं विभिन्न पहलुओं पर आधारित हो सकती हैं जैसे कि जाति, धर्म, लिंग, उम्र, भाषा, संस्कृति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति आदि। विविधता समाज को समृद्ध बनाती है लेकिन साथ ही सामाजिक चुनौतियाँ भी पैदा करती है।
प्रश्न-8. वर्ण के प्रकार बताइए।
उत्तर:- वर्ण के प्रकारों को विभिन्न मानदंडों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
1. आर्थिक वर्ण:
- उच्च वर्ण: उच्च आय वाले, उच्च शिक्षित और उच्च पदस्थ व्यक्ति।
- मध्यम वर्ण: मध्यम आय वाले, मध्यम शिक्षित और मध्यम पदस्थ व्यक्ति।
- निम्न वर्ण: निम्न आय वाले, कम शिक्षित और निम्न पदस्थ व्यक्ति।
2. सामाजिक वर्ण:
- शासक वर्ग: समाज पर शासन करने वाले लोग।
- धार्मिक वर्ग: धार्मिक नेता और पुजारी।
- व्यापारी वर्ग: व्यापार और वाणिज्य से जुड़े लोग।
- श्रमिक वर्ग: शारीरिक श्रम करने वाले लोग।
3. सांस्कृतिक वर्ण:
- बौद्धिक वर्ग: शिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग।
- कलाकार वर्ग: कला और संस्कृति से जुड़े लोग।
- कृषक वर्ग: कृषि से जुड़े लोग।
4. जाति आधारित वर्ण:
- शूद्र: श्रमिक और सेवा करने वाले।
- ब्राह्मण: धार्मिक अध्ययन और शिक्षण से जुड़े।
- क्षत्रिय: शासक और सैनिक।
- वैश्य: व्यापारी और किसान।
प्रश्न-9.सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइए।
उत्तर:- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है समाज में होने वाले उन बदलावों से जो समय के साथ-साथ होते हैं। ये बदलाव समाज की संरचना, व्यवस्था, मूल्यों, विश्वासों, रीति-रिवाजों और लोगों के व्यवहार में दिखाई देते हैं। ये परिवर्तन धीमे या तेजी से हो सकते हैं और इनके कारण भी कई तरह के हो सकते हैं।
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है समाज में समय के साथ होने वाले बदलाव। ये बदलाव लोगों के व्यवहार, मूल्यों, रीति-रिवाजों और समाज की संरचना में होते हैं।
प्रश्न-10.पुरुषार्थ में ‘अर्थ’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:-पुरुषार्थ से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है (‘पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः’)। पुरुषार्थ = पुरुष+अर्थ =पुरुष का तात्पर्य विवेक संपन्न मनुष्य से है अर्थात विवेक शील मनुष्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति ही पुरुषार्थ है। प्रायः मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
प्रश्न-11.शहर को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- शहर एक ऐसा बड़ा बस्ती है जहाँ उच्च जनसंख्या घनत्व होता है, आर्थिक गतिविधियाँ केंद्रित होती हैं, और सामाजिक जीवन अधिक जटिल होता है। यह एक भौगोलिक इकाई होने के साथ-साथ एक सामाजिक इकाई भी है।
प्रश्न-12.जेण्डर से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:- जेंडर शब्द का अर्थ न केवल शरीर की संरचना या अन्य भौतिक संरचना में अंतर को प्रदर्शित करना है, बल्कि समाज में उनकी अलग-अलग जिम्मेदारियां इत्यादि भी हैं। जेंडर एक सामाजिक अवधारणा है क्योंकि यह पुरुषों और महिलाओं के बीच सामाजिक रूप से निर्मित अंतरों को संदर्भित करता है।
प्रश्न-13. धर्मनिरपेक्षीकरण की दो विशेषताएँ लिखिए
उत्तर:- धर्मनिरपेक्षीकरण की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता: धर्मनिरपेक्ष राज्य में, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म अपनाने या न अपनाने की स्वतंत्रता होती है। राज्य किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
- राज्य और धर्म का पृथक्करण: धर्मनिरपेक्ष राज्य में, राज्य किसी विशेष धर्म को प्राथमिकता नहीं देता है। राज्य के सभी कानून और नीतियां सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होती हैं।
प्रश्न-14. एकता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- समाजशास्त्र में एकता का अर्थ है समाज के विभिन्न सदस्यों के बीच आपसी सहयोग, सामंजस्य और एकजुटता की भावना। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें समाज के विभिन्न वर्ग, जाति, धर्म और क्षेत्र के लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं और साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए काम करते हैं।
प्रश्न-15. ‘भारत में बन्धुत्व संगठन’ नामक पुस्तक किसने लिखी है?
उत्तर:- श्रीमती इरावती कर्वे
प्रश्न-16. राजस्थान की किन्हीं दो जनजातियों के नाम लिखिए
उत्तर:- जनजाति में भील, मीणा, गरासिया व डामोर प्रमुख है।
प्रश्न-17. नगरीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:- किसी राष्ट्र की जनसंख्या का बढ़ता हुआ आकार जब शहर की तरफ निवास के लिए जमा होता है तो उसे नगरीकरण या “शहरीकरण” कहते है।।। वैसा प्रक्रिया जिसके अंतर्गत शहरों का अधिक पैमाने पर विस्तार होता है, शहरीकरण कहलाता है ।
प्रश्न-18. पश्चिमीकरण क्या है ?
उत्तर:- पश्चिमीकरण का तात्पर्य भारतीय समाज में पश्चिमी के किसी भी देश के प्रभाव से पैदा होने वाले परिवर्तन से है।
प्रश्न-19. अन्तर्विवाह क्या है?
उत्तर:- अंतर्विवाह का अर्थ है जब दो व्यक्ति अलग-अलग जाति, धर्म या सामाजिक समूहों से होते हुए भी विवाह बंधन में बंध जाते हैं। इसे विषमजातीय विवाह भी कहा जाता है। यह सामाजिक एकता और समरसता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न-20. आश्रम को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:- आश्रम भारतीय समाज में जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाने वाली एक सामाजिक संस्था है। यह व्यक्ति के जीवन को चार भागों में विभाजित करती है: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। प्रत्येक आश्रम में व्यक्ति को विशिष्ट कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करना होता है।
Section-B
प्रश्न-1.जाति एवं वर्ग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- जाति और वर्ग दोनों ही समाज में लोगों को विभिन्न समूहों में बांटने के लिए उपयोग किए जाने वाले सामाजिक वर्गीकरण हैं, लेकिन इन दोनों के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं।
जाति
- जन्म से निर्धारित: जाति एक व्यक्ति के जन्म के समय ही निर्धारित होती है और इसे बदला नहीं जा सकता है। यह आमतौर पर वंशानुगत होती है।
- सामाजिक स्थिति: जाति व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, व्यवसाय, विवाह और सामाजिक संबंधों को निर्धारित करती है।
- बंद समूह: जातियां बंद समूह होती हैं, जिसका अर्थ है कि विभिन्न जातियों के लोग आमतौर पर एक-दूसरे के साथ विवाह नहीं करते हैं और सामाजिक संबंध भी सीमित होते हैं।
- असमानता: जाति व्यवस्था में विभिन्न जातियों के लोगों के बीच स्पष्ट असमानता होती है। कुछ जातियों को उच्च माना जाता है जबकि अन्य को निम्न।
- सांस्कृतिक पहचान: जाति व्यक्ति की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है।
वर्ग
- सामाजिक भूमिका: वर्ग व्यक्ति की सामाजिक भूमिका को भी प्रभावित करता है।
- आर्थिक स्थिति: वर्ग मुख्य रूपतः व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर आधारित होता है। इसमें व्यक्ति की आय, संपत्ति और व्यवसाय शामिल होते हैं।
- सामाजिक गतिशीलता: वर्ग में सामाजिक गतिशीलता संभव है। व्यक्ति कड़ी मेहनत और शिक्षा के माध्यम से अपने वर्ग को बदल सकता है।
- खुले समूह: वर्ग खुले समूह होते हैं, जिसका अर्थ है कि विभिन्न वर्गों के लोग एक-दूसरे के साथ विवाह कर सकते हैं और सामाजिक संबंध बना सकते हैं।
- आर्थिक असमानता: वर्ग व्यवस्था में आर्थिक असमानता प्रमुख होती है। उच्च वर्ग के लोगों के पास अधिक धन और संसाधन होते हैं।
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प्रश्न-2.नातेदारी की विभिन्न श्रेणियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- नातेदारी की विभिन्न श्रेणियां
नातेदारी, यानी रिश्तेदारी, मानव समाज का एक महत्वपूर्ण आधार है। यह रक्त संबंधों, विवाह संबंधों और गोद लेने जैसी सामाजिक संस्थाओं से उत्पन्न होती है। नातेदारी की विभिन्न श्रेणियां समाज और संस्कृति के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, लेकिन कुछ सामान्य श्रेणियां निम्नलिखित हैं:
1. रक्त संबंध (Blood Relations)
ये वे संबंध हैं जो रक्त के माध्यम से जुड़े होते हैं, जैसे:
- माता-पिता: माता और पिता अपने बच्चों के साथ रक्त संबंध से जुड़े होते हैं।
- भाई-बहन: एक ही माता-पिता की संतान भाई-बहन होते हैं।
- दादा-दादी, नाना-नानी: माता-पिता के माता-पिता दादा-दादी, नाना-नानी होते हैं।
- चाचा-ताऊ, मामा-मामी: माता-पिता के भाई-बहन चाचा-ताऊ, मामा-मामी होते हैं।
2. विवाह संबंध (Marriage Relations)
विवाह के माध्यम से उत्पन्न होने वाले संबंधों को विवाह संबंध कहते हैं, जैसे:
- पति-पत्नी: विवाह के बाद बनने वाला संबंध।
- ससुर-ससुराल: पति या पत्नी के माता-पिता।
- देवर-जेठ, ननद-भाभी: पति या पत्नी के भाई-बहन।
- साला-साली: पत्नी के भाई या पति की बहन।
3. गोद लेने से उत्पन्न संबंध (Adoption Relations)
जब कोई बच्चा अपने जैविक माता-पिता के अलावा किसी अन्य व्यक्ति या दंपत्ति द्वारा पाला जाता है, तो यह गोद लेने का संबंध होता है। गोद लिए हुए बच्चे और गोद लेने वाले माता-पिता के बीच भी एक पारिवारिक संबंध बन जाता है।
4. सामाजिक संबंध (Social Relations)
- कुछ संबंध रक्त या विवाह से सीधे जुड़े नहीं होते हैं, बल्कि सामाजिक संबंधों पर आधारित होते हैं, जैसे:-
- सहकर्मी: एक ही कार्यस्थल पर काम करने वाले लोग।
- दोस्ती: दो व्यक्तियों के बीच घनिष्ठता और विश्वास पर आधारित संबंध।
- पड़ोसी: एक ही इलाके में रहने वाले लोग।
प्रश्न-3. समाज में धर्म के मुख्य कार्य क्या है ?
उत्तर:- समाज में धर्म एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है। यह व्यक्ति के जीवन को अर्थ और दिशा प्रदान करने के साथ-साथ समाज को एकजुट करने और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
समाज में धर्म के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:
- सामाजिक एकता: धर्म लोगों को एक साथ लाकर सामाजिक एकता को मजबूत करता है। धार्मिक अनुष्ठान, त्योहार और सामुदायिक गतिविधियां लोगों को एक-दूसरे से जोड़ती हैं।
- नैतिक मूल्यों का विकास: धर्म व्यक्ति को नैतिक मूल्यों और आदर्शों का पालन करना सिखाता है। यह समाज में अच्छे व्यवहार को बढ़ावा देता है और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करता है।
- सांस्कृतिक पहचान: धर्म व्यक्ति की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह लोगों को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ता है।
- सामाजिक नियंत्रण: धर्म सामाजिक नियंत्रण का एक माध्यम भी होता है। धार्मिक नियम और मान्यताएं लोगों के व्यवहार को प्रभावित करती हैं और समाज में व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती हैं।
- आध्यात्मिकता: धर्म व्यक्ति को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है और जीवन के अर्थ और उद्देश्य को समझने में मदद करता है।
- सामाजिक सेवा: कई धर्म सामाजिक सेवा और परोपकार को प्रोत्साहित करते हैं। धार्मिक संगठन अक्सर गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं।
धर्म के सकारात्मक योगदान के साथ-साथ, यह कई बार सामाजिक विभाजन, संघर्ष और असहिष्णुता का कारण भी बन जाता है। धर्म का उपयोग अक्सर राजनीतिक हितों के लिए भी किया जाता है।
प्रश्न-4. हिन्दू विवाह के क्या उद्देश्य है ? समझाइए।
उत्तर:- हिंदू विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता है और इसके कई उद्देश्य हैं:
- धर्म: हिंदू धर्म में विवाह को धर्म का पालन करने के लिए आवश्यक माना जाता है। विवाह के माध्यम से व्यक्ति धार्मिक कर्तव्यों का पालन करता है और अगले जन्म में मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है।
- प्रजा: हिंदू धर्म में पुत्र प्राप्ति को बहुत महत्व दिया जाता है। पुत्र द्वारा ही पितरों का पिंडदान किया जाता है और उन्हें मोक्ष मिलता है। इसलिए, विवाह का एक प्रमुख उद्देश्य संतानोत्पत्ति और वंश को आगे बढ़ाना है।
- रति: विवाह का तीसरा उद्देश्य काम या रति है। विवाह के माध्यम से पति-पत्नी के बीच एक भावनात्मक बंधन बनता है और वे एक-दूसरे की भावनात्मक और शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- सामाजिक एकता: विवाह परिवार और समाज को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विवाह के माध्यम से दो परिवारों के बीच संबंध स्थापित होते हैं और सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं।
- समाज सेवा: हिंदू धर्म में विवाह को समाज सेवा के लिए भी प्रेरित करने वाला माना जाता है। विवाहित जोड़े को समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारियां निभानी होती हैं।
संक्षेप में, हिंदू विवाह धर्म, प्रजा, रति, सामाजिक एकता और समाज सेवा जैसे कई उद्देश्यों को पूरा करता है। यह एक पवित्र संस्कार है जो व्यक्ति के जीवन में एक नया अध्याय शुरू करता है।
प्रश्न-5. ग्रामीण समाज की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:- ग्रामीण समाज की विशेषताएं (Characteristics of Rural Society)
विशेषता (Characteristic) | विवरण (Description) |
---|---|
प्रधानतः कृषि प्रधान (Predominantly Agrarian) | ग्रामीण समाज मुख्य रूप से कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों जैसे पशुपालन, मछली पालन और वानिकी पर आधारित होते हैं। |
मजबूत समुदायिक बंधन (Strong Community Bonds) | ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के अपने पड़ोसियों और विस्तारित परिवारों के साथ घनिष्ठ संबंध होते हैं। सामाजिक जीवन अक्सर सामुदायिक कार्यक्रमों और परंपराओं के इर्द-गिर्द केंद्रित होता है। |
सीमित सामाजिक स्त stratification (Limited Social Stratification) | ग्रामीण समाज अक्सर शहरी समाजों की तुलना में कम स्तरित होते हैं, जहाँ धनी और गरीब के बीच का अंतर कम होता है। |
जीवन की धीमी गति (Slower Pace of Life) | ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गति आम तौर पर शहरी केंद्रों की तुलना में धीमी होती है। लोगों के पास अधिक अवकाश का समय हो सकता है और प्रकृति से मजबूत संबंध हो सकता है। |
सेवाओं और सुविधाओं तक सीमित पहुंच (Limited Access to Services and Amenities) | ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और मनोरंजन जैसी आवश्यक सेवाओं और सुविधाओं तक सीमित पहुंच हो सकती है। |
प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता (Dependence on Natural Resources) | ग्रामीण समाज अपनी आजीविका और कल्याण के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। |
पारंपरिक मूल्य और रिवाज (Traditional Values and Customs) | ग्रामीण समाजों में अक्सर मजबूत परंपराएं और रीति-रिवाज होते हैं जो सामाजिक आदर्शों और व्यवहारों को आकार देते हैं। |
प्रश्न-6. जनजातीय समाज के अध्ययन के मुख्य उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर:- जनजातीय समाजों का अध्ययन मानव विज्ञान, समाजशास्त्र और इतिहास जैसे विषयों में महत्वपूर्ण है। इन अध्ययनों के माध्यम से हम न केवल जनजातीय समाजों के बारे में गहराई से जान पाते हैं, बल्कि मानव समाज के विकास और विविधता को भी बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। जनजातीय समाजों के अध्ययन के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- तुलनात्मक अध्ययन: विभिन्न जनजातीय समाजों की तुलना करके हम मानव व्यवहार और सामाजिक संगठन के बारे में सामान्य सिद्धांत विकसित कर सकते हैं।
- सांस्कृतिक विविधता का अध्ययन: जनजातीय समाज अपनी अनूठी संस्कृति, रीति-रिवाजों, भाषा और विश्वासों के लिए जाने जाते हैं। इनका अध्ययन हमें मानव संस्कृति की विविधता और समृद्धि को समझने में मदद करता है।
- सामाजिक संगठन का अध्ययन: जनजातीय समाजों में सामाजिक संगठन, रिश्तेदारी, राजनीतिक व्यवस्था और आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करके हम समाज के विकास के विभिन्न चरणों के बारे में जान सकते हैं।
- मानव विकास का अध्ययन: जनजातीय समाजों का अध्ययन हमें मानव विकास के विभिन्न चरणों और प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, शिकार-संग्रह से कृषि की ओर संक्रमण या औद्योगिकीकरण के प्रभाव।
- पर्यावरण और मानव के बीच संबंध: कई जनजातीय समाज प्रकृति के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं। उनके जीवन और संस्कृति पर्यावरण से प्रभावित होती है और वे पर्यावरण का संरक्षण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सामाजिक परिवर्तन और विकास: आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण के प्रभावों के कारण जनजातीय समाज तेजी से बदल रहे हैं। इन परिवर्तनों का अध्ययन हमें सामाजिक परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है।
- जनजातीय अधिकारों की रक्षा: जनजातीय समाजों के अध्ययन से हमें उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनकी रक्षा करने में मदद मिलती है।
प्रश्न-7. सामाजिक परिवर्तन के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:- सामाजिक परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है जिसमें समाज के विभिन्न पहलू जैसे कि संस्कृति, मूल्य, रीति-रिवाज, संस्थाएं और तकनीक समय के साथ बदलते रहते हैं। इन परिवर्तनों के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- सामाजिक आंदोलन: सामाजिक परिवर्तन के लिए सामाजिक आंदोलन एक महत्वपूर्ण प्रेरक शक्ति होते हैं। ये आंदोलन सामाजिक अन्याय, असमानता और भेदभाव के खिलाफ लड़ते हैं और समाज में बदलाव लाने के लिए लोगों को एकजुट करते हैं।
- तकनीकी परिवर्तन: तकनीकी विकास सामाजिक परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है। नई तकनीकों ने लोगों के रहने के तरीके, काम करने के तरीके और एक-दूसरे से जुड़ने के तरीके को बदल दिया है।
- आर्थिक परिवर्तन: आर्थिक विकास और औद्योगीकरण सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करते हैं। आर्थिक परिवर्तन लोगों के जीवन स्तर, सामाजिक संरचना और मूल्यों को बदल सकते हैं।
- राजनीतिक परिवर्तन: राजनीतिक घटनाएं जैसे कि क्रांति, युद्ध और सरकार के बदलाव सामाजिक परिवर्तन के महत्वपूर्ण कारण हैं। राजनीतिक परिवर्तन समाज के शक्ति संतुलन को बदल सकते हैं और नए कानून और नीतियां बना सकते हैं।
- सांस्कृतिक परिवर्तन: सांस्कृतिक मूल्यों, विश्वासों और रीति-रिवाजों में परिवर्तन भी सामाजिक परिवर्तन का कारण बन सकते हैं। ये परिवर्तन आमतौर पर धीमे होते हैं और कई कारकों से प्रभावित होते हैं।
- जनसंख्या परिवर्तन: जनसंख्या में वृद्धि, शहरीकरण और प्रवास जैसे जनसख्यागत परिवर्तन भी सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करते हैं।
संक्षेप में, सामाजिक परिवर्तन एक जटिल प्रक्रिया है जो कई कारकों से प्रभावित होती है। इन कारकों में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, तकनीकी और सांस्कृतिक कारक शामिल हैं।
प्रश्न-8. भारत में महिलाओं की स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:- भारत में महिलाओं की स्थिति सदियों से जटिल और बहुआयामी रही है। एक ओर जहां भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
- सशक्तिकरण: सरकार और विभिन्न संगठन महिला सशक्तिकरण के लिए कई कार्यक्रम चला रहे हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
- सामाजिक स्थिति: भारतीय समाज में महिलाओं को पारंपरिक रूप से घर की चारदीवारी में रहने और घरेलू कार्यों को करने के लिए सीमित किया गया है। हालांकि, हाल के वर्षों में शिक्षा और जागरूकता के प्रसार के साथ महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं।
- शिक्षा: महिला शिक्षा में सुधार हुआ है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और निचले सामाजिक वर्गों में अभी भी बहुत कम महिलाएं शिक्षित हैं।
- रोजगार: महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, लेकिन वे अभी भी पुरुषों की तुलना में कम वेतन और कम पदों पर काम करती हैं।
- सुरक्षा: महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक गंभीर समस्या है। दहेज प्रथा, यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा जैसी समस्याएं अभी भी व्यापक हैं।
प्रश्न-9. पुरुषार्थ का समाजशास्त्रीय महत्व बताइए।
उत्तर:- पुरुषार्थ भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो मानव जीवन के चार प्रमुख उद्देश्यों को दर्शाता है: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। समाजशास्त्र के दृष्टिकोण से, पुरुषार्थ की अवधारणा व्यक्ति और समाज के बीच के संबंध को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- सामाजिक व्यवस्था का आधार: पुरुषार्थ की अवधारणा ने भारतीय समाज में एक सामाजिक व्यवस्था को जन्म दिया है, जिसमें विभिन्न वर्णों और जातियों को उनके कर्म और पुरुषार्थ के आधार पर विभाजित किया गया है। यह व्यवस्था समाज में सामाजिक गतिशीलता को सीमित करती थी और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती थी।
- व्यक्तिगत विकास: पुरुषार्थ व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है। यह व्यक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य खोजने और आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होने में मदद करता है।
- सामाजिक एकता: पुरुषार्थ की अवधारणा ने भारतीय समाज में एक सामाजिक एकता का भाव पैदा किया है। यह सभी लोगों को एक ही लक्ष्य की ओर काम करने के लिए प्रेरित करता है।
- सामाजिक परिवर्तन: हालांकि पुरुषार्थ की अवधारणा ने पारंपरिक भारतीय समाज को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन समय के साथ इसमें परिवर्तन हुए हैं। आधुनिक समय में, पुरुषार्थ की अवधारणा को नए अर्थ दिए गए हैं और इसे सामाजिक परिवर्तन के एक साधन के रूप में देखा जाने लगा है।
- सांस्कृतिक पहचान: पुरुषार्थ भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह भारतीयों की मूल्यों, विश्वासों और जीवन शैली को आकार देता है।
निष्कर्ष:
पुरुषार्थ की अवधारणा भारतीय समाज और संस्कृति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कुंजी है। यह व्यक्ति और समाज के बीच के संबंध को समझने में मदद करती है और सामाजिक व्यवस्था, व्यक्तिगत विकास, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान जैसे विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती है। हालांकि, समय के साथ पुरुषार्थ की अवधारणा में परिवर्तन हुए हैं और इसे आधुनिक संदर्भ में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
प्रश्न-10. आश्रम व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:- आश्रम व्यवस्था प्राचीन भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक संस्थान था। यह व्यवस्था व्यक्ति के जीवन को चार अलग-अलग चरणों में विभाजित करती थी:
- ब्रह्मचर्य आश्रम: यह जीवन का प्रारंभिक चरण था, जिसमें व्यक्ति शिक्षा और आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करता था। ब्रह्मचारी गुरु के मार्गदर्शन में रहते थे और वेदों का अध्ययन करते थे।
- गृहस्थ आश्रम: यह जीवन का दूसरा चरण था, जिसमें व्यक्ति विवाह करता था, परिवार स्थापित करता था और समाज में योगदान देता था। गृहस्थ आश्रम में व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम के पुरुषार्थों को पूरा करता था।
- वानप्रस्थ आश्रम: यह जीवन का तीसरा चरण था, जिसमें व्यक्ति गृहस्थ जीवन से संन्यास ले लेता था और वन में जाकर तपस्या करता था। वानप्रस्थ आश्रम में व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर चलता था।
- सन्यास आश्रम: यह जीवन का अंतिम चरण था, जिसमें व्यक्ति सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता था और पूरी तरह से आध्यात्मिक जीवन में लीन हो जाता था।
आश्रम व्यवस्था का महत्व:
- व्यक्तिगत विकास: आश्रम व्यवस्था व्यक्ति को उसके जीवन के विभिन्न चरणों में विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करती थी।
- सामाजिक संगठन: यह व्यवस्था समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित करती थी और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करती थी।
- धार्मिक विकास: आश्रम व्यवस्था धार्मिक जीवन के लिए एक संरचित ढांचा प्रदान करती थी।
आधुनिक समय में आश्रम व्यवस्था:
आधुनिक समय में आश्रम व्यवस्था का महत्व कम हो गया है, लेकिन कुछ लोग अभी भी इस व्यवस्था का पालन करते हैं। आधुनिक समय में आश्रमों को शिक्षा और आध्यात्मिक विकास के केंद्र के रूप में देखा जाता है।
निष्कर्ष:
आश्रम व्यवस्था प्राचीन भारतीय समाज की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। इस व्यवस्था ने व्यक्ति के जीवन को एक अर्थ और उद्देश्य प्रदान किया और समाज को एक संरचित ढांचा दिया। हालांकि, समय के साथ इस व्यवस्था में कई बदलाव आए हैं और आधुनिक समय में इसका महत्व कम हो गया है।
प्रश्न-11. “हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार है।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:- हिन्दू विवाह को सदियों से एक पवित्र बंधन और धार्मिक संस्कार माना जाता रहा है। यह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि दो परिवारों और समाजों का भी संगम होता है। हिन्दू धर्म में विवाह को संसार और परलोक दोनों के लिए शुभ माना जाता है।
- धार्मिक अनुष्ठान: हिन्दू विवाह में कई धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं, जैसे कि मंडप स्थापना, अग्नि के साक्षी में फेरे लेना, और देवताओं को प्रसाद चढ़ाना। ये अनुष्ठान विवाह को एक पवित्र और आध्यात्मिक अनुभव बनाते हैं।
- सामाजिक दायित्व: हिन्दू विवाह केवल व्यक्तिगत इच्छा नहीं है, बल्कि एक सामाजिक दायित्व भी है। विवाह के माध्यम से व्यक्ति समाज में अपनी भूमिका निभाता है और परिवार का निर्माण करता है।
- धार्मिक ग्रंथों में वर्णन: हिन्दू धर्म के विभिन्न ग्रंथों, जैसे कि वेद, पुराण और धर्मशास्त्रों में विवाह के महत्व और विधि-विधान का विस्तृत वर्णन मिलता है।
- सांस्कृतिक पहचान: हिन्दू विवाह भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह भारतीय समाज के मूल्यों, रीति-रिवाजों और परंपराओं को दर्शाता है।
आधुनिक समय में परिवर्तन:
हालांकि, आधुनिक समय में हिन्दू विवाह में कई परिवर्तन हुए हैं। आजकल, विवाह को अधिक व्यक्तिगत और स्वतंत्र विकल्प के रूप में देखा जाता है। लोग अब अपनी पसंद के जीवनसाथी का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके साथ ही, विवाह के अनुष्ठानों में भी सरलीकरण हुआ है।
निष्कर्ष:
हिन्दू विवाह एक जटिल और बहुआयामी संस्था है। यह धर्म, समाज और संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। हालांकि, आधुनिक समय में इस संस्था में कई परिवर्तन हुए हैं, लेकिन इसका धार्मिक महत्व अब भी बना हुआ है।
प्रश्न-12. नातेदारी के प्रकार और समाज में इसके महत्व को लिखिए।
उत्तर:- answer question – 2 same
प्रश्न-13. भारत में जनजातीय समाज की विभिन्न समस्याओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:- भारत में जनजातीय समाज कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। इन समस्याओं का मूल कारण आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण के कारण उनके पारंपरिक जीवन और संस्कृति पर पड़ने वाला प्रभाव है। कुछ प्रमुख समस्याएं इस प्रकार हैं:
- भूमि हरण: औद्योगिक विकास और बड़े बांधों के निर्माण के कारण जनजातीय समुदायों की भूमि का हरण किया जा रहा है। इससे उनकी आजीविका और सांस्कृतिक पहचान पर गहरा असर पड़ रहा है।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। इससे उनके सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- सामाजिक भेदभाव: गैर-आदिवासी समुदायों द्वारा आदिवासियों के साथ सामाजिक भेदभाव किया जाता है, जिससे उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- नशे की लत: कुछ जनजातीय समुदायों में नशे की लत की समस्या गंभीर रूप से बढ़ रही है, जो उनके स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन को प्रभावित कर रही है।
- जंगलों का विनाश: जनजातीय समुदायों की आजीविका जंगलों पर निर्भर करती है। जंगलों के विनाश से उनकी जीवनशैली और संस्कृति खतरे में पड़ गई है।
- कानूनी जागरूकता का अभाव: कई आदिवासी समुदायों में कानूनी जागरूकता का अभाव है, जिससे वे अपने अधिकारों का दावा करने में असमर्थ होते हैं।
इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को कई कदम उठाने होंगे। जैसे कि, जनजातीय क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों को लागू करना, उनके अधिकारों की रक्षा करना, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना और उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में मदद करना।
प्रश्न-14. भारत में ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:- भारत में ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था सदियों से विकसित हुई है और यह देश की विविधतापूर्ण संस्कृति और परंपराओं का प्रतिबिंब है। यह व्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है और इसमें परिवार, जाति, धर्म और ग्रामसभा जैसी संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं:
- संयुक्त परिवार: ग्रामीण भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली अभी भी प्रचलित है। इसमें कई पीढ़ियों के लोग एक ही छत के नीचे रहते हैं और एक दूसरे की मदद करते हैं।
- जाति व्यवस्था: जाति व्यवस्था ग्रामीण समाज में गहरे रूप से रची-बसी हुई है। यह जन्म के आधार पर लोगों को विभिन्न समूहों में बांटती है और उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को प्रभावित करती है।
- धर्म: धर्म ग्रामीण जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। धार्मिक उत्सव और रीति-रिवाज ग्रामीण लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- ग्रामसभा: ग्रामसभा ग्रामीण समाज की एक लोकतांत्रिक संस्था है। यह गांव के विकास के लिए योजनाएं बनाती है और उनका क्रियान्वयन करती है।
ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था में आ रहे परिवर्तन:
आधुनिकीकरण और शहरीकरण के कारण ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, युवा पीढ़ी शिक्षा और रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन कर रही है और जाति व्यवस्था की पकड़ कमजोर हो रही है।
निष्कर्ष:
भारत की ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था एक जटिल और गतिशील प्रक्रिया है। यह एक ओर जहां पारंपरिक मूल्यों और रीति-रिवाजों से जुड़ी हुई है, वहीं दूसरी ओर आधुनिकीकरण के प्रभावों से भी गुजर रही है। ग्रामीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि इन परिवर्तनों को समझा जाए और ग्रामीण लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप नीतियां बनाई जाएं।
प्रश्न-15. सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- प्रौद्योगिकी ने मानव समाज को सदैव से प्रभावित किया है और यह सामाजिक परिवर्तन का एक प्रमुख कारक रहा है। प्रौद्योगिकी में होने वाले विकास ने हमारे रहन-सहन, सोचने और काम करने के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं।
प्रौद्योगिकी सामाजिक परिवर्तन को निम्न तरीकों से प्रभावित करती है:
- संचार में क्रांति: इंटरनेट, सोशल मीडिया और स्मार्टफोन ने लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने का नया तरीका दिया है। इससे सूचना का प्रसार तेजी से होता है और लोगों के विचारों का आदान-प्रदान आसान हो गया है।
- आर्थिक विकास: प्रौद्योगिकी ने कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाई है। इससे आर्थिक विकास हुआ है और लोगों का जीवन स्तर बेहतर हुआ है।
- शिक्षा में परिवर्तन: ऑनलाइन शिक्षा, ई-लर्निंग और मल्टीमीडिया शिक्षा सामग्री ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। अब लोग कहीं से भी और कभी भी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।
- सामाजिक संबंधों में परिवर्तन: प्रौद्योगिकी ने लोगों के सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित किया है। लोग अब अधिक समय ऑनलाइन बिताते हैं और वास्तविक जीवन में लोगों से मिलने का समय कम होता जा रहा है।
- सांस्कृतिक परिवर्तन: प्रौद्योगिकी ने लोगों की संस्कृति और मूल्यों को भी प्रभावित किया है। नए विचार और जीवन शैली तेजी से फैल रहे हैं।
उदाहरण:
- इंटरनेट ने सूचना तक पहुंच को आसान बना दिया है और लोगों को सशक्त बनाया है।
- सोशल मीडिया ने सामाजिक आंदोलनों को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- स्मार्टफोन ने लोगों के जीवन को आसान बना दिया है और उन्हें कई सेवाएं उपलब्ध कराई हैं।
निष्कर्ष:
प्रौद्योगिकी सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली कारक है। यह हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करती है। हालांकि, प्रौद्योगिकी के साथ-साथ कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं, जैसे कि साइबर अपराध, निजता का हनन और सामाजिक असमानता। इसलिए, प्रौद्योगिकी के विकास के साथ ही हमें इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के उपाय भी खोजने होंगे।
प्रश्न-16. भारतीय समाज पर भूमण्डलीकरण के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:- भूमंडलीकरण ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसने विभिन्न देशों, संस्कृतियों और अर्थव्यवस्थाओं को एक-दूसरे के करीब ला दिया है। भारत इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में कई बदलाव आए हैं।
सकारात्मक प्रभाव:
- आर्थिक विकास: भूमंडलीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े हैं और लोगों का जीवन स्तर बेहतर हुआ है।
- सूचना तक पहुंच: इंटरनेट और अन्य प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सूचना तक पहुंच आसान हो गई है, जिससे लोगों का ज्ञान बढ़ा है।
- विश्वव्यापी संस्कृति: भूमंडलीकरण के कारण भारतीय संस्कृति विश्व स्तर पर लोकप्रिय हुई है।
- नई तकनीक: विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में नई तकनीकें आई हैं।
नकारात्मक प्रभाव:
- सांस्कृतिक एकरूपता: भूमंडलीकरण के कारण स्थानीय संस्कृतियों और परंपराओं पर खतरा मंडरा रहा है।
- आर्थिक असमानता: भूमंडलीकरण ने आर्थिक असमानता को बढ़ावा दिया है।
- पर्यावरणीय समस्याएं: औद्योगीकरण और उपभोक्तावाद के कारण पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ी हैं।
- शहरीकरण: भूमंडलीकरण के कारण लोगों का शहरों की ओर पलायन हो रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों का विकास रुक गया है।
निष्कर्ष:
भूमंडलीकरण के भारतीय समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़े हैं। भारत को भूमंडलीकरण के लाभों को प्राप्त करते हुए इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए नीतियां बनानी होंगी।
अधिक जानने के लिए आप निम्नलिखित विषयों पर गौर कर सकते हैं:
- भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभाव
- भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण का प्रभाव
- भूमंडलीकरण और भारतीय संस्कृति
Section-C
प्रश्न-1. जाति को परिभाषित कीजिए। भारत में जाति प्रथा का भविष्य क्या है ?
उत्तर:- जाति को एक सामाजिक वर्गीकरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो जन्म के आधार पर होता है और जिसमें लोगों को विभिन्न समूहों में बांटा जाता है। इन समूहों के सदस्यों को विशिष्ट सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति विरासत में मिलती है। भारत में जाति व्यवस्था सदियों से चली आ रही है और यह भारतीय समाज का एक जटिल पहलू है।
भारत में जाति प्रथा का भविष्य
भारत में जाति प्रथा का भविष्य अनिश्चित है। कई कारक इसके विकास को प्रभावित कर रहे हैं:
- आधुनिकीकरण और शहरीकरण: बढ़ता शहरीकरण और आधुनिकीकरण जाति व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। शहरों में लोग विभिन्न जातियों के लोगों के साथ मिलते-जुलते हैं और जातिगत भेदभाव कम होता जा रहा है।
- शिक्षा और जागरूकता: शिक्षा और जागरूकता के बढ़ने से लोगों में जातिगत भेदभाव के खिलाफ जागरूकता बढ़ रही है।
- कानून और नीतियां: सरकार ने जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है।
- सामाजिक आंदोलन: कई सामाजिक कार्यकर्ता और संगठन जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहे हैं और समतावादी समाज का निर्माण करने के लिए काम कर रहे हैं।
हालांकि, जाति व्यवस्था अभी भी भारतीय समाज में गहराई से रची-बसी हुई है और इसे पूरी तरह खत्म करने में अभी समय लगेगा। जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है।
भविष्य में निम्नलिखित परिदृश्य देखने को मिल सकते हैं:
- जाति व्यवस्था का धीरे-धीरे कमजोर होना: आधुनिकीकरण और शहरीकरण के साथ जाति व्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर हो सकती है।
- जाति आधारित राजनीति का बढ़ना: कुछ राजनीतिक दल जातिगत भावनाओं का फायदा उठाकर वोट बैंक बनाने की कोशिश कर सकते हैं।
- नई पहचानों का उभरना: जाति के अलावा अन्य पहचानें जैसे कि धर्म, क्षेत्र और वर्ग अधिक महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
भारत में जाति प्रथा का भविष्य कई कारकों पर निर्भर करता है। यह एक जटिल मुद्दा है और इसका समाधान आसान नहीं है। हालांकि, शिक्षा, जागरूकता और सरकार की नीतियों के माध्यम से जातिगत भेदभाव को कम किया जा सकता है और एक समतावादी समाज का निर्माण किया जा सकता है।
(जिस भी प्रश्न का उत्तर देखना हैं उस पर क्लिक करे)
प्रश्न-2. भारत में महिलाओं की परिवर्तित प्रस्थिति पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:-
प्रश्न-3. परिवार की परिभाषित कीजिए। आधुनिक समाज में परिवार के प्रकार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:-
प्रश्न-4. आधुनिकीकरण क्या है? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- आधुनिकीकरण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें एक पारंपरिक, ग्रामीण और कृषि-आधारित समाज एक आधुनिक, शहरी और औद्योगिक समाज में बदल जाता है। यह एक ऐतिहासिक विकास है जिसमें समाज के विभिन्न पहलुओं में व्यापक परिवर्तन होते हैं।
आधुनिकीकरण की मुख्य विशेषताएं
- औद्योगीकरण: आधुनिकीकरण का सबसे प्रमुख पहलू औद्योगीकरण है। इसमें कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था से हटकर उद्योगों और सेवा क्षेत्र पर आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना शामिल है।
- शहरीकरण: आधुनिकीकरण के साथ-साथ शहरीकरण भी होता है। लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे शहरों का विकास होता है।
- तकनीकी विकास: आधुनिकीकरण में तकनीकी विकास एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नई-नई तकनीकों का विकास होता है, जिससे उत्पादन और सेवाओं में वृद्धि होती है।
- सामाजिक परिवर्तन: आधुनिकीकरण के साथ-साथ सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन होते हैं। पारंपरिक मूल्यों और रीति-रिवाजों का स्थान आधुनिक मूल्यों और जीवन शैली ले लेती है।
- राजनीतिक परिवर्तन: आधुनिकीकरण के साथ-साथ राजनीतिक व्यवस्था में भी परिवर्तन होते हैं। लोकतंत्र और राष्ट्रवाद जैसे विचारों का विकास होता है।
- सांस्कृतिक परिवर्तन: आधुनिकीकरण के साथ-साथ सांस्कृतिक मूल्यों और रीति-रिवाजों में भी परिवर्तन होते हैं। वैश्वीकरण के कारण विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण होता है।
आधुनिकीकरण के प्रभाव
आधुनिकीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव होते हैं। सकारात्मक प्रभावों में आर्थिक विकास, जीवन स्तर में सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार शामिल हैं। वहीं, नकारात्मक प्रभावों में पर्यावरणीय प्रदूषण, सामाजिक असमानता और सांस्कृतिक विघटन शामिल हैं।
निष्कर्ष:
आधुनिकीकरण एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है। यह समाज के सभी पहलुओं को प्रभावित करती है और इसके परिणाम सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं।
प्रश्न-5. जी.एस. घुरिये के द्वारा जाति के विषय में जो लिखा है उस पर एक सारगर्भित टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:-
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